मृत्युशैया पर लिखी गई वसीयत वैध नहीं

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Published on : 19 Sep, 17 06:09

मौत के कगार पर बैठा व्यक्ति अपनी मर्जी और इच्छा से वसीयत नहीं लिख सकता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मृत्युशैया पर लिखी गई वसीयत कानूनी रूप से वैध नहीं है। मौत के कगार पर बैठा व्यक्ति अपनी मर्जी और इच्छा से वसीयत नहीं लिख सकता। मौत से कुछ घंटे पहले लिखी गई वसीयत की बारीकी से जांच जरूरी है। मृतक महिला के पति को दिए उत्तराधिकार के हक : जस्टिस अरुण मिश्रा और मोहन शांतानौगार की बेंच ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए मृतक महिला के पति को उत्तराधिकार के हक प्रदान किए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पेशे से अध्यापक श्रीमती मूली स्वर्णकार के निधन से कुछ घंटे पहले उनके दो भतीजों ने वसीयत पर अपनी बुआ के हस्ताक्षर हासिल कर लिए। मृत्यु से दो दिन पहले भी कुछ कागजातों पर दस्तखत कराए गए थे। जबकि उनके पति डा. प्रकाश सोनी सर्विस रिकॉर्ड में काफी पहले से नॉमिनी थे। पत्नी की मौत के बाद भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 372 के तहत प्रकाश सोनी ने उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया। अदालत में मृतका के भतीजे दीपक तथा उसके भाई ने वसीयत पेश की जिसमें सर्विस और सेवानिवृत्ति से संबंधित सभी लाभ दोनों को दिए जाने की बात कही गई थी। फूफा करते थे बुआ की पिटाई : भतीजों का कहना था कि उनका फूफा उनकी बुआ की पिटाई करता था। लिहाजा मौत से पहले उन्होंने वसीयत उनके नाम कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मूली स्वर्णकार की 18 नवंबर, 2001 को मृत्यु हुई। वह राजगढ़ जिले के नरसिंहपुर तहसील की राजकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक थी। उसके कोई संतान नहीं थी। वसीयत भी 18 नवंबर, 2001 को लिखी गई। मौत से कुछ घंटे पहले की गई वसीयत की बहुत बारीकी से पड़ताल करनी चाहिए थी।हस्ताक्षरों में नहीं थी समानता : वसीयत पर किए गए हस्ताक्षर और सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज दस्तखत में समानता नहीं है। हाईकोर्ट ने भतीजों को उत्तराधिकार सर्टिफिकेट देने का आदेश देकर गलती की। अदालत को इस तय पर गौर करना चाहिए था कि महिला काफी अरसे से बीमार थी। वह गंभीर हालत में थी और भोपाल के अस्पताल में भर्ती थी। गवाहों ने भी कहा है कि जिस समय अस्पताल में वसीयत पर दस्तखत कराए गए, उस समय उस पर ड्रिप चढ़ रही थी।
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