जिसके वचन कठोर होते हैं उसके भाव निर्मल होते हैंः आचार्यश्री सुनील सागरजी

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Published on : 22 Aug, 17 16:08

जिसके वचन कठोर होते हैं उसके भाव निर्मल होते हैंः आचार्यश्री सुनील सागरजी उदयपुर, वचनों में कठोरता हो सकती है लेकिन अभिप्राय में नहीं। जो आफ मुंह पर कठोर बोल देता है अक्सर उसके भाव निर्मल होते हैं। जलेबी टेढी हो सकती है, लेकिन उसका रस टेढा नहीं हो सकता, गन्ना टेढा हो सकता है लेकिन उसक रस टेढा नहीं हो सकता, नदी टेढी हो सकती है लेकिन उसका जल टेढा नहीं हो सकता। उसी तरह से मां बाप अगर बच्चों को या स्कूलों में अध्यापक बच्चों को डांटते हैं, कठोर वचन बोलते हैं तो उसका बुरा नहीं लगाना चाहिये क्योंकि उनके भाव और उनका अभिप्राय कठोर नहीं होता बल्कि उसमें कहीं न कहीं बच्चों का ही हित छुपा होता है। उक्त विचार आचार्यश्री सुनील सागरजी महाराज ने हुमड भवन में आयोजित प्रातःकालीन चातुर्मासिक धर्मसभा में व्यकत किये।
आचार्यश्री ने कहा कि लोग दिन भर अपने दीमाग में इतनी सारी फालतू और व्यर्थ की बातें सोचते रहते हैं जिनका कोई औचित्य नहीं होता। मुफ्त का दीमाग है उसमें फालतू की बातों का, फालतू की चिन्ताओं को इतना भरे रहते हैं कि कोई अच्छी बात उनके दीमाग में घुस ही नहीं पानी। उन फालतू बातों का ना तो कोई उद्देश्य होता है और न ही उनसे कोई उपलब्धि उन्हें हासिल होती है। चिन्ता मनुष्य को चिता पर ले जाती है ओर चिन्तन मनुष्य को मोक्ष मार्ग पर ले जाता है।
आचार्यश्री ने विदेशी खान-पान के बढते प्रचलन पर कहा कि इसका असर यह हो रहा है कि आज कल छोटी- छोटी उम्र में भी कैंसर, किडनी फेल होने जैसी घातक बीमारियां हो रही है। आज के आधुनिक युग में खान-पान की शुद्धता पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया जाता है। जबकि शुद्ध खाना अपना देशी खाना और घर पर बना भोजन ही होता है।
अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत ने बताया कि हुमड भवन में चातुर्मास का आचार्यश्री से धर्मलाभ लेने के लिए बाहर से गुरू भक्तों का आना लगातार बना हुआ है। प्रातःकालीन धर्मसभा से पूर्व गुरूदेव का पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट और मंगलाचरण का लाभ बाहर से आये हुए गुरू भक्तों को भी मिल रहा है।

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