पयुर्शण पर्व प्रथम दिन श्रावकों ने जानें अपने कर्तव्य

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Published on : 18 Aug, 17 21:08

उदयपुर। हिरण मगरी, सेक्टर.४, स्थित श्री जैन ष्वेताम्बर मूर्ति पूजक जिनालय संघ के षंातिनाथ आराधना भवन में विराजित आचार्य श्रीमद् जिन दर्षन सूरि म.सा. ने पयुर्शण महापर्व के प्रथम दिन धर्म प्रेमी श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए उन्हें श्रावकों के विभिन्न कर्तव्यों से अवगत कराया।
उन्होंने बताया कि अमारि प्रवर्तन कर्तव्य जीव हिंसा का त्याग, प्रत्येक जीव पर दया की भावना रखना, जीवों को अभयदान। सूक्षतम हिंसा का त्याग, पानी का न्यूनतम उपयोग करने, साधर्मिक वात्सल्य के तहत साधर्मिक बंधुओं एवं दीन-दुखियों की सेवा करना, परोपकार करना। साधर्मी बंधुओं को आत्म तुल्य मानकर उनकी सेवा भक्ति करना,परस्पर क्षमापना कर्तव्य में ’’क्षमा वीरस्य भूशणम्‘‘ मानव समूह में रहते हुए एक दूसरे के प्रति वैमनस्य- मन, वचन अथवा काया से होना अस्वभाविक नहीं है। कभी-कभी तो स्थिति यहां तक हो जाती है कि लोग एक दूसरे को देखना पसंद नही करते अथवा बातचीत तक बंद हो जाती है। इस महापर्व पर संवत्सरी प्रतिक्रमण करते हुए सभी जीवों से क्षमा याचना करने पर अपने सबसे बडे षत्रु से भी क्षमा याचना कर परस्पर वैमनस्य भूलकर मैत्री भाव स्थापित करना चाहिये। क्षमा पर्व आत्मा को श्रृंगारित करने का पर्व है। मन की कटुता, वैमनस्य, राग-द्वेष आदि को मिटाने का पर्व है। क्षमा जैनत्व की पहचान है।
उन्हने बताया कि अट्ठम तप तीन दिन का उपवास है। यथा संभव इस पर्व पर आत्म षुद्धि के लिए कम से कम तीन दिन का उपवास करना चाहिये। यदि न हो सके तो एक या दो उपवास एवं प्रतिदिन एकाशन करना चाहिये। चैत्य परिपाटी कर्तव्य के तहत पर्व समाप्ति पर सिद्ध क्षैत्रों की यात्रा करना चाहिये। यदि बाहर तीर्थों की यात्रा करना संभव नहीं हो तो आस-पास के मंदिरों की यात्रा अवश्य करनी चाहिये।
अंत में आचार्यश्री ने जब अट्ठाई के स्वरूप का मनोरम काव्यमय (स्तवन)वर्णन किया तो श्रावक-श्राविकाएं उसे सुनकर धर्म यात्रा में आनन्दित हो गये। श्री संघ के अध्यक्ष सुषील बांठिया ने बताया कि पयुश्र्ण महापर्व के प्रथम दिन चांदी के सिक्के की प्रभावना देकर धर्म प्रेमी भाई और बहिनों का सम्मान किया गया।

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