“ऋषिकृत ईश्वरोपासना ग्रन्थ आर्याभिविनय का डा. भवानीलाल भारतीय द्वारा दिया गया परिचय और इसके आधार पर ईश्वर से की जाने चार प्रमुख प्रार्थनायें?”

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Published on : 11 Aug, 17 09:08

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

ओ३म्
ऋषि दयानन्द जी के समस्त साहित्य में आर्याभिविनय ग्रन्थ का महत्वपूर्ण स्थान है। ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना अथवा उससे अपने मन की बात किस प्रकार से करनी चाहिये, इसे उन्होंने वेदमन्त्रों के सरल, सुबोध व सरस स्तुति व प्रार्थना परक अर्थ करके हमें प्रदान किया है। डा. भवानीलाल भारतीय, श्रीगंगानगरसिटी आर्यसमाज के प्रमुख व यशस्वी विद्वान हैं। उन्होंने ‘दयानन्द उवाच’ नाम से एक लघु पुस्तक लिखी है जिसमें ऋषि दयानन्द के सभी ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय देने के साथ ग्रन्थ के कुछ चुने हुए उद्धरण भी दिये हैं। इस संक्षिप्त लेख में हम डा. भारतीय जी द्वारा दिये गये आर्याभिविनय के परिचय और चुनिन्दा प्रार्थनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं। हम आशा करते हैं कि पाठक इसे पढ़कर आर्याभिविनय का अध्ययन करने की प्रेरणा प्राप्त करेंगे। हम यह अनुभव करते हैं कि जब पाठक इस ग्रन्थ का अध्ययन करते हैं तो यह भी एक प्रकार से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना का पूरक रूप ही होती है। इसके पाठ व अध्ययन से उपासना में सहायता मिलती है। आत्मा का सम्बन्ध संसार के रचयिता व पालक परमात्मा से कुछ समय के लिए जुड़ जाता है और उपासक आत्मा पुस्तक के प्रार्थना वचनों को सत्य को स्वीकार कर उसका आनन्द अनुभव करती है। अतः हमारा अनुमान है कि इस ग्रन्थ के अध्ययन से कुछ न कुछ आध्यात्मिक लाभ सहित मानसिक व वाचिक कर्म करने का लाभ पुस्तक के अध्ययनकर्ता को मिलता है। अतः पाठकों को समय समय पर इसका अध्ययन करते रहना चाहिये।

डा. भारतीय जी लिखते हैं ‘वैदिक भक्ति का स्वरूप निरूपण करने हेतु स्वामी दयानन्द ने इस ग्रन्थ की रचना की। इसमें ऋग्वेद तथा यजुर्वेद के 53 और 55 =कुल 108 मन्त्रों की भावपूर्ण प्रार्थना-परक व्याख्या प्रस्तुत की है। सम्भवतः स्वामीजी इस ग्रन्थ में साम और अथर्व वेद के मन्त्रों का भी संग्रह करना चाहते थे। महर्षि को केवल तार्किक तथा खण्डन-प्रवृत्ति प्रधान मान कर उनके आध्यात्मिक एवं उपासना परक सिद्धान्तों को हृदयंगम न करने वाले पुरुषों के लिये आर्याभिविनय आंखों को खोलने का कार्य करता है। दयानन्द का भक्तिवाद मध्यकालीन वैष्णव भक्ति मत से सर्वथा भिन्न है। वैदिक भक्ति शरीर, आत्मा और मन के बल की वृद्धि, पूर्ण स्वराज्य तथा पारलौकिक उन्नति के साथ ऐहलौकिक उन्नति को भी अपना लक्ष्य स्वीकार करती है।

(अब आर्याभिविनय पुस्तक से मत्रों के आधार पर चार प्रार्थनायें प्रस्तुत हैं:)

“सर्वशक्तिमान् न्यायकारी, दयामय सबसे बड़े पिता को छोड़ के नीच का आश्रम हम लोग कभी न करेंगे। आपका (ईश्वर का) तो स्वभाव ही है कि अंगीकृत को कभी नहीं छोड़ते। सो आप सदैव हमको सुख देंगे, यह हम लोगों को दृढ़ निश्चय है।“

“हे इन्द्र, परमात्मन् ! आपके साथ वर्तमान आपकी सहायता से हम लोग दुष्ट शत्रु जन को जीतें। हे महाराजधिराजेश्वर किसी युद्ध में क्षीण होके हम पराजय को प्राप्त न हों। जिनको आपकी सहायता है, उनका सर्वत्र विजय होता ही हे।“

“हे महाराजाधिराज ! जैसा सत्य, न्याययुक्त, अखण्डित आपका राज्य है वैसा न्याय राज्य हम लोगों का भी आपकी ओर से स्थिर हो। जैसे माता और पिता अपने सन्तानों का पालन करते हैं वैसे ही आप हमारा पालन करो।“

“हे सज्जन मित्रों ! वही एक परम सुखदायक पिता है। आओ हम सब मिल के प्रेम और विश्वास से उसकी भक्ति करें। कभी उसकी छोड़ के अन्य को उपास्य न मानें। वह अपने को अत्यन्त सुख देगा इसमें कुछ संदेह नहीं।“

यह सभी प्रार्थनायें आज की देश, काल व परिस्थितियों में भी सार्थक एवं उपयोगी हैं तथा परतन्त्रता काल में भी समान रूप से उपयोगी थी। अतीत में लोगों ने आर्याभिविनय पुस्तक से प्रेरणाग्रहण कर स्वकर्तव्यों का निश्चय किया व अब भी करते हैं। इन प्रार्थना में व्यक्तिपूजा का निषेध है जबकि आज हम देखते हैं कि राजनीतिक दलों से जुड़े छोटे व बड़े लोग अपने राजनीतिक आकाओं के चरणचुम्बन, मिथ्या प्रशंसा व उनकी झूठ, भ्रष्टाचार आदि बुराईयों को सत्य व उचित ठहराने व उनकी उपेक्षा व उन्हें इग्नौर करने में संलग्न रहते हैं। देश व समाज हित उनके लिए गौण है और व्यक्ति व राजनीतिक हित ही सब कुछ है, ऐसा अनुभव होता है। वैदिक भक्तों व उपासकों का राजा परमेश्वर है जिसे उन्होंने महाराजाधिराज कह कर सम्बोधित किया है। ईश्वर के अतिरिक्त अन्य कोई अल्पज्ञ व्यक्ति हमारा महाराजधिराज हो भी नहीं सकता। ईश्वर की सहायता से दुष्ट शत्रु जनों को जीतने की प्रार्थना भी परमात्मा से की गई है। आज यह प्रार्थना दुष्ट शत्रु देशों के परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त सार्थक हो गई है। देश में भी दुष्टों की कमी नहीं है जो सेना पर पत्थरबाजी करने वालों का विरोध व खण्डन न कर उनना मौन समर्थन व्यक्त करते हैं। ऐसी अनेक शिक्षायें देशवासी इन प्रार्थनाओं से लेते हुए सावधान हो सकते हैं और देशहित का कार्य रहे है राजनीतिक दल को सहयोग दे सकते हैं।

हम आशा करते हैं कि पाठक आर्याभिविनय की उपर्युक्त प्रार्थनाओं को आज की परिस्थितियों में भी उत्तम व प्रासंगिक पायेंगे। इसी के साथ लेखनी को विराम देते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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