बिना पुरूषार्थ केकुछ नहीं मिलता: आचार्य सुनीलसागरजी

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Published on : 10 Aug, 17 10:08

बिना पुरूषार्थ केकुछ नहीं मिलता: आचार्य सुनीलसागरजी उदयपुर.संसार में रहना है तो कीचड़ में कमल की तरह रहो, कांटों केबीच जैसे गुलाब रहता है वैसे रहो। जीवन में कोई भी परेशानी हो, दुख हो या तकलीÈ हो उसका समाधान इधर- उधर रोना राने से नहीं बल्कि स्वयं केद्वारा पुरूषार्थ करने से ही दूर हो सकती है। सिर्È भाज्य भरोसे बैठने से कुछ नहीं होता, पुरूषार्थ, मेहनत और कठोर तपस्या तो स्वयं को ही करनी पड़ेगी है तभी इसका समाधान हो सकता है। उक्त विचार आचार्य सुनील सागरजी महाराज ने बुधवार को हुमड़ भवन में आयोजित प्रात:कालीन चातुर्मासिक धर्मसभा में व्यक्त किये।
संसार में जो घटनाएं घटित होनी है वह होनी ही है। उसे रोकना किसी केहाथ में नहीं है सिवाय परमात्मा के। विधि का विधान न आज तक कोई नहीं टाल पाया है और न कोई टालने में सक्षम है। लेकिन यह छोटी सी बात लोगों केसमझ में नहीं आती है। हर छोटी-मोटी परेशानी चाहे वह घर- परिवार की हो, व्यवसाय की हो या नौकरी की हो, लोग घबरा जाते हैं और तुरन्त भगवान केमन्दिर में या गुरू केचरणों में दौड़े चलते आते हैं। वहां पर सिर्È अपनी समस्याओं का समाधान मांगते हैं। भगवान और गुरू हमेशा भक्तों केसाथ होते हैं। वह अपने किसी भी भक्त को कष्ट में नहीं देख सकते हैं। वह हमेशा ही कष्टों का निवारण करते हैं, दुखों को हरते हैं लेकिन भक्तों को यह नहीं भूलना चाहिये कि बिना स्वयं केपुरूषार्थ किये भगवान या गुरू भी कुछ नहीं कर सकते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि श्रावक मन्दिर में जाते हैं। परमात्मा से सिर्È स्वयं केऔर परिवार केसुखों की मांग करते हैं। हे भगवान मुझे और मेरे परिवार को सदा सुखी रखना। भगवान से अगर कुछ मांगना ही है तो स्वयं केआत्मकल्याण और मोक्ष का मार्ग मांगो। संसार में रह कर सांसारिक काम तो करने ही पड़ेंगे, पैसा भी कमाना पड़ेगा। अगर संसार की जिम्मेदारियां छोड़ कर आत्मकल्याण और मौक्ष मार्ग की और अग्रसर हो गये तो घर परिवार कंगाल हो जाएगा। पहले सांसारिक जिम्मेदारियों को पूर्ण करो। घर परिवार आपका जब सक्षम हो जाए तब आत्मकल्याण और मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होना चाहिये। जो जीवन में सदा हंसता- मुस्कराता रहता है उसकेसारे काम भी परमात्मा आसानी से कर देते हैं लेकिन जो हमेशा दुखों का ही रोना रोता रहता है परमात्मा भी उसका साथ नहीं देता है वह जीवन भर रोता ही रहता है।

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