गुस्से में हैं राजस्थान के न्यायिक कर्मचारी

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Published on : 29 Jul, 17 10:07

28 जुलाई को राजस्थान भर में न्यायिक कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुतले फूंके और सरकार की वायदा खिलाफ पर गुस्सा जताया। कर्मचारियों के नेताओं का कहना था कि मुख्यमंत्री की जिद्द की वजह से ही गत 20 जुलाई से प्रदेश भर की अदालतें बंद पड़ी हुई हैं। कर्मचारी अपनी जायज मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। उन्होंने माना कि अदालतों के ठप होने से लाखों पक्षकारों को परेशानी हो रही है। लेकिन इसके लिए वसुंधरा राजे सरकार ही जिम्मेदार हैं। गत वर्ष सरकार ने शेट्टी पे कमीशन की सिफारिशों के आधार पर कर्मचारियों के साथ लिखित समझोता किया था। लेकिन इस समझोते की क्रियान्विति आज तक भी नहीं की गई है। इससे प्रदेशभर के हजारों न्यायिक कर्मचारियों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। कर्मचारियों ने वसुंधरा सरकार को समझाने के बहुत प्रयास किए, लेकिन सरकार ने कर्मचारियों की समझाइश को कमजोर ही माना। अब सरकार को कर्मचारियों की ताकत दिखाने के लिए ही अदालतों को ठप किया गया है। न्यायिक कर्मचारियों को राज्य कर्मचारियों का समर्थन भी मिल रहा है।
सीजे प्रदीप नद्राजोग का सकारात्मक रुख:
न्यायिक कर्मचारियों के नेता संदीप माथुर ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नद्राजोग का सकारात्मक रुख है। सीजे ने राज्य सरकार के अधिकारियों से कहा है कि निचली अदालतों के कर्मचारी को भी शेट्टी आयोग के अनुरूप वेतन मिलना चाहिए। वैसे भी सरकार के सामने यह अहम सवाल है कि जब हाईकोर्ट के कर्मचारियों और जिला स्तर पर न्यायिक अधिकारियों को शेट्टी आयोग के अनुरूप वेतन दिया जा रहा है, तो फिर न्यायिक कर्मचाारी को नहीं। जाहिर है कि सरकार भेदभाव कर रही है।
पक्षकार परेशान:
प्रदरेशभर की अदालतों में न्यायिक कार्य ठप हो जाने से पक्षकारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जिन गिरफ्तार आरोपियों की जमानत अदालत में हो सकती है, उन्हें भी बेवजह जेल जाना पड़ रहा है। मोटर व्हिकल एक्ट में जब्त होने वाले वाहन भी छूट नहीं पा रहे है। इससे पुलिस का सिरदर्द बढ़ गया है।
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