क्रोध एक मानसिक विकार है

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Published on : 17 Jul, 17 20:07

क्रोध एक मानसिक विकार है जिस प्रकार बाहरी रोग के लिए हमें दवा की जरूरत होती है उसी प्रकार क्रोध की दशा से मानव पूरे जीवन बीमार रहता है सिर्फ उसे क्षमा रूपी दवा का प्रयोग ही इस बीमारी को ठीक कर सकता है आज दान बाड़ी दादाबाड़ी में बुद्धसिंह बाफना हॉल में क्रोध पर नियंत्रण विषय पर प्रवचन करते हुए यह उद्गार परम पूज्य साध्वी वैराग्य निधि जी ने प्रकट किए श्री जैन श्वेतांबर पेडी की दादावाड़ी दान बाड़ी में चातुर्मास योग के दौरान अपनी प्रवचनमाला में क्रोध विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा क्रोध आग के समान है और उसे क्षमा रूपी जलधारा से ही शांत किया जा सकता है अगर सामने वाला व्यक्ति क्रोध रूपी आग को अपनी बेहोश स्थिति में बरसा रहा हो तो हमें जाग्रत अवस्था में रहते हुए क्षमा रूपी जलधारा का प्रयोग करके उसे शांत करना चाहिए और क्रोधी व्यक्ति के साथ एक रोगी मानकर सद्भावी व्यवहार करना चाहिए खचाखच खचाखच भरे प्रवचन हॉल में साध्वी श्री जी ने फरमाया की क्रोध आगे जाकर द्वेष का रूप ले लेता है और मानव जीवन में क्षण क्षण प्रति क्षण आपके बंद का कारण बनता है क्रोध रूपी दावानल से मानव जीवन का पतन हो जाता है व्यक्ति 55 का होकर भी बचपन की तरह कहां बोलना कैसे बोलना इसका ध्यान नहीं रखता है आजकल की नारी मां तो बन जाती है लेकिन उनमें मातृत्व गुण का भी आना जरूरी है बच्चे को मार कर पीट कर या प्रताड़ित कर कर नियंत्रित नहीं किया जा सकता उसके साथ समता क्षमा शांति और प्रेम का व्यवहार ही उसे आपके नजदीक ला सकता है साध्वी श्री जी ने अपने प्रवचन में आगे कहा की क्रोध मूर्खता से प्रारंभ होता है और पश्चाताप पर जाकर समाप्त होता है क्रोध की छोटी सी चिंगारी को अगर समय समय रहते काबू में नहीं किया जाए तो दावानल की तरह मानव के जीवन में फैल जाता है और और द्वेष के रूप में पूरे जीवन को कब नष्ट कर देता है पता ही नहीं चलता जिसकी वजह से मानव जीवन मैं पाप का बंध होता है और हम अनंत संसार में अनंत भावों में घूमते रहते हैं मानव जीवन में हमें हमारे पुण्य के खजाने को भरना चाहिए उसके विपरीत हम क्रोध से उस खजाने को लुटा देते हैं और पाप को बना लेते हैं और इस जीवन को व्यर्थ कर पशु योनि में जाकर अपना अगला भव पाते हैं
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