‘गुरुकुल मंझावली फरीदाबाद की स्थापना की पृष्ठभूमि व संक्षिप्त इतिहास’

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Published on : 14 Jul, 17 10:07

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

आर्ष गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली के अन्तर्गत सम्प्रति आठ गुरुकुलों का संचालन हो रहा है। गुरुकुल गौतमनगर अन्य सभी गुरुकुलों की केन्द्रीय शाखा है। हरयाणा राज्य के फरीदाबाद जिले में यमुना तट पर स्थित गुरुकुल गौतमनगर की पहली शाखा गुरुकुल मंझावली की स्थापना स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने 5 जून, सन् 1994 को की थी। इस गुरुकुल की स्थापना में श्री देवमुनि जी वानप्रस्थी निमित्त बने। हुआ यह है कि दिसम्बर, सन् 1993 के गुरुकुल गौतमनगर के वार्षिकोत्सव में श्री देवमुनि जी एक साधक व श्रोता के रूप में पधारे थे। मंझावली में स्वसाधनों से स्थापित वानप्रस्थ आश्रम में वह अपनी धर्मपत्नी जी के साथ निवास करते थे। इस आश्रम की अपनी एक एकड़ भूमि थी जिसमें दो कमरे बने हुए थे। एक कक्ष देवमुनि जी व उनकी धर्मपत्नी के लिए था तथा दूसरे कक्ष का उपयोग अतिथियों के निवास के लिए किया जाता था। वानप्रस्थ आश्रम में एक गाय भी हुआ करती थी। इसके अतिरिक्त भौतिक, मनुष्य व प्राणी रूप में अन्य कोई सम्पत्ति वहां नहीं थी। श्री देवमुनि जी जब गुरुकुल गौतमनगर पधारे थे तो वहां के प्रायः सभी आयोजनों से प्रभावित हुए थे। ब्रह्मचारियों के वेद मंत्रोच्चार तथा उनके व्यायाम सम्मेलन के अन्तर्गत नाना प्रकार के कठिन व जटिल व्यायामों के प्रदर्शन से वह विशेष रूप से प्रभावित हुए थे। इन्हें देखकर वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने स्वामी प्रणवानन्द जी, पूर्व नाम आचार्य हरिदेव जी, से बातचीत की और उनके वानप्रस्थ आश्रम, मंझावली में गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली जैसा ही एक गुरुकुल खोलने का प्रस्ताव किया। दोनों ऋषि भक्तों में तय हुआ कि पहले वह वानप्रस्थ आश्रम मंझावली आकर निरीक्षण करेंगे और उसके बाद वहां गुरुकुल स्थापना का निर्णय करेंगे। कुछ समय बीत गया और स्वामी प्रणवानन्द जी को इस बात की विस्मृति हो गई। इसके लगभग एक माह बाद अचानक स्वामी प्रणवानन्द जी को देवमुनि जी का लिखा हुआ पोस्टकार्ड पत्र मिला जिसमें उन्होंने मंझावली में गुरुकुल खोलने की चर्चा का स्मरण कराया और उन्हें निरीक्षण हेतु मंझावली आने का निमंत्रण दिया। इस पत्र के बाद स्वामी जी श्री चरत सिंह वर्मा (वर्तमान में स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती) मंझावली गये और वानप्रस्थ आश्रम और उसकी भूमि का निरीक्षण किया। आश्रम की कुल भूमि 1 एकड़ थी। स्वामी जी ने देवमुनि जो कहा कि यह भूमि तो कम है, गुरुकुल के लिए और अधिक भूमि की आवश्यकता होगी। इस आश्रम के साथ की भूमि मास्टर दुनी चन्द जी की थी। उनसे गुरुकुल के लिए भूमि देने की बात की। वह 1.50 लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से भूमि देने को तैयार हो गये। स्वामी जी ने उन्हें एक हजार की धनराशि तत्काल अग्रिम के रूप में दी और कहा कि एक सप्ताह बाद, जब आपको सुविधा हो, तो रजिस्ट्री करा दें। कुछ दिन बाद उनसे भेंट होने पर वह अपने पूर्व के वचन से मुकर गये और 1.65 लाख प्रति एकड़ की मांग करने लगे। देवमुनि उनके वचन भंग करने पर नाराज हुए परन्तु स्वामी प्रणवानन्द जी ने उन्हें समझाया। स्वामी जी ने उन्हें कहा कि कुल 30 हजार रुपये के लिए यह भूमि छोड़ना उचित नहीं होगा। वह सहमत हो गये। फिर रजिस्ट्री के दिन भी उन्होंने पांच हजार रूपये अतिरिक्त धन की मांग की। स्वामी जी ने वह भी उन्हें अपने साथ के एक सहयोगी से लेकर दे दिये और इस प्रकार से गुरुकुल के पास 3 एकड़ भूमि हो गई।

भूमि की यह व्यवस्था हो जाने के बाद गुरुकुल की स्थापना की गई। 5 जून, सन् 1994 को स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, स्वामी ओमानन्द सरस्वती, स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती, स्वामी आनन्द बोध सरस्वती के साथ वानप्रस्थ आश्रम, मंझावली पहुंचे। स्वामी दीक्षानन्द जी के ब्रह्मत्व में यज्ञ किया गया। स्वामी ओमानन्द जी के करकमलों से गुरुकुल के भवन की आधार शिला वा नींव रखी गई। यह आयोजन स्वामी आनन्द बोध सरस्वती की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। स्वामी प्रणवानन्द जी के साथ वैदिक विद्वान व व्याकरणाचार्य आचार्य पं. भीमसेन वेदवागीश जी 32 ब्रह्मचारियों सहित पहुंचे थे। इन 32 ब्रह्मचारियों में एक ब्रह्मचारी धनंजय जी भी थे जो आजकर देहरादून के गुरुकुल पौंधा के आचार्य हैं। गुरुकुल की स्थापना के बाद इसके आरम्भिक दिनों में आचार्य भीमसेन वेदवागीश और गुरुकुल के ब्रह्मचारी तम्बुओं व छप्परों में रहे।

गुरुकुल मंझावली के सामने किन्हीं श्री यादव जी की दो बीघा भूमि थी। वह अपनी यह भूमि किसी गत्ता फैक्ट्ररी स्थापित करने के लिए बेच रहे थे। स्वामी प्रणवानन्द जी को पता लगा तो उन्हें चिन्ता हुई। कारण था कि यदि वहां गत्ता फैक्ट्ररी स्थापित हो गई तो फिर वहां का वातावरण व जलवायु प्रभावित होंगे। मच्छरों की बहुतायत होगी। ब्रह्मचारी अनेक बीमारियों से ग्रस्त हो सकते थे। अतः स्वामी जी ने श्री देवमुनि से परामर्श कर उस भूमि को क्रय करने का विचार किया। योजना सफल हुई और यह भूमि भी गुरुकुल मंझावली के नाम पर रजिस्ट्री करा ली गई। इस प्रकार यह गुरुकुल अब तीन एकड़ व दो बीघा में फैल गया। इस दो बीघा भूमि में स्वामी जी ने गुरुकुल की गोशाला स्थापित की थी। इसके कुछ समय बाद गुरुकुल के साथ वाली श्री रामचन्द्र धोबी जी की 1 एकड़ भूमि भी गुरुकुल के लिए क्रय कर ली गई। यह क्रम आगे भी चला और अब गुरुकुल के पास 12 से 13 एकड़ के बीच भूमि है।

गुरुकुल स्थापित हो जाने और भूमि की व्यवस्था हो जाने के बाद पहली पक्की व भव्य कुटिया वर्तमान के स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने बनवाई थी। दूसरी कुटिया इस गुरुकुल के लिए भूमि दान देने वाले श्री देव मुनि जी ने बनवाई। श्री देवमुनि अब 97 वर्ष की आयु पूरी कर 98वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। आरम्भ में ब्रह्मचारियों के लिए छात्रावास के 10 कमरे ही बनवाये गये थे। अब यहां यह संख्या बढ़कर 25 से 30 के बीच हो गई है। गुरुकुल में एक हाल है जिसकी लम्बाई 118 फीट और चौड़ाई लगभग 65 फीट है। यह हाल बेसमेन्ट में बना है। इसके ऊपर एक बड़ा हाल है। यह दो मंजिला विशाल भवन है। गुरुकुल आश्रम में साधको के निवास की भी व्यवस्था है। इनके लिए यहां 24 कुटियायें हैं। एक यज्ञशाला एवं गोशाला भी है। गोशाला में इस समय छोटी बड़ी लगभग 65 गऊएं हैं। आचार्य भीमसेन वेदवागीश जी गुरुकुल मंझावली के पहले आचार्य थे। आपने सन् 2003 तक आचार्य पद का कार्यभार वहन किया। इनके बाद श्री ब्रह्म प्रकाश जी आचार्य बने जिनका कार्यकाल 2003-2006 तक रहा। वर्तमान में श्री जयकुमार जी गुरुकुल के आचार्य हैं। आजकल गुरुकुल में आचार्य सत्यदेव, आचार्य राजेश जी, आचार्य श्री अरुण जी तथा स्वामी प्रकाशमुनि जी ब्रह्मचारियों को पढ़ाते हैं। इस समय गुरुकुल में विद्यार्थियों की संख्या 125 है। गुरुकुल में एक वृहद अच्छा पुस्तकालय भी है। प्रत्येक वर्ष गुरुकुल का वार्षिकोत्सव होता है। इन पंक्तियों के लेखक को अनेक बार इस गुरुकुल में जाने का अवसर मिला है। जब स्वामी प्रणवानन्द जी और स्वामी धर्मेश्वरानन्द जी ने स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी से संन्यास लिया था तब भी हम वहां उपस्थित थे। अब तक गुरुकुल में तीन बड़े आयोजन हुए हैं। यहां सन् 2002 में 24 लाख गायत्री मन्त्रों से स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी के ब्रह्मत्व में बृहदयज्ञ हुआ था। इसके बाद सन् 2006 में यहां 1 करोड़ 25 पच्चीस लाख गायत्री मंत्र की आहुतियों का वृहद यज्ञ हुआ जो 5 महीने 6 दिन चला था। इस महायज्ञ के ब्रह्मा स्वामी सत्यम् जी थे। तीसरा बड़ा आयोजन सन् 2015 में हुआ था। चतुर्वेद पारायण महायज्ञ सहित इस गायत्री महायज्ञ में भी 1 करोड़ 25 लाख आहुतियां दी गईं थीं। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती एवं स्वामी विद्यादेव जी ने यज्ञ के निर्देशक व ब्रह्मा का दायित्व वहन किया था। यह यज्ञ 5 महीने आठ दिन चला था। यह भी बता दें कि सभी गायत्री महायज्ञों में चतुर्वेद ब्रह्म पारायण महायज्ञ अनिवार्यतः किया जाता रहा।

4 जून, सन् 2019 को गुरुकुल अपने जीवन के 25 वर्ष पूर्ण कर 26 वें वर्ष में प्रवेश करेगा। इस अवसर पर इस गुरुकुल की रजत जयन्ती मनाने योजना बनाई जा रही है। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी का जीवन व इसकी प्रत्येक श्वांस अपने इन नौ गुरुकुलों के लिए है। सभी गुरुकुल प्रगति पथ पर आरूढ़ हैं। इसमें ईश्वर के सहाय व आश्रय सहित स्वामी प्रणवानन्द जी का तप वा पुरुषार्थ भी मुख्य कारक है। हमारा सौभाग्य है कि स्वामी जी महाराज हमें भी बातचीत करने के लिए समय देते हैं और दिल्ली आदि उनके गुरुकुलों में जाने पर निवास व भोजन की ऐसी व्यवस्था मिलती है जो देश की अन्य आर्य संस्थाओं में हमें कभी सुलभ नहीं कराई जाती है। इसका एक अपवाद इस वर्ष 2017 में ऋषि जन्म भूमि स्मारक न्यास, टंकारा का है जहां हमें निवास व भोजन की अच्छी व्यवस्था मिली। स्वामी प्रणवानन्द जी के गुरुकुलों में सम्यक अतिथि सत्कार एक ऐसा कारण है कि उनके सभी गुरुकुल फल-फूल रहे हैं। हम इस अवसर पर स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के स्वस्थ, निरोग, सुखी जीवन एवं दीघार्यु सहित उनके सभी गुरुकुलों की उन्नति की कामना करते हैं।
-मनमोहन कुमार आर्य
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