पर्यावरणविद दाधीच का निधन

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Published on : 25 Jun, 17 11:06

पर्यावरण बचाने के लिए जिये, जाते जाते भी दे गये पेड बचाने का संदेष

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल-लेखक एवं पत्रकार
दुनिया में पेड बचाने, पौधे लगाने (विषेश रूप से नीम का पौधा), जल बचाने, वायु प्रदूशण रोकने, ओजोन पर्त के प्रति चिंतित, औशधीय पौधों की वाटिका लगाने के प्रति जन चेतना जाग्रत करने के लिए छोटे-बडे हर कार्यक्रम से जुडाव रखने वाले कोटा षहर के जाने-माने पर्यावरणविद डॉ. लक्ष्मी कांत दाधीच आज हमारे बीच नहीं रहे। जीवन भर लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करने और स्वयं भी पर्यावरणीय विधियों को अंगीकार करने वाले दाधीच का २३ जून २०१७ को लम्बी बीमारी के चलते कोटा में निधन हो गया। पेडों को कटने से रोकने का संदेष भी वे जाते-जाते दे गये जब उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुरूप इलेक्ट्राॅनिक षवदाह गृह में किया गया। वे पर्यावरण के लिए ही जिये और पर्यावरण के लिए ही मर गये।
पेड हमारे लिए ऑक्सीजन की फैक्ट्री जैसे है। वे हमें न केवल जीवनदायिनी ऑक्सीजन प्रदान करते हैं वरन पेड का तना, पत्ती, फूल एवं फल सभी कुछ मानव जाति के उपयोग के लिए हैं। पेड जब तक रहता है मनुश्यों को देता ही देता है और बदले कुछ नहीं लेता है। जब पेड नहीं और कारखानों व वाहनों से वायु प्रदूशण बढता रहेगा तो एक समय आयेगा कि जब चौराहे पर खडे होने वाले यातायात नियंत्रण पुलिसकर्मी को ही नहीं हमें भी ऑक्सीजन का मास्क लगाकार चलना होगा। आज हमारी नदियां और तालाब प्रदूशण के घेरे में हैं। यद्यपि बडी नदियों को प्रदूशण से मुक्त करने के प्रयास समय-समय पर होते रहते है परन्तु ये प्रयास युद्ध स्तर पर करने की जरूरत है। अपने इन्हीं विचारों को लेकर वे प्रदूशण नियंत्रण की मुहिम चलाते रहे। जागरूकता के लिए जन सहयोग से कभी रैलियां निकाली, संगोश्ठियां और सेमिनार आयोजन किये तथा देष ही नहीं दुनिया के अनेक राश्ट्रों में विविध कार्यक्रमों में भाग लेकर पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता और विचार जाहिर किये।
पर्यावरण मित्र दाधीच को अनेक अन्तर्राश्ट्रीय, देष एवं राज्य मंचों पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किये गये उल्लेखनीय कार्यों के लिए सम्मानित किया गया। इनके कई कार्यों की पहचान लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के कारण दुनिया में हुई। वे पर्यावरणविद के साथ-साथ उच्च कोटि के षिक्षाविद, एवं प्रषासनिक दक्षता के धनी थे।
राजकीय महाविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के लेक्चरार के रूप में अपनी सेवाऐं प्रारंभ की और जानकी देवी बजाज कन्या महाविद्यालय में प्रार्चाय पद से सेवा निवृत हुए। सेवानिवृति के बाद उनकी पत्नी गीता दाधीच को भी राश्ट्रीय पुरस्कार मिला। भगवान वर्धमान महावीर खुला विष्वविद्यालय कोटा में जब १९८८ में बी.जे.एम.सी. का कॉर्स प्रारंभ किया गया तब दाधीच को पाठ्यक्रम का कॉर्डिनेटर बनाया गया। उनके निर्देषन में विभिन्न विशयों पर २१ छात्रों ने षोध कर पीएच.डी. की उपाधी प्राप्त की। उन्होंने पर्यावरण परिशद की स्थापना की, जल बिरादरी कोटा ईकाई के अध्यक्ष रहे, जिला परिशद में लोकपाल के पद पर कार्यरत रहे तथा कई अनेक संस्थाओं में पदाधिकारी एवं सदस्य रहे। उन्होंने सीमाक्षेत्र में बिछाई जाने वाली बारूदी सुरंगों के विरूद्ध तथा छत्रविलास उद्यान में टॉय ट्रेन चलाने के लिए पेडों को काटने से रोकने का अभियान चलाया। सरकार में रहकर भी पर्यावरण की हानी पर विरोध करने से नहीं चूकते थे। उनका जन्म ५ जूलाई १९४९ को बन्दी में डॉ. रमाकान्त षर्मा के घर पर हुआ। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में डॉ. दाधीच के कार्य हमेषा याद किये जायेंगें।
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