-गुरुकुल पौंधा देहरादून में परिवार निर्माण सम्मेलन-

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Published on : 19 Jun, 17 08:06

‘ऋषि दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश आदि सभी ग्रन्थों के नाम उनकी विषय वस्तु के अनुसार सर्वोत्तम नाम हैं: डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री’

आर्ष गुरुकुल पौंधा, देहरादून में शनिवार 3 जून, 2017 को वार्षिकोत्सव के अवसर पर ‘आर्य परिवार निर्माण सम्मेलन’ आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में अनेक विद्वानों के प्रवचन हुए। हम इससे पूर्व कुछ प्रवचन प्रस्तुत कर चुके हैं। शेष डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री एवं डा. सूर्यादेवी चतुर्वेदा जी के प्रवचनों को प्रस्तुत कर हैं।

आर्य परिवार निर्माण सम्मेलन को आर्यजगत के सुप्रसिद्ध विद्वान एवं प्रभावशाली वक्ता डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री जी ने सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द के प्रमुख ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय, पंचमहायज्ञविधि आदि को सभी को पढ़ना चाहिये। ऋषि दयानन्द ने जितने भी ग्रन्थ लिखे हैं व उनके जो नामकरण किये हैं वह उन उन ग्रन्थों के सर्वोत्तम नाम हैं। इन ग्रन्थों के इससे अधिक अच्छे नाम हो ही नहीं सकते। इस पर उन्होंने विचार भी किया और कहा कि यह ऋषि दयानन्द की अद्भुद प्रतिभा का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि सत्यार्थप्रकाश का सत्यार्थप्रकाश से अच्छा दूसरा कोई नाम नहीं हो सकता। इसी प्रकार संस्कारविधि का संस्कारविधि नाम भी सबसे बढ़िया नाम है। विद्वान वक्ता डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने अपने परिवार को आर्य परिवार बनाने के लिए सबको प्रतिदिन यज्ञ करने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि आप लोग प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट का समय तो निकाल ही सकते हैं। उन्होंने कहा कि यज्ञ के पात्रों को स्वयं साफ करें या अपने बच्चों से करायें, नौकरों से नहीं। इससे बच्चों पर अच्छे संस्कार पड़ते हैं।

विद्वान वक्ता ने हिन्दी साहित्यकार डा. नगेन्द्र की बचपन में यज्ञ से जुड़ी एक बहुत प्रभावशाली घटना को प्रस्तुत किया जिसमें उनके पिता अपने पुत्र नगेन्द्र को समाज मन्दिर में यज्ञ के आरम्भ से पूर्व जाकर यज्ञ के पात्रों को साफ करने की आज्ञा देते थे। एक दिन पिता जब आर्यसमाज पहुंचे तो नगेन्द्र अपने साथी के साथ यज्ञ के पात्रों को साफ कर रहे थे। उन्होंने बच्चों को बातंे करते हुए सुना। वह आपस में कह रहे थे कि हमारे पिता तो यज्ञ करके स्वर्ग जायेंगे। वह हमें इस कार्य के लिए सवेरे उठा देते हैं। हमें सोने भी नहीं देते। इसका उन्हें जरा भी ध्यान नहीं था कि उन दोनों के पिता पीछे खड़े उनकी बातें सुन रहे थे। अपने पिता को देखकर नगेन्द्र जी डर गये। पिता नगेन्द्र से बोले धन्य है ऋषि दयानन्द। उनकी कृपा से अब हमारे परिवार व आर्यसमाज में यज्ञ होता है। हमारा जीवन तो अपने पिता के हुक्के भरने में ही बीता है। यज्ञ के बारे में तो वह जानते ही नहीं थे। यह प्रसंग सुनाकर डा. ज्वलन्त कुमार जी ने कहा कि डा. नगेन्द्र जी ने लिखा है कि मैं अपने पिता का आभारी हूं। उन्होंने हमें वेदमंत्र याद कराये। इसी के परिणामस्वरूप मैं संस्कृत व हिन्दी का विद्वान बन सका।

शास्त्री जी ने बताया प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका ‘‘धर्मयुग” के सम्पादक श्री धर्मवीर भारती ने लिखा था कि हमारे घर में सत्यार्थप्रकाश था। हम बचपन में सत्यार्थप्रकाश पढ़ते थे, यह हमें अच्छा लगता था। आचार्य जी ने कहा कि धर्मवीर भारती ने अपने एक मित्र देवीदास का वर्णन भी धर्मयुग के एक अंक में किया था। उसमें उन्होंने लिखा था कि वह सिनेमा देखने जा रहा था। सामने एक किताबों की दुकान आयी। उन्होंने वहां से इच्छानुसार किताबें खरीद लीं। उनमें सत्यार्थप्रकाश और ऋषि दयानन्द का स्वामी सत्यानन्द लिखित जीवन चरित भी था। जीवनी में उन्होंने ऋषि दयानन्द द्वारा अनेक घोड़ों वाली एक बग्घी को अपने ब्रह्मचर्य के बल से रोकने का प्रकरण पढ़ा। कोचवान द्वारा अनेक प्रयत्न करने पर भी वह बग्घी आगे नहीं बढ़ी। धर्मवीर भारती जी ने लिखा है कि हमें वह मित्र अच्छे लगते थे और जीवनी में ऋषि जीवन की अनेक घटनाओं का वर्णन बहुत अच्छा लगा था।

आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने कहा कि बच्चों पर माता-पिता से अधिक दादा-दादी के संस्कार पड़ते हैं। उन्होंने श्रोताओं को कहा कि अपने बच्चों को दादा-दादी के सम्पर्क में रखें। विद्वान आचार्य जी ने ‘सत्यं वद घर्म चर’ शब्दों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि बच्चे माता-पिता व दादा-दादी को देखकर सीखते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी दादी की 92 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई। वह मेरे परिवार के साथ रहतीं थीं। पत्नी ने उनकी उत्तम सेवा की। उन्होंने इससे संबंधित घटना को स्मरण कर कहा कि उनकी मृत्यु के समय जब मेरी पत्नी रो रही थी, तो मेरा बेटा अपनी मां से बोला, मां रो मत, तुमने दादी की जितनी सेवा की है, मैं भी आपकी उतनी सेवा करूंगा। महाभारत का उल्लेख कर शास्त्री जी ने कहा कि द्रोपदी अपनी सास कुन्ती से पूछ कर भोजन बनाती थी। आचार्य जी ने सास के महत्व पर प्रकाश डाला। आचार्य जी ने अमेठी के एक संयुक्त परिवार की चर्चा की जिसमें दादा व दादी हैं, और कहा कि परिवार में चार बच्चे हैं जिनमें से तीन आईएएस हैं।

आर्यजगत की वेदविदुषी डा. सूर्यादेवी चतुर्वेदा जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि हमारे सामने उत्पन्न मनुष्य को आर्य बनाने की चुनौती है। उन्होंने आजकल बच्चों के जन्म दिवस मनाने की चर्चा की और कहा कि इसमें मोमबतियों को जलाकर बुझा देते हैं अर्थात् प्रकाश को महत्व न देकर अन्धकार को महत्व देते हैं। होना तो यह चाहिये कि इस अवसर पर अन्धकार को दूर कर प्रकाश करना चाहिये। उन्होंने कहा कि हमें जन्म दिवस सहित सभी प्रसन्नता के अवसरों पर यज्ञ करना चाहिये। हम जिस दिन यज्ञ करते हैं, हमारा वही दिन सुदिन बन जाता है। वेद विदुषी डा. सूर्यादेवी ने कहा कि हमारे परिवार में अपवित्र साधनों से जो धन आ रहा है इस कारण से हमारे परिवार श्रेष्ठ व्यवहारों से युक्त नहीं बन पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि घरों में प्रत्येक महिला को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिये तभी परिवार में सुख व शान्ति रहेगी। उन्होंने कहा कि परिवार को मिलाकर रखने वाली महिला को योषा कहते हैं। आचार्या सूर्यादेवी जी ने कहा कि यज्ञ करते समय यज्ञकुण्ड में घृत अधिक और सामग्री की मात्रा कम डालनी चाहिये। सभी घरों में परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बैठकर प्रातः व सायं समय में सामूहिक रूप से सन्ध्या करनी चाहिये। यदि हम ऐसा करेंगे तभी हमारे परिवार आर्य परिवार बनेंगे। शास्त्रीय ज्ञान सम्पन्न डा. सूर्या देवी ने कहा कि गाय का पालन व उसके दुग्ध का सेवन करना परिवार में आरोग्य और सौभाग्य को बढ़ाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि जिस परिवार में परस्पर धोखाधड़ी न हो वह परिवार अच्छा होता है। जिस परिवार में कलह न हो, उसी को आर्य परिवार कह सकते हैं। इसी के साथ डा. सूयादेवी जी ने अपने व्याख्यान को विराम दिया।

डा. सूर्यादेवी जी के बाद गुरुकुल के ब्रह्मचारी अनिकेत ने सत्यार्थप्रकाश के तृतीय समुल्लास के आधार पर अपने विचार प्रस्तुत किये। ब्रह्मचारी जी ने ऋषि दयानन्द के अनुयायियों द्वारा उन्हें जोधपुर जाने से रोकने के प्रयत्नों की चर्चा की और स्वामी जी द्वारा उन्हें दिये गये उत्तर को प्रस्तुत किया। उत्तर में स्वामी जी ने कहा था कि कुछ भी अनिष्ट हो जाये, वह जोधपुर अवश्य जायेंगे। ऋषि दयानन्द के प्रमुख अनुयायी व आर्यसमाज के अपने समय के स्तम्भ पं. गुरुदत्त विद्यार्थी की चर्चा कर उन्होंने बतया कि उन्होंने सत्यार्थप्रकाश को अनेक बार पढ़ा था। पं. गुरुदत्त जी के उन वाक्यों को भी वक्ता ने प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने कहा था कि सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ इतना मूल्यवान है कि वह इसे अपनी समस्त सम्पत्ति बेचकर भी खरीदते व पढ़ते। ब्रह्मचारी ने श्रोताओं को बताया कि स्वामी दयानन्द ने देश के सभी लोगों को वेदाध्ययन का अधिकार दिया। ओ३म् शम्
-मनमोहन कुमार आर्य
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