कहे कवि "घनश्याम"..... 'फोड़ा घणा घाले'

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Published on : 18 Jun, 17 08:06



घटिया पाड़ोस,
बात बात में जोश,
कु ठोड़ दुखणियो,
जबान सुं फुरणियो....फोड़ा घणा घाले।

थोथी हथाई,
पाप री कमाई,
उळझोड़ो सूत,
माथे चढ़ायोड़ो पूत....फोड़ा घणा घाले।

झूठी शान,
अधुरो ज्ञान,
घर मे कांश,
मिरच्यां री धांस.... फोड़ा घणा घाले।

बिगड़ोडो ऊंट,
भीज्योड़ो ठूंठ,
हिडकियो कुत्तो,
पग मे काठो जुत्तो.... फोड़ा घणा घाले।

दारू री लत,
टपकती छत,
उँधाले री रात,
बिना रुत री बरसात....फोड़ा घणा घाले।

कुलखणी लुगाई,
रुळपट जँवाई,
चरित्र माथे दाग,
चिणपणियो सुहाग....फोड़ा घणा घाले।

चेहरे पर दाद,
जीभ रो स्वाद,
दम री बीमारी,
दो नावाँ री सवारी....फोड़ा घणा घाले।

अणजाण्यो संबन्ध,
मुँह री दुर्गन्ध,
पुराणों जुकाम,
पैसा वाळा ने 'नाम'....फोड़ा घणा घाले।

ओछी सोच,
पग री मोच,
कोढ़ मे खाज,
मूरखां रो राज....फोड़ा घणा घाले।

कम पूंजी रो व्यापार,
घणी देयोड़ी उधार,
बिना विचार्यो काम
कहे कवि "घनश्याम"....फोड़ा घणा घाले।
साभार :


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