‘मृतक शव को गाढ़ने की अपेक्षा उसका दाह संस्कार करना पर्यावरण, रोगों से बचाव व कृषि आदि अनेक दृष्टियों से उत्तम है’

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Published on : 28 May, 17 11:05

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

कुछ समय पूर्व एक टीवी चैनल पर शव के अन्तिम संस्कार पर एक बहस हुई थी जिसमें हिन्दू, मुस्लिम व अन्य अनेक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और अपने अपने मत के समर्थन में विचार प्रस्तुत किये। आज भी अधिकांश व सभी ईसाई व मुस्लिम बन्धु अपने शवों का अन्तिम कर्म अपने शवों को भूमि में गाढ़ कर ही करते हैं। शव को गाड़ने का विधान भी बाइबिल आदि ग्रन्थों में है। ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश के तेरहवें समुल्लास में ईसाई मत की समीक्षा की है। बाईबिल के तौरेत के उत्पत्ति पर्व 23 की आयत 6 को उन्होंने प्रस्तुत किया है। यह आयत है ‘सो आप हमारी समाधिन (कब्र) में से चुन के एक में अपने मृतक को गाड़िये जिस तें आप अपने मृतक को गाड़े।’ अंग्रेजी में यह आयत इस प्रकार है ‘In the choice of our sepulchers bury thy dead…. But that thou mayest bury the dead (XXIII. 6.)’। इसकी समीक्षा करते हुए स्वामी दयानन्द जी ने लिखा है कि मुर्दों के गाड़ने से संसार को बड़ी हानि होती है क्योंकि वह सड़ के वायु को दुर्गन्धमय कर रोग फैला देता है। इसके साथ स्वामी जी ने प्रतिपक्षियों की ओर से स्वयं एक प्रश्न प्रस्तुत किया है कि देखो ! जिससे प्रीति हो उसको जलाना अच्छी बात नहीं और गाड़ना जैसा कि उसको सुला देना है इसलिए गाड़ना अच्छा है। इसका समाधान करते हुए स्वामी जी लिखते हैं कि जो मृतक से प्रीति करते हो तो अपने घर में क्यों नहीं रखते? और गाड़ते भी क्यों हो? जिस जीवात्मा से प्रीति थी वह निकल गया, अब दुर्गन्धमय मट्टी से क्या प्रीति? और जो प्रीति करते हो तो उसको पृथिवी में क्यों गाड़ते हो क्योंकि किसी से कोई कहे कि तुझ को भूमि में गाड़ देवें तो वह सुन कर प्रसन्न कभी नहीं होता। उसके मुख आंख और शरीर पर धूल, पत्थर, ईंट, चूना डालना, छाती पर पत्थर रखना कौन सा प्रीति का काम है? और सन्दूक में डाल के गाड़ने से बहुत दुर्गन्ध होकर पृथिवी से निकल वायु को बिगाड़ कर दारुण रोगोत्पत्ति करता है। दूसरा एक मुर्दे के लिए कम से कम 6 हाथ लम्बी और 4 हाथ चैड़ी भूमि चाहिए। इसी हिसाब से सौ, हजार वा लाख अथवा क्रोड़ो मनुष्यों के लिए कितनी भूमि व्यर्थ रुक जाती है। न वह खेत, न बगीचा, और न बसने के काम की रहती है। इसलिये सब से बुरा गाड़ना है, उससे कुछ थोड़ा बुरा जल में डालना, क्योंकि उसको जलजन्तु उसी समय चीर फाड़ के खा लेते हैं परन्तु जो कुछ हाड़ वा मल जल में रहेगा वह सड़ कर जगत् को दुःखदायक होगा। उससे कुछ एक थोड़ा बुरा जंगल में छोड़ना है क्योंकि उसको मांसाहारी पशु पक्षी लूंच खायेंगे तथापि जो उसके हाड़, हाड़ की मज्जा और मल सड़ कर जितना दुर्गन्ध करेगा उतना जगत् का अनुपकार होगा, और जो जलाना है वह सर्वोत्तम है क्योंकि उसके सब पदार्थ अणु होकर वायु में उड़ जायेंगे।

(प्रश्न) जलाने से भी दुर्गन्ध होता है। (उत्तर) जो अविधि से जलावें तो थोड़ा सा होता है परन्तु गाड़ने आदि से (जलाने में) बहुत कम होता है। और जो विधिपूर्वक जैसा कि वेद में लिखा है-वेदी मुर्दे के तीन हाथ गहिरी, साढ़े तीन हाथ चैड़ी, पांच हाथ लम्बी, तले में डेढ़ हाथ बीता अर्थात् चढ़ा उतार खोद कर शरीर के बराबर घी उसमें एक सेर में रत्ती भर कस्तूरी, मासा भर केशर डाल न्यून से न्यून आध मन चन्दन अधिक चाहें जितना ले, अगर-तगर, कपूर आदि और पलाश आदि की लकड़ियों को वेदी में जमा, उस पर मुर्दा रख के पुनः चारों ओर ऊपर वेदी के मुख से एक-एक बीता तक भर के उस घी की आहुति देकर जलाना लिखा है। उस प्रकार से दाह करें तो कुछ भी दुर्गन्ध न हो किन्तु इसी का नाम अन्त्येष्टि, नरमेध, पुरुषमेध यज्ञ है। और जो दरिद्र हो तो बीस सेर से कम घी चिता में न डालें, चाहे वह भीख मांगने वा जाति वालांे के देने अथवा राज्य से मिलने से प्राप्त हो परन्तु उसी प्रकार दाह करे। और जो घृतादि किसी प्रकार न मिल सके तथापि गाड़ने आदि से केवल लकड़ी से भी मृतक का जलाना उत्तम है क्योंकि एक विश्वा (20 फीटx20 फीट) भर भूमि में अथवा एक वेदी में लाखों क्रोड़ों मृतक जल सकते हैं। भूमि भी गाड़ने के समान अधिक नहीं बिगड़ती और कबर के देखने से भय भी होता है। इससे गाड़ना आदि सर्वथा निषिद्ध है।

मृतक के शव का वैदिक रीति से दाह संस्कार करना ही अतीत, वर्तमान में उत्तम रहा है और भविष्य के लिए भी उत्तम है। ऐसा करने से वायु में विकार न होने से रोगों से होने वाले दुःखों से मुक्ति होती है, शव को दफनाने में जो भूमि बेकार होती है, उससे कृषि की हानि होती है, उससे भी लाभ होता है और वायु विकार न होने से हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है। आज के वैज्ञानिक युग में जब कुछ मतों व धर्मों के लोग शव को दफनाने की मध्यकालीन परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं तो यह आश्चर्यजनक लगता है। ऐसा करना बुद्धि व ज्ञान सहित मानव हितों व देश हित के विरुद्ध है। विज्ञान के द्वारा कम्प्यूटर, हवाई जहाज, रेलगाड़ी, कार, स्कूटर आदि की खोज हुई तो सभी मतों व धर्मों ने आंख बन्द कर इन्हें अपना लिया, किसी ने अपनी अपनी परम्पराओं की दुहाई नहीं दी, इसी प्रकार शव का दाह करने में भी सत्य को ग्रहण कर असत्य को छोड़ने का उदाहरण सभी मतों व सम्प्रदायों को देना चाहिये। इससे देश व संसार का हित होगा। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य
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