सभी आर्य बन्धुओं को प्रभावशाली वक्ता व वेद प्रचारक बनने का अभ्यास करें: आचार्य आशीष दर्शनाचार्य”

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Published on : 26 May, 17 10:05

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून के ग्रीष्मोत्सव के 14 मई 2017 को समापन समारोह में व्याख्यान करते हुए आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी ने कहा कि हम यहां सब एक वृहत परिवार के सदस्यों के रूप में उपस्थित हैं। आप लोग किस प्रकार से आगे बढ़े इस विषय पर आप सब मंथन करते होंगे? आज यहां ‘स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती स्मृति समारोह’ को मनाते हुए इस विषय का भी मंथन करें कि हम अपने इस वृहद आर्य परिवार व अपने निजी परिवारों को कैसे आगे बढ़ायें? परिवार आपस में प्रेम, सौहार्द, आत्मीयता, अपनत्व आदि गुणों को अपनाने से उन्नत होता है। इन गुणों को जीवन में धारण कर परिवार व उसके सदस्य दृण बनते हैं। विद्वान आचार्य आशीष जी ने आगे कहा कि सभा का प्रभावशाली ढंग से संचालन करना और एक समर्थ वक्ता के अच्छे गुण इस सभागार में उपस्थित सभी बन्धुओं में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने अन्दर छुपे सामथ्र्य का उपयोग सीख लें तो इससे हमारे एक प्रभावशाली सफल वक्ता व प्रचारक बनने की योग्यता में वृद्धि हो सकती है। आचार्य जी ने कहा कि अधिकांश लोगों में व्याख्यान देने के प्रति संकोच का भाव देखा जाता है। हम लोग अपने आस पास के लोगों को अपने ज्ञान के अनुसार सीखाने का प्रयास भी व्याख्यान करने की क्षमता न होने के कारण नहीं कर पाते हैं। इसका कारण हमारे अन्दर संकोच के भाव का होना है। आचार्य जी ने श्रोताओं को कहा कि आपके अन्दर महान सामथ्र्य विद्यमान है। आप सभी लोग बच्चों को अपने पास बैठायें और उन्हें आर्यसमाज व वैदिक धर्म की मान्यताओं को सिखाने का प्रयास करें। इसका आप आज यहां संकल्प लें। यदि यहां बैठे लोग इतना साहस कर लें तो वह अपनी अपनी योग्यता के आधार पर बड़ी संख्या में मिशनरी प्रचारक बन जायेंगे। आचार्य जी ने कहा कि जब सत्य को फैलाने की बात आती है तो हम स्वयं को अर्थ के दान तक ही सीमित कर लेते हैं। यहां उपस्थित सभी लोग अपने भीतर एक सफल व प्रभावशाली वक्ता बनने की सामथ्र्य विकसित करने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति तर्क से ही किसी बात को नहीं समझते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आपसी मधुर सम्बन्ध बनने पर उपदेशक के व्यवहार को देख कर बात समझते हैं। पहले दूसरों के प्रति अपनत्व का भाव बनाकर उनके प्रति संवेदनशील बनना होगा और उसके बाद ही तर्क से उन्हें अपनी बातों को समझाया जा सकता है। आचार्य जी ने श्रोताओं को अपनी सामथ्र्य पहचानने का आह्वान किया। उन्होंने इसके समर्थन में लोगों को हाथ खड़ा करने को कहा। लोगों ने अपनी स्वीकृति में हाथ खड़े किये और अपनी यह इच्छा प्रकट कि वह अपने अन्दर अच्छा वक्ता बनने की सामथ्र्य का विकास करेंगे और उससे वैदिक धर्म का प्रचार करेंगे। वैदिक धर्म के प्रचार का अर्थ है सत्य विचारों, मान्यताओं व सिद्धान्तों को देश व समाज में फैलाना। इन्हें फैलाने में सभी श्रोतागण आगे आकर कार्य करेंगे।

आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी ने आर्यसमाज में होने वाले साप्ताहिक सत्संगों की चर्चा की और कहा कि आर्यसमाज में होने वाले यज्ञ, भजन व व्याख्यान में से लगभग 20 मिनट का समय बच्चों वा युवाओं को देना चाहिये जिससे वह माइक पर श्रोताओं के सामने किसी विषय को निःसंकोच भाव से प्रस्तुत करने का अभ्यास कर सके। उन्होंने आर्य समाज के अधिकारियों को यह भी परामर्श दिया कि आर्यसमाज के सत्संगों का संचालन बच्चों वा युवाओं से बदल बदल कर कराना चाहिये जिससे उनमें एक अच्छे वक्ता बनने के गुणों का विकास हो सके। इसके अतिरिक्त भी उन्हें आर्यसमाजों में अन्य प्रकार की अपनी प्रस्तुतियों के लिए समय दिया जाना चाहिये। आर्यसमाज के सत्संगों व अन्य आयोजनों में आर्यसमाज के स्थापित विद्वान वक्ताओं द्वारा अपने व्याख्यान के प्रथम 20 मिनटों में बच्चों व युवाओं से बातें करनी चाहियें और उन्हें उद्बुद्ध करने का प्रयास करना चाहिये। ऐसा करने से आर्यसमाज के सत्संगों में बच्चों व युवाओं की संख्या बढ़ेगी। आचार्य जी ने कहा कि आर्यसमाज के सत्संग कार्यक्रम यदि इस प्रकार बदलेंगे तो इससे सकारात्मक परिवर्तन आयेगा।

आचार्य जी ने कहा कि बच्चों के मन में अनेक शंकायें व प्रश्न होते हैं जिनका समाधान उन्हें अपने घर में माता-पिता व अन्य परिवारजनों से नहीं मिल पाता। इसका समाधान हम यहां तपोवन आश्रम में शिविर लगाकर प्रस्तुत करते हैं। बच्चों व युवाओं को उनकी आयु के अनुसार वीडियों दिखाने सहित ज्ञानवृद्धि के अन्य तरीकों से उन्हें वैदिक धर्म व समाज विषयक जानकारी देते हैं जो उन्हें अपनी पुस्तकों व परिवार जनों से प्राप्त नहीं होती। आचार्य जी ने आगामी जून, 2017 में युवक व युवतियों के लिए पृथक पृथक लगाये जा रहे दो शिविरों की जानकारी भी दी। आचार्य जी ने यह भी बताया कि उन्होंने विगत शिविरों में ऐसे बच्चे तैयार किये हैं जो दूसरे बच्चों को प्रशिक्षण दे सकते हैं। आचार्य जी के इस व्याख्यान की मंचस्थ सभी विद्वानों एवं सभागार में उपस्थित श्रोताओं से करतल-ध्वनि कर सराहना एवं प्रशंसा की। उनके बाद आर्य विद्वान श्री उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का प्रवचन हुआ। उन्होंने अपने व्याख्यान के आरम्भ में कहा कि वह आचार्य आशीष जी के विचारों से पूर्णतः सहमत है। आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का व्याख्यान हम अपने आगे के लेखों के माध्यम से प्रस्तुत करेंगे। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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