‘गुरुकुल पौंधा देहरादून के 18वें वार्षिकोत्सव को सफल बनाने के लिए आचार्य धनंजय जी का स्थानीय लोगों में सघन प्रचार’

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Published on : 23 May, 17 09:05

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौन्धा, देहरादून का आगामी 18हवां तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव शुक्रवार 2 जून 2017 से रविवार 4 जून, 2017 तक सोल्लास आयोजित किया जा रहा है। इस आयोजन में 12 दिन शेष हैं। गुरुकुल के आचार्य धनंजय जी उत्सव को सफल बनाने के लिए रात दिन पुरुषार्थ कर रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले वह अन्न संग्रह के लिए दूर-दूर की लम्बी यात्रायें करने सहित उन-उन स्थानों पर वेद प्रचार आयोजन भी सम्पन्न करा रहे थे जिसकी जानकारी हमने अपने एक लेख द्वारा दी थी। उसके बाद से वह अपने गुरुकुल के उत्सव की तैयारी में जुटे हुए हैं। यज्ञ के लिए घृत, समिधाओं व यज्ञ सामग्री का प्रबन्ध वह कर चुके हैं। अतिथियों के लिए भोजन की सामग्री आदि की कुछ अन्य व्यवस्थायें भी उन्हें अभी सम्पन्न करनी हैं। उत्सव में देश व स्थानीय स्तर से अधिक से अधिक लोग आयें इसके लिए वह प्रतिदिन प्रातः 6.00 बजे ही निकल पड़ते हैं और आर्यसमाजों से जुड़े प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के घर जाकर उसे निमंत्रण पत्र देने के साथ आग्रह करते हैं कि वह तीनों दिन उत्सव में अवश्य पधारें। सभी स्थानीय व बाह्य स्थानों से आने वाले ऋषि भक्तों को डाक से भी निमंत्रण पत्र भेजे जा चुके हैं। हम इस गुरुकुल की स्थापना के आरम्भ से ही जुड़े हुए हैं। हमारा देहरादून में जिन आर्य व अन्य मित्रों से सम्पर्क था, उन सभी को गुरुकुल व इसके उत्सवों से जोड़ने का प्रयास किया गया है। पूरे देहरादून में फैले हुए सभी मित्रों के निवास पर डा. धनंजय जी व हम जातें हैं और उन्हें गुरुकुल पहुंचने की प्रार्थना करते हैं। इसका अच्छा परिणाम होता है। हमारे अतिरिक्त भी आचार्य जी अकेले भी प्रत्येक दिन एक सूची बनाकर अन्य अनेक ऋषिभक्त एवं गुरुकुल प्रेमियों के निवास पर पहुंच कर उन्हें गुरुकुल के उत्सव में आने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।

तीन दिवसीय गुरुकुल के उत्सव के आयोजन में सामवेद पारायण यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। गुरुकुल में इस अवसर पर 29 मई, 2017 से बृहस्पतिवार 1 जून, 2017 तक एक स्वाध्याय शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है। इस शिविर में ऋषि दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश व ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का विशेष रूप से स्वाध्याय व अध्ययन सम्पन्न कराने का प्रयास किया जायेगा। इस शिविर के अध्यक्ष, शिक्षक व व्याख्याता डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई है। डा. सोमदेव शास्त्री जी का गुरुकुल के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी व इस गुरुकुल से विशेष प्रेम है। यही कारण है कि वह दूरस्थ मुम्बई से प्रत्येक वर्ष यहां पधारते हैं। आप यहां स्वाध्याय शिविर सहित यज्ञ के ब्रह्मा बन कर यज्ञ सम्पन्न कराते हैं और अनेक विषयों पर प्रभावशाली उपदेश व व्याख्यानों से ऋषिभक्तों की सेवा करते हैं। उत्सव के ही अवसर पर सार्वदेशिक आर्यवीर दल प्रशिक्षण शिविर का आयोजन 5 जून से 20 जून, 2017 तक सम्पन्न किया जायेगा जिसे स्वामी देवव्रत सरस्वती जी सम्पन्न करायेंगे। यह भी बता दें इस वर्ष उत्सव में अनेक विद्वानों को आमंत्रित किया गया है। प्रमुख विद्वान हैं स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, आचार्य बालकृष्ण, पतंजलि योगपीठ, डा. सूर्यादेवी चतुर्वेदा, डा. वेदप्रकाश श्रोत्रिय, स्वामी श्रद्धानन्द, डा. रघुवीर वेदालंकार, डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री, प्रो. महावीर, डा. धर्मेन्द्र कुमार शास्त्री, आर्यकवि सारस्वत मोहन मनीषी, श्री धर्मपाल आर्य, आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, पं. धर्मपाल शास्त्री, श्री वीरेन्द्र शास्त्री, श्री रविदेव गुप्ता। भजनोपदेशकों में श्री ओम प्रकाश वर्मा, यमुनानगर, पं. सत्यपाल पथिक जी, पं. सत्यपाल सरल एवं पं. कुलदीप आर्य जी आदि पधार रहे हैं। जो बन्धु उत्सव में आना चाहें वह आने से पूर्व अपनी किसी भी शंका व मार्गदर्शन के लिए दूरभाष संख्या 09411106104, 8810005096 तथा 9411310530 में से किसी एक फोन नं. पर सम्पर्क कर सहायता प्राप्त कर सकते हैं जिससे उन्हें असुविधा न हो।

इस उत्सव को सफल बनाने के लिए कल 21 मई, 2017 को हम आचार्य धनंजय जी के साथ अपने अनेक मित्रों के निवास स्थानों पर उन्हें उत्सव में आमंत्रित करने के लिए गये। हमारे अधिकांश मित्र 60 व उससे अधिक आयु वर्ग के हैं। यहां हम दो मित्रों का उल्लेख करना चाहते हैं। पहले मुख्य व्यक्ति श्री चण्डी प्रसाद शर्मा जी हैं जो देहरादून के मोहेब्बेवाला क्षेत्र में रहते हैं। आयु 86 वर्ष है। ऋषि दयानन्द से अपने विद्यार्थी जीवन से ही गहराई से जुड़े हैं। आपने वेद भाष्य सहित ऋषि के सभी ग्रन्थों का अनेक बार अध्ययन किया है। इसके साथ ही आपने समस्त आर्य साहित्य को भी बहुत दत्तचित्त होकर श्रद्धा के साथ पढ़ा है। आप किसी आर्यसमाज के सदस्य नहीं हैं और न ही आर्यसमाज के अधिकारियों को उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का परिचय ही है। कभी कोई उनसे मिलता भी नहीं है। आचार्य जी और हम भी गुरुकुल के उत्सव से कुछ दिन पहले ही उनसे जाकर मिलते हैं और वार्तालाप करते हैं। दो वर्ष पूर्व हमारे निवेदन पर वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून ने उनका अभिनन्दन किया है। हमें याद है कि इसके लिए हम बहुत मुश्किल से उन्हें मना पाये थे। हमने यह भी अनुभव किया है कि आर्यसमाजों में कई बार इतने अधिक वक्ता हो जाते हैं कि हम अभिनन्दन किये जाने वाले मुख्य अतिथियों को भी अपनी बात कहने का यथोचित समय नहीं दे पाते। मुख्य-मुख्य विद्वानों के उपदेश का समय बाद में रखा जाता है और तब तक समय व्यतीत हो जाने पर उन्हें कहा जाता है कि वह अपनी बात पांच या दस मिनट में पूरी कर लें। आरम्भ में जो वक्ता व भजनोदपेशक आदि बोलते हैं वह लाभ में रहते हैं और पर्याप्त समय लेते हैं। विगत वर्ष से गुरुकुल में इस परिपाटी को थोड़ा बदला गया है। अब यहां मुख्य वक्ताओं को पहले बोलने का समय दिया जाता है और बाद में शेष वक्ताओं को। गुरुकुल के आचार्य जी ने विगत वर्ष इस परिपाटी को गुरुकुल में क्रियान्वित कर अनुभव किया कि उनका यह प्रयास सफल रहा व आयोजन में पधारे शीर्ष विद्वान अपनी बातें सन्तोषपूर्वक श्रोताओं तक पहुंचा सके थे। श्री चण्डी प्रसाद शर्मा जी का सारा समय सन्ध्या, यज्ञ, स्वाध्याय, साधना आदि में ही व्यतीत होता है। वह वेदों का अनेक बार स्वाध्याय कर चुके हैं। ऋषि दयानन्द में उनकी अटूट भक्ति है। कल भी वह कह रहे थे कि वह अपने जीवन में पूर्ण सन्तुष्ट हैं और उनका जीवन आनन्द से सराबोर है। इसका कारण ऋषि दयानन्द के ग्रन्थ और वैदिक सिद्धान्त व उनका आचरण ही है। हमने श्री शर्मा जी के विषय में यह भी अनुभव किया है कि उनका प्रत्येक आचरण वैदिक सिद्धान्तों के सर्वथा अनुरूप है। वेद व आर्य मर्यादाओं के विपरीत वह कोई कार्य नहीं करते। गुरुकुल के कार्यों के लिए उन्होंने सहयोग के लिए धनदान भी किया। अतिथि सत्कार का भी वह ध्यान रखते हैं। उनकी इच्छा अपने जीवन में ‘जीवेम शरदः शतं, अदीनाः स्याम शरदः शमं’ को सार्थक करने की है। इस अवसर का आचार्य धनंजय जी के साथएक चित्र सहित अन्य कुछ चित्र भी दे रहे हैं।

दूसरे मित्र जिनका हम उल्लेख कर रहे हैं वह श्री विनय मोहन सोती जी हैं। आयु के 86 वर्ष पूर्ण कर रहे हैं। इसी वर्ष के आरम्भ में उनकी धर्मपत्नी जी का देहान्त हुआ है। एक बार आप व आपकी धर्मपत्नी जी हमारे साथ टंकारा सहित द्वारका व सोमनाथ आदि स्थानों की यात्रायें कर चुके हैं। आप ऋषि भक्त हैं। सन्ध्योपासना नियमित रूप से करते हैं। जब तक स्वस्थ व सुगमता पूर्वक चलते फिरते रहे, आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के सत्संगों में जाते रहे। अब वार्धक्य एवं शारीरिक दुर्बलता के कारण कुछ समय से सत्संगों में नहीं जा पा रहे हैं। आपने देहरादून के स्वामी श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम को भी अपनी सेवायें दी हैं। वर्षों पूर्व देहरादून आर्यसमाज में एक अपंग ऋषिभक्त श्री संसार सिंह रावत रहते थे। आप ऋषि भक्त थे और विद्यार्थियों को निःशुल्क अनेक विषय पढ़ाते थे। हमारे साथ कार्य करने वाले एक वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री एम.के. खन्ना ने हमें बताया था कि वह भी श्री संसार सिंह रावत जी के शिष्य रहे। श्री सोती जी को हमने अनेक बार देखा कि वह श्री रावत जी के लिए भोजन बनवाकर ले जाया करते थे। ऐसा और अनेक लोग भी करते थे। श्री रावत के जीवन का दुःखद प्रसंग यह था कि वह आर्यसमाज के तिकड़मबाज नेताओं का विरोध करते थे जिस कारण अधिकरियों ने उन्हें जीवन भर पीड़ित किया और मृत्यु से कुछ वर्ष पूर्व आर्यसमाज से उनका सामान उठवा कर फेंक दिया था और उन्हें निकाल दिया था। अब वह इस संसार में नहीं हैं। आर्य भजनोपदेशक श्री ओम्प्रकाश वर्मा, यमुना नगर उनसे विशेष प्रभावित थे और जहां जहां आर्यसमाजों में जाते थे, श्री संसारसिंह रावत की ऋषि भक्ति के उदाहरण प्रस्तुत करते थे। हमने 15-20 वर्ष पूर्व अनेक बार श्री विनय मोहन सोती जी के निवास पर यज्ञ एवं सत्संग का आयोजन भी किया था। उनका अब भी आर्यसमाज व इसके कार्यों में उत्साह बरकरार है। आपने आचार्य जी को दान भी किया और कहा कि वह अपने पुत्र के साथ गुरुकुल अवश्य आयेंगे। उनका यह उत्साह हम लोगों को विशेष प्रेरणा प्रदान करता है। आचार्य धनंजय जी के साथ कल 21 मई को लिये गये उनके कुछ चित्र भी अवलोकनार्थ दे रहे हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001

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