नैसर्गिक सौन्दर्य के कारण पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण

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Published on : 28 Mar, 17 21:03

उल्लेखनीय है कि नगर विकास प्रन्यास द्वारा विगत वर्षो में इन पहाडयों के सरंक्षण हेतु समय-समय पर विभिन्न विभागों से समन्वय स्थापित कर उनके प्रस्ताव एंव सुझाव लिये जाते रहे हैं

नैसर्गिक सौन्दर्य के कारण पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण उदयपुर नगर चार ओर पहाडियों से गिरा हुआ झीलो का शहर है। यह पहाडियां शहर की फतहसागर पिछोला तथा उदयसागर का केंचमेन्ट होने के साथ-साथ अपनी नैसर्गिक सौन्दर्य के कारण पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। लेकिन विगत वर्षो में कतिपय व्यक्तियों द्वारा निजी स्वाथो के लिये इन पहाडियों का अनियोजित तरीकों से कटाव किया जा रहा है। जो न केवल झीलों के जीवन पर कुठाराघात है अपितु शहर के नैसर्गिक सौंन्दर्य को भी प्रभावित कर रहा है। यह बात मंगलवार को नगर विकास प्रन्यास में पहाडयों के संरक्षण को लेकर विषय विशेषज्ञों की बुलाई गई बैठक में प्रन्यास अध्यक्ष रवीन्द्र श्रीमाली ने कही
उल्लेखनीय है कि नगर विकास प्रन्यास द्वारा विगत वर्षो में इन पहाडयों के सरंक्षण हेतु समय-समय पर विभिन्न विभागों से समन्वय स्थापित कर उनके प्रस्ताव एंव सुझाव लिये जाते रहे हैं। इसी क्रम में यह बैठक बुलाई गई, जिसमें उनसे सुझाव देने का अनुरोध किया गया। उदयपुर के अधोघोषित नगरीय क्षैत्र में १३० राजस्व ग्राम है। जिनमें लगभग ९२ पहाडियां हैं। श्रीमाली ने कहा कि शहर के पर्यटन विकास के लिये पहाडयों के अस्तित्व को नष्ट करने की कीमत पर कोई भी विकास उचित नहीं होगा। क्योकिं इन पहाडियों के कारण ही झीलों का अस्तित्व है और झीलों को बचाये रखना बेहद जरूरी है। सेवानिवृत मुख्य नगर नियोजक राजस्थान श्री एच.एस.संचेती ने कहा कि शहर की किसी एक पहाडी को लेकर उसका मॉडल तैयार करवाया जाये जिस पर निर्माण के लिये रिसार्ट भवन की डिजाईन, रोड नेटवर्क, जिससे यह समझा जा सके कि यदि इस मॉडल के अनुरूप भवन निर्माण किया जाता है तो पहाडी की कितनी कटिंग होगी और उस पर बनने वाले भवन का स्वरूप कैसा होगा। सुखाडया विश्व विद्यालय भूगोल विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ.आर.एम. लोढा का सुझाव था कि नगरीय विकास के लिये पहाडियां काटने की बजाय नया सेटेलाईट टॉउन विकसित किया जाये। जल संसाधन विभाग के पूर्व अधीक्षण अभियन्ता जी.पी. सोनी ने कहा कि नगरीय विकास आवश्यक है, लेकिन विकास से पूर्व पहाडियों का ढलान इस तरह निर्धारित किया जाये कि वह व्यवहारिक रूप से उचित हो। पूर्व मुख्य वन संरक्षक एस.के. वर्मा का कहना था कि पहाडियों का ढलान निर्धारित करते समय ० से ५ डिग्री, ५ से ११ डिग्री, ११ से १५ डिग्री और १५ से २० डिग्री का ढलान सुनिश्चित किया जाकर उन पर विकास के प्रस्ताव तैयार किये जा सकते हैं।

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