बायो-टेक्नोलोजी फार्मेसी क्षेत्र में प्रभावशाली ः डॉ भास्वत

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Published on : 25 Mar, 17 08:03

बायो-टेक्नोलोजी फार्मेसी क्षेत्र में प्रभावशाली ः डॉ भास्वत उदयपुर | गीतांजली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, बायो-टेक्नोलोजी विभाग एवं इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के संयुक्त तत्वाधान में २ दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन समारोह गीतांजली सभागार में हुआ जिसका विषय‘दवा के भविष्य में फार्मास्यूटिकल प्रौद्योगिकी का प्रभाव‘ था। इस कार्यशाला का डॉ भास्वत एस चक्रबर्ती वक्ता वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अध्यक्ष-अनुसंधान और विकास कोर समिति, डॉ एससी तिवारी प्रिंसिपल साइंटिस्ट-आर एंड डी (केमिकल टेक्नोलोजी), डॉ एमएस राणावत डीन फेकल्टी ऑफ फार्मेसी बीएन यूनिवर्सिटी, डॉ सीपी जैन प्रो. एमएलएसयू, डॉ पीके चौधरी प्रो. एमएलएसयू, आलोक भार्गव कार्यकारी समिति सदस्य फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया, डॉ वायएस सारंगदेवत प्रिंसिपल बीएन कॉलेज ऑफ फार्मेसी, डॉ अशोक दशोरा कार्यक्रम संयोजक और डीन गीतांजली कॉलेज ऑफ फार्मेसी एवं कार्यक्रम सचिव डॉ कल्पेश गौड द्वारा दीप प्रजवल्लन से हुआ।
सम्मेलन की शुरुआत में डॉ अशोक दशोरा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यशाला के प्रथम वक्ता डॉ भास्वत ने ’भारत में बायोसिमिलर्स के नैदानिक विकास‘ पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि बायो-टेक्नोलोजी का फार्मेसी के क्षेत्र में काफी प्रभाव है। उन्होंने बायोसिमिलर्स के सिद्धांत एवं बायोसिमिलेरिटी निर्धारण के उद्देश्य के बारे में बताया। उन्होंने यह भी कहा कि एक बायोसिमिलर के विकास में साढे सात वर्ष का समय लगता है जो किसी भी जेनेरिक दवा के समय से ज्यादा है जिसके विकास में पांच वर्ष लगते है। उन्होंने कहा कि भारत में बायोलोजी के निर्देशों का लाइसेंस होना चाहिए। उन्होंने संरचनात्मक विश्लेषण, प्रोटीन लक्षण, इम्यूनो जेनेसिटी, बायोसिमिलर के नैदानिक विकास के लिए आवश्यक डेटा, बायोसिमिलर विकास का अध्ययन और डिजाइन का विस्तृत वर्णन दिया। डॉ एससी तिवारी ने ’औषधि विज्ञान में बायो-टेक्नोलोजी का परिचय एवं आवेदन‘ पर बात की। उन्होंने बताया कि हजारों सालों से बायो-टेक्नोलोजी का उपयोग बेहतर भोजन, स्वास्थ्य देखभाल उत्पादों और पर्यावरण उपचार के लिए किया जाता है। उन्होंने बायो-टेक्नोलोजी के विकास का इतिहास, शास्त्रीय एवं आधुनिक युग के बारे में भी बताया। उन्होंने बायो-टेक्नोलोजी का विभिन्न रंगों से वर्गीकरण किया जिसमें सफेद (औद्योगिक), हरा (कृषि), नीला (समुद्री) एवं कबूतरी रंग (पर्यावरण व स्वच्छता) शामिल है। कबूतरी बायो-टेक्नोलोजी के बढते हिस्से को प्लास्टिक और कचरे के उपचार में पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने बायो-टेक्नोलोजी के उपकरण भी बताए जिनमें बायो-प्रोसेसिंग और जेनेटिक इंजीनियरिंग शामिल है। उन्होंने बायो-टेक्नोलोजी के प्रयोगों को मूल कोशिकाओं के उदहारण से समझाया। डॉ नितिन कुमार जैन ने ’बायो फार्मास्युटिकल और भारतीय परिप्रेक्ष्य‘ पर प्रस्तुति दी। उन्होंने २००३ व २०१३ की दवाओं में तुलना करते हुए बताया कि २००३ में दस में से केवल एक दवा में बायो-टेक्नोलोजी उत्पाद का उपयोग किया गया था जब कि २०१३ में दस में से सात दवाओं में बायो-टेक्नोलोजी उत्पाद का उपयोग किया गया है। उन्होंने बायो-टेक्नोलोजी उत्पादों के विकास के लिए विस्तारित नियम भी प्रस्तुत किए। उन्होंने बायो-टेक्नोलोजिकल आविष्कारों को पेटेंट कराने के मुद्द पर भी बात की।
डॉ कल्पेश ने बताया कि इस राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्देश्य बायो-टेक्नोलोजिकल अत्याधुनिक तकनीकें, नवीनतम विकास और कुशल तरीकों का प्रदर्शन करना है और साथ ही शिक्षा, उद्योग एवं संस्थानों के बीच सहयोग और फार्मास्युटिकल बायो-टेक्नोलोजिकल में कौशल विकास को लागू करना है। इस कार्यशाला में पूरे भारत भर से १२२ पोस्टर व १४ मौखिक प्रस्तुति के आवेदन आए है। कार्यशाला का संचालन डॉ उदिचि कटारिया व संतोष कितावत ने किया। इस कार्यशाला में ४०० से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था।

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