विपरीत हवाओं में साहस की पतवार

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Published on : 22 Mar, 17 17:03

--ज्योत्सना सक्सेना

विपरीत हवाओं में साहस की पतवार
तप्त रेत में मुस्कुराते मेघों की पदचाप
कुदरत का हर तिनका अपने आप में है एक कविता ----
मयूरी सा मन नर्तन अदाकारी का उल्लास
गौरैया सा चहकना चींटी सा विश्वास
बगुलों की पांत छापती है नभ में एक कविता ----
गदराये पलाश संवेदनाओं का ताप
कोयल आलाप लहराते आम्रपल्लव
फागणी बयार में इतराती है एक कविता ----
मुट्ठी में चाँद तारों की ओढ़नी
लबालब ख़ुशी में ज्योत्स्ना
इन्द्रधनुष वितान में झुलाती है एक कविता ----
रस में रास में भक्ति और श्रृंगार में
ओज हो सेज हो सुदामा का वेश हो
कान्हा की मुरलिया बन जाती है एक कविता ----
यक्ष यक्षिणी का शाश्वत संवाद हो
प्रणयी कपोत का स्पर्श नाद हो
दिगंतराल तक माधुर्य फैलाती है एक कविता ----

साभार :


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