खरपतवार प्रबन्धन पर दो दिवसीय वार्षिक समीक्षा बैठक

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Published on : 28 Feb, 17 08:02

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ एस. भास्कर, आइसीऐआर के उपमहानिदेशक (शस्य विज्ञान वानिकी, खाद्य एवं जलवायु परिवर्तन) ने अपने अभिभाषण में बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर फसली एवं गैर फसली क्षैत्रों में खरपतवार नियंत्रण के लिए क्षैत्रवार खरपतवार प्रबन्धन तकनीकों का विकास करना आवश्यक है।

खरपतवार प्रबन्धन पर दो दिवसीय वार्षिक समीक्षा बैठक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा संचालित खरपतवार प्रबंधन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की दो दिवसीय वार्षिक समीक्षा बैठक का शुभारम्भ राजस्थान कृषि महाविद्यालय के सभागार में सोमवार प्रातः 9-30 बजे आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एमपीयूएटी के कुलपति प्रोफेसर उमा शंकर शर्मा ने खेती में खरपतवार को ‘‘बिन बुलाया पावंणा‘‘ की संज्ञा देते हुए बताया कि खरपतवार से कृषि उत्पादन में 10 से 60 प्रतिशत तक हानि होती है। उन्होनंे बताया कि खेती में घटते श्रमिकों व जैविक नियंत्रण की सीमित विधियों के चलते हमारे कृषकों को खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक नियंत्रकों पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्होनं देश के विभिन्न केन्द्रों से आये वैज्ञानिकों से आव्हान किया कि खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रभावी विधियों एवं इस श्रम साध्य कार्य को निपूर्णता से कम लागत और कम समय में पूरा करने के लिए उपयुक्त कृषि यंत्रों को विकास किया जाना आवश्यक है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ एस. भास्कर, आइसीऐआर के उपमहानिदेशक (शस्य विज्ञान वानिकी, खाद्य एवं जलवायु परिवर्तन) ने अपने अभिभाषण में बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर फसली एवं गैर फसली क्षैत्रों में खरपतवार नियंत्रण के लिए क्षैत्रवार खरपतवार प्रबन्धन तकनीकों का विकास करना आवश्यक है। डाॅ. भास्कर ने किसानों आधारित उन्नत खरपतवार तकनीकों के विकास के लिए शस्य, मृदा तथा रसायन विज्ञान के वैज्ञानिकों को समन्वित रूप से मिलकर कार्य करना चाहिए। डाॅ. भास्कर ने बताया कि बदलते कृषि जलवायु के मध्यनजर खरपतवारों की समस्या का त्वरित समाधान आवश्यक है तभी फसल उत्पादकता को बनाये रखा जा सकता है। उन्होनें कहा कि जैविक कृषि करने वाले किसानों के खरपतवार नियंत्रण एक प्रमुख समस्या है। वैज्ञानिकों को इस चुनौती से निपटने के लिए नए अनुसंधान कार्य करने की आवश्यकता है।
विशिष्ट अतिथि डाॅ. जय जी. वार्षनेय, पूर्व निदेशक खरपतवार अनुसंधान निदेशालय. जबलपुर ने कहा कि खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए 40 से 50 दिन का अल्प समय ही किसान को मिलता है। अतः इस दौरान् प्रभावी तरीके से खरपतवार नियंत्रण आवश्यक हे। उन्होनें बदलती पर्यावरण परिस्थितियों में संरक्षित कृषि को अपनानें एवं अपनी प्राथमिकताऐं तय करने की सलाह दी। बैठक मे खरपतवार अनुसंधान निदेशालय के वर्तमान निदशक डा. ऐ.आर. शर्मा ने बताया कि देश के सिंचित एवं नमी प्रभावित क्षैत्रों में खरपतवार की समस्या गंभीर है अतः इसका प्रभावी नियंत्रण किया जाना चाहिए।
एमपीयूएटी के अनुसंधान निदेशक डाॅ. एस.एस. बुरडक ने अतिथियों का स्वागत किया एवं कृषि में खरपतवार नियंत्रण को अनिवार्य बताया। उन्होनें बताया कि खरपतवार प्रबंधन अनुसंधान पर किये जा रहे कार्यों की समीक्षा की जाऐगी साथ ही आगामी वर्ष मे किऐ जाने वाले अनुसंधान योजनाओं की रूपरेखा बनाई जाऐगी। खरपतवार प्रबंधन अनुसंधान परियोजना के स्थानीय प्रभारी व बैठक के आयोजन सचिव ड़ाॅ. अरविन्द वर्मा ने बताया कि इस बैठक मे देश के 24 विभिन्न प्रांतों से अनुसंधानकर्ता व कृषि वैज्ञानिक भाग लें रहें है।
इस अवसर पर उल्लेखनीय कार्यों के लिए तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय के कोयम्बटूर केन्द्र एवं कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर (हि.प्र.) केन्द्रों को प्रशस्ती पत्र एवं प्रत्येक को 1-1 लाख रू. की राशि प्रदान कर सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम के अन्त में डाॅ. अरविन्द वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया एवं संचालन डाॅ. शालिनी पिलानिया ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के निदेशक, अधिष्ठाता एवं विभागाध्यक्ष भी उपस्थित थे।

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