‘आर्य समाज आईडीपीएल-वीरभद्र-ऋषिकेश में यज्ञ एवं सत्संग’

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Published on : 16 Feb, 17 09:02

आज हमें ऋषिकेश की एक आर्यसमाज आईडीपीएल-वीरभद्र में आयोजित यज्ञ एवं सत्संग में सम्मिलित होने का अवसर मिला। अवसर था वहां समाज के एक वरिष्ठ सदस्य श्री गणेश नारायण माथुर का 82 वां जन्म दिवस। श्री माथुर ने ही आज के कार्यक्रम का आयोजन अपने जन्म दिवस के उपलक्ष्य में किया था। इस अवसर पर समाज में गायत्री यज्ञ हुआ जिसके ब्रह्मा थे आर्य वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रम ज्वालापुर-हरिद्वार के आचार्य श्री कृष्णदेव जी। यज्ञ लगभग दो घण्टांे तक चला।

यज्ञ के बाद आचार्य जी ने सभा को सम्बोधित करते हुए यज्ञ में जल सिंचन के चैथे मन्त्र ‘ओ३म् देव सवितः प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञपतिं भगाय। दिव्यो गन्धर्वः केतपूः केतं नः पुनातु वाचसापतिर्वाचं नः स्वदतु।।’ की व्याख्या की। आचार्य कृष्ण देव जी ने कहा कि यदि प्रत्येक परिवार वेद मन्त्रों के भावों के अनुरूप अपने जीवन को ढाल लें तो उनके घर का वातावरण स्वर्ग जैसा हो जाये। उन्होंने कहा कि हमें यज्ञ को अपने जीवन में धारण कर उसे यज्ञमय बनाना है। जिस प्रकार हम बाह्य यज्ञ करते हैं उसी प्रकार ऐसा ही यज्ञ हमारे शरीर के भीतर भी होना चाहिये। उन्होंने कहा कि प्रभु देवों के भी देव हैं। हमारे पास जो भी वस्तुएं हैं वह सब ईश्वर की दी हुईं हैं। उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी की चर्चा कर बताया कि वहां एक व्यक्ति ने त्रासदी से बचने के लिए यज्ञ आरम्भ किया तो न केवल उसके परिवार के सभी सदस्यों का जीवन ही बचा अपितु उसके घर की गाय आदि प्राणी भी बच गये थे। इसे उन्होंने यज्ञ का विशेष लाभ बताया और कहा कि यज्ञ से ऐसा वातवारण बनता है कि यज्ञ के आसपास के वायुमण्डल में विषैली गैसों का प्रभाव समाप्त हो जाता है।

आचार्य कृष्णदेव जी ने कहा कि प्रभु सबको रात दिन दे रहे हैं। पृथिवी में ईश्वर की दी हुई जीवनी शक्ति है। एक बीज बोने पर हमें हजारों दाने मिलते हैं। आचार्य जी ने चाणक्य का उल्लेख कर बताया कि वो घर श्मशान तुल्य होते हैं जहां यज्ञ नहीं होते वा जिन घरों से यज्ञ का धुआं न निकलता दीखे और वेद मन्त्र की ध्वनियां न सुनाई दें। उन्होंने कहा कि जिन घरों में यज्ञ होता है, स्वाहा व सु-आह की घ्वनियां निकलती हैं वह घर स्वर्ग होता है। उन्होंने कहा कि यदि आप अपने बच्चों व परिवार के सदस्यों को आर्यसमाज के सत्संग में ले जायेंगे तो उसका प्रभाव पड़ेगा। जिस घर से ईश्वर की आराधना निकल जाती है वह घर घर नहीं रहता। उन्होंने कहा कि भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि जैसा मैं यज्ञ बाहर कर रहा हूं वैसा ही यज्ञ मेरे भीतर भी होता रहे। माता पिता को अपनी सन्तानों को सन्ध्या व यज्ञ करने के संस्कार देने चाहिये। भक्त प्रभु से प्रार्थना करता है कि प्रभु मेरी बुद्धि को पवित्र कर दो। जिसकी बुद्धि पवित्र हो जाती है उसको सुमति प्राप्त होती है। यज्ञ की समाप्ति पर यज्ञ प्रार्थना हुई व शान्ति पाठ भी किया गया। इसके बाद महिलाओं ने श्री माथुर के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में बधाई के गीत गाये।

यज्ञ के बाद भजनों का कार्यक्रम हुआ। भजनोपदेशक श्री देवी चन्द जी ने दो भजन प्रस्तुत किये। उनका एक भजन था ‘सृष्टि रचाने वाले, दुःख से बचाने वाले, दीनों को दो सहारा, मालिक है तू हमारा।’ श्री देवी चन्द जी के बाद देहरादून के ऋषि भक्त श्री उम्मेद सिंह आर्य जी ने भी भजन प्रस्तुत किये। भजनों के बाद आर्यसमाज के अधिकारियों ने श्री गणेश नारायण माथुर के आर्यसमाज को दी जाने वाली सेवाओं की पृथक पृथक चर्चा कर सराहना की। इसी के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। सभी आगन्तुकों के लिए स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था आर्यसमाज के विशाल परिसर में की गई थी। सभी ने भोजन किया और उसके बाद सभी अपने अपने निवासों की ओर लौट गये। देहरादून से श्री प्रेम प्रकाश शर्मा, मंत्री वैदिक साधन आश्रम तपोवन के नेतृत्व में आर्यसमाज के प्रधान श्री के.पी. सिंह जी, जिला प्रतिनिधि सभा के प्रधान श्री शत्रुघ्न मौर्य जी, श्री ओम्प्रकाश मलिक, श्री महेन्द्र सिंह चैहान, श्री जितेन्द्र सिंह तोमर, मनमोहन कुमार आर्य आदि अनेक लोग सम्मिलित हुए। अन्य स्थानों से भी लोग इस आयोजन में सम्मिलित हुए। कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001

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