शक्तिपीठ त्रिपुरा सुंदरी

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Published on : 15 Feb, 17 07:02

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, लेखक एवं पत्रकार

शक्तिपीठ त्रिपुरा सुंदरी हिन्दु धर्म में ५१ शक्तिपीठों में त्रिपुरा सुंदरी एक प्रमुख शक्तिपीठ है। प्रमुख धार्मिक स्थल त्रिपुरा सुंदरी मंदिर राजस्थान में बांसवाडा जिला मुख्यालय से १४ किलोमीटर दूर तलवाडा ग्राम के निकट स्थित है। कहा जाता है कि मॉ की पीठ का अस्तित्व यहां तीसरी सदी पूर्व का है। गुजरात, मालवा एवं मारवाड के षासक त्रिपुरा सुंदरी के उपासक थे। गुजरात के सोलंकी षासक सिद्धराज जयंसंह की यह ईश्ट देवी थी। कहा जाता है कि मालव नरेश परमार ने तो मॉ के चरणों अपना षीश काट कर अर्पित कर दिया था। उसी समय राजा सिद्धराज की प्रार्थना पर मॉ ने पुत्रवत जगदेव को पुनर्जीवित कर दिया था। इस स्थल को विकसित कर राश्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए स्व. हरिदेव जोषी ने बीडा उठाया और अब यह कार्य श्रीमति वसुन्धरा राजे कर रही ह।
मंदिर के गर्भगृह में देवी की मूर्ति विविध आयुध से युक्त १८ भुजाओं वाली ष्यामवर्णी भव्य तेज युक्त आर्कशक लगती है। मूर्ति के प्रभामण्डल में नौ-दस छोटी-छोटी मूर्तियां हैं, जिन्हें दस महाविद्या अथवा नवदुर्गा कहा जाता है। मूर्ति के नीचे भाग में संगमरमर के काले और चमकीले पत्थर श्री यंत्र उत्कीर्ण है, जिसका अपना विषेश तांत्रिक महत्व है। मंदिर के पृश्ठ भाग में त्रिदेव, दक्षिण में काली तथा उत्तर में अश्ठभुजा सरस्वती मंदिर था, जिसके आज अवषेश ही बाकी रह गये है। यहां देवी के चमत्कारों की कई गाथाएं प्रचलित है।
यह मंदिर शताब्दियों तक विषिश्ठ शक्तिसाधकों का प्रसिद्ध उपासना केन्द्र रहा। शक्तिपीठ पर दूर-दूर से लोग षीश नवाने आते हैं। नवरात्रा पर्व पर मंदिर में नौ दिन तक विषेश समारोह उत्साहपूर्वक बनाये जाते है। नित-नूतन श्रंगार की मनोहारी झांकी देखते ही बनती है। इन दिनों चौबिसों घण्टें भजन, कीर्तन, साधना, तप, जप, अनुश्ठान व जागरण में भक्तगण डूबे रहते है। नवरात्रा के प्रथम दिन षुभमूहर्त में मंदिर में घट स्थापना की जाती है और इसके समीप की अखण्ड ज्योति जलाई जाती है। मंदिर में ३६५ दिन आरती की जाती है।
मंदिर का जीर्णोंद्धार तीसरी सदी के आसपास पांचाल जाति के चांदा भाई लुहार ने करवाया था। मंदिर के समीप ही एक फटी खदान है, जहां किसी समय लोहे की खान हुआ करती थी। किवदन्ति के अनुसार एक दिन त्रिपुरा सुंदरी भिखारिन के रूप में खादान के द्वार पर पहुंची, परन्तु पांचालों ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। देवी ने क्रोधवश खदान को ध्वस्त कर दिया, जिससे कई लोग मारे गये। देवी मॉ को प्रसन्न करने के लिए पांचालो ने यहां मॉ का मंदिर व तालाब बनवाया तथा उन्हें सौलवीं सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। आज भी इस मंदिर की देखभाल पांचाल समाज ही कर रहा है।
बताया जाता है कि वर्श १९८२ में यहां की गई खुदाई के दौरान पार्वती जी की मूर्ति निकली जिसके दोनो तरफ रिद्धी-सिद्धी सहित गणेश व कार्तिकेय भी है। पौराणिक कथानक के मुताबित दक्ष-यज्ञ छिन्न-भिन्न होने के बाद षिवजी सती की मृत देह कन्धे पर रखकर झुमने लगे। तब भगवान विश्णु ने सृश्टि को प्रलय से बचाने के लिए योगमाया के सुदर्षन चक्र की सहायता से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर भूतल पर गिराना प्रारंभ किया। सती के अंग आदि ५१ स्थलों पर गिरे जो शक्तिपीठ बन गये।
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