कैनेडा, भारत व दक्षिण अफीका का संगीत भा गया संगीत प्रेमियों को

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Published on : 12 Feb, 17 08:02

मोको कहा ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में - वर्ल्ड म्यूजिक फेस्टिवल का दूसरा दिन - उदयपुराइट्स के सिर चढकर बोला भारतीय और विदेशी बैंड का जादू

कैनेडा, भारत व दक्षिण अफीका का संगीत भा गया संगीत प्रेमियों को उदयपुर, कबीर की कविताओं में आधुनिक संगीत का मिश्रण कर जब रुहानी हवाओं के साथ बहाया तो दिलों के तार झंकृत हो उठे। बातों में गीत, गीतों में बातें, किस्से और कहानियों के बीच जीवन दर्शन की खरी-खरी बातें दिल को छू कर निकल गई। ‘कहत कबीर सुनो भाई साधो.., सब सांसों की सास में’ , ‘मोको कहा ढूंढे मैं तो तेरे पास में, ना मंदिर में ना मस्जिद में..ना काबै कैलासा में,’ मन लाग्यो यार फकीरी में,’ ‘चदरिया झीनी झीनी, हल्के गाडी हांको मेरे राम, नगर में चोर आएगा..जैसे साधुक्कडी छंदों ने धूम मचा दी। मौका था फतहसागर की पाल पर वर्ल्ड म्यूजिक फेस्टिवल के दूसरे दिन कबीर कैफे की परफॉरमेंस का।
वंडर सीमेंट और राजस्थान टूरिज्म के साथ मिलकर हिंदुस्तान जिंक की ओर से हो रहे इस आयोजन में देश के अलग-अलग हिस्सों के छह म्यूजिशियन के इस अनूठे बैंड ने फतहसागर पाल पर गुनगुनी धूप के बीच जब प्रस्तुतियां दीं तो संगीत रसिकों को लगा मानों मन का मैल सुरों के साथ धुल गया और चित्त ध्यान की अवस्था में चला गया। बैंड के नीरज आर्य ने बताया कि 2006 में उन्होंने कबीर की रचनाओं को गाना शुरू किया। कबीर के जीवन पर बनी हद अनहद फिल्म से इतने प्रभावित हुए कि उसी को जीवन का लक्ष्य बना लिया। नीरज आर्य पद्मश्री प्रहलाद सिंह टिपानीया की प्रेरणा से कबीर को गाने लगे। उसके बाद मकुंदराय स्वामी, रमन अय्यर, वीरेन सोलंकी, उब्रीटो केसी भी साथ जुडे और उनके बैंड कबीर कैफे की शुरुआत हुई। साधुक्कडी की खरी-खरी बातों ने उनका जीवन बदला तो वे भी निकल पडे शहर-शहर, ठौर-ठौर कबीर को ढूंढने। फतहसागर पाल पर कबीर के संगीत ने ना सिर्फ तबादलाए ख्याल का मौका दिया बल्कि भाषा प्रांत के बंधन भी तोड दिए। पॉप, रॉक, फोक फ्यूजन, कार्नेटिक फ्लेवर के साथ म्यूजिक के बीच मर्म समझाना और फिर से खो जाने की कला लोगों को खूब पसंद आई।
इससे पहले सेनेगल से आए अबलेए और कॉन्सेंटिनोपल बैंड की प्रस्तुति ने सेनेगल व कनाडा के लोक गीतों व मौखिक परम्पराओं को आवाज दी। मडिंगो किंग्डम के महाकाव्यों से लिए गए अनूठे उद्गार और साज व आवाज की मीठी नोंकझोंक व जुगलबंदी का जादू सबके सिर चढकर बोला। उनके साज में 21 तारों के कोरा इंस्ट्रूमेंट सबके आकर्षण का केंद्र बने। कलाकारों ने कहा कि वे पहली बार भारत में प्रस्तुति दे रहे हैं और फतहसागर की पाल के नजारे उनके लिए अलौकिक और संगीत के लिए बहुत ही सुकूनदायी हैं।
धवल चांदनी में शाम को गांधी ग्राउंड में कार्यक्रम की शुरूआत परवाज बैंड की प्रस्तुति से हुई। परवाज के खालिद अहमद ने गीटार पर धुनें छेडी तो मीर कासिफ इकबाल ने अपने गीटार के साथ जुगलबंदी करते हुए सुर दिए। फिडेल डिसूजा ने बास पर रिद्म दी तो सचिन बनंदूर ने ड्रम व परकशन पर संगीत को नई ऊंचाइयां दीं। भारत के सुप्रसिद्ध व टॉप-5 हिन्दी बैंड के कलाकारों ने अपनी कंपोज की गई ‘बेपरवाह’ ,‘अबकी यह सुबह’, ‘सोचना दिल, ‘गुल गुलशन गुल गुलफाम’, जैसी कंपोजीशन सुनाई तो श्रोताओं का दिल बाग-बाग हो गया। नई बंदिशों ने यहां बडी संख्या में मौजूद युवाओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। परवाज ने उर्दू व कश्मीरी में लिपटी बंदिशों की ताजगी का समंदर उडेल कर सबको मस्ती में भिगो दिया।
दूसरी प्रस्तुति टॉप अल्ट्रो फॉक बैंड दक्षिणी अफ्रीका के हॉट वाटर बैंड की थी जिसमें डोनोवेन कॉप्ले, टीम रेनकिन, बेंडाइल बोम्बोबेला, गे कोलिंन्ज, एग्जोल्सिवा टॉम डांस व फीट वोकल व एडिडान ब्रांड (एकॉर्डिन) आइकोनिंग अफ्रीकन स्टाफ, यह थिरकने पर मजबूर कर देता है। साउथ अफ्रीकन फॉक को उदयपुर में साकार कर दिया। अपलिफ्टिंग डांस की अदा और गाते हुए इंटरेक्शन ने जादू जगाया। सुरों में देहाती रंग भी मिले तो अपनों से बिछडने वालों के सुर भी। साज और साजिंदों में तारतम्य बस देखते ही बना।
तीसरी प्रस्तुति स्वरात्मा की रही। वासू दीक्षित, पवन कुमार, संजीव नायक, जिश्नुसादास गुप्ता, वरुण मुराली और जॉल मिलन बेपटिस्ट के इस ख्यातनाम फॉक रॉक बैंड ने संगीत को नई ऊंचाइयां दीं। इस बैंड की खासियत यह थी कि रंगीन, चटख लिबासों में सजे सभी सदस्यों ने स्टेज पर खूब मस्ती की। बेंगलोर बेस्ड बैंड के इलेक्ट्रिक हाई एनर्जी लाइव एक्ट का अंदाज सबको खूब भाया। अपनी एलबम मुखौटे, बरसेंगे, पत्ते सारे, आज की ताजा खबर, दूर किनारा की प्रस्तुतियों में संगीत के उतार-चढाव की फनकारी देखते ही बनी।

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