’मांसाहार से नाना दुःखों, रोग व अल्पायु की प्राप्ती तथा शाकाहार से सुख, आयु, बल व बुद्धि की वृद्धि सहित परजन्म में उन्नति‘

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Published on : 09 Dec, 16 10:12

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

मांसाहार से कुछ निष्चित हानियां होती हैं। कृपया निम्न हानियों पर दृश्टि डालने का कश्ट करः

१- मांसाहार से अनेकानेक साध्य व असाध्य रोग होते हैं।

२- मांसाहार से आयु घटती है।

३- मांसाहार से मनुश्य के स्वभाव में हिंसा व क्रोध उत्पन्न होता है।

४- मांसाहार करने वाले को योग सिद्ध नहीं हो सकता।

५- मांसाहारी ईष्वर का भक्त व उपासक न होकर ईष्वर का अपराधी होता है।

६- मांसाहारी की बुद्धि वृद्धि के स्थान पर क्षीणता को प्राप्त होती है।

७- भगवान राम व भगवान कृश्ण सहित आचार्य चाणक्य और हमारे सभी ऋशि-मुनियों सहित महाभारतकालीन सभी राजा एव विख्यात योद्धा षाकाहारी थे।

८- १८० वर्शीय भीश्म, युधिश्ठिर, अर्जुन, भीम, धृतराश्ट, विदुर व दुर्योधन आदि भी षाकाहारी थे।

९- रामायणकालीन महाबलवान् बाली, सुग्रीव, हनुमान, अंगद और यहां तक की रावण, विभीशण आदि भी षाकाहारी थे।

१०- मांसाहारियों में षाकाहारियों से कम बल होता है। इतिहास में हनुमान, भीम की तुलना में वीर व बलवान या तो हुए ही नहीं या बहुत कम हुए होंगे। आज तो उनके समान बलवान व पराक्रमी कहीं नहीं दीखता।

११- मांसाहार पाप है, अतः इसका परिणाम जन्म-जन्मान्तर में दुःख व महादुःख है।

१२- मांसाहारी का पुनर्जन्म मनुश्य रूप में होना सम्भव नहीं है।

१३- मांसाहारी को उन पषु योनियों में ही जन्म लेना होगा जिन पषुओं का उसने मांस खाया था। ईष्वर ब्याज व सूद सहित उसे उसके मिथ्याचार का दण्ड देगा।

१४- मांसाहारी प्रायः डरपोक होते हैं। षेर हाथी पर सामने से वार नहीं करता। हाथी षाकाहारी है जो एक वृक्ष तक को समूल उखाड देता है। षेर को भी मार सकता है।

१५- षाकाहारी पषुओं को यदि मांस परोसा जाये तो वह कभी नहीं खायेंगे। मनुश्य पषुओं से भी अधिक नासमझ है।

१६- मनुश्य के दांत व आंतों की बनावट षाकाहारी पषुओं के सामन हैं, इससे मनुश्य षाकाहारी सिद्ध है।

१७- सभी मांसाहारी पषु अपने पैरों व दांतों से ही दूसरों पर प्रहार करते हैं और कच्चा मांस खाते हैं। कभी कोई मनुश्य पषुओं के समान मांस प्राप्त नहीं करता और न ही उनके समान केवल मांस ही खाता है। जब तक उसे स्वादिश्ट मसालों सहित पकाया न जाये, वह (कच्चा) मांस नहीं खा सकता।

१८- मनुश्य को जब रक्तचाप, हुदय आदि अनेक रोग होते हैं तो आधुनिक डाक्टर भी उन्हें मांसाहार करने से रोकते हैं अन्यथा रोग पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता। अतः मांसाहार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होता है।

१९- मांसाहारी हमेषा याद रखे ’अवष्यमेव हि भोक्तव्यं कृतं कर्म षुभाषुभम्‘ अर्थात् मनुश्य को अपने षुभ व अषुभ कर्मों के फल अवष्य ही भोगने पडेंगे। षास्त्र में एक स्थान पर यह भी आता है कि जिस प्रकार नया जन्मा हुआ गाय का बच्चा हजारों गावों में अपनी मां को ढूंढ लेता है, उसी प्रकार किया हुआ कर्म उसके कर्ता को जन्मजन्मान्तर में कर्मानुसार भोग कराकर ही समाप्त होता है।

२०- षास्त्र में एक स्थान पर यह भी कहा गया है कि जितने रोगी, अपंग, असहाय व दुःखी लोग हमारे सामने आते हैं, वह हमें यह षिक्षा देते हैं कि ’तुम अच्छे कार्य करो नहीं तो तुम्हारी दषा भी हमारे समान होगी।‘ इन षब्दों में गहन ज्ञान समाहित है ऐसा हमे लगता है।

२१- हमने स्कूल में एक कहानी पढी थी। एक बार जंगल में एक षेर को कांटा चुभा। वह ढूंढता हुआ जंगल में निकट के एक मनुश्य के पास गया। मनुश्य षेर को देख कर घबरा गया। उसने देखा कि षेर बार बार अपने पंजे को उठा रहा है। उसकी नजर उसके पैर पर गई तो देखा कि उसे कांटा चुभा है। उस मनुश्य ने डरते डरते उसका कांटा निकाल दिया। इसके बाद षेर वहां से चला गया। बाद में वह मनुश्य किसी चोरी के अपराध में पकड गया। न्याय रूप में उसे एक भूखे षेर के पिंजरे में छोडा गया। वह व्यक्ति डरा सहमा था कि षेर उसे खा जायेगा। बहुत देर बाद उसने आंखे खोली तो देखा कि षेर उसके पैर चाट रहा है। उस व्यक्ति ने देखा कि यह वही षेर था जिसके पैर का उसने कांटा निकाला था। पषुओं की कृतज्ञता की यह कथा है। इससे यदि षिक्षा नहीं लेंगे तो अनुमान भी नहीं लगा सकते कि हमें कितने दुःख भोगने होंगे।

इस विशय में और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है। मांसाहार छोडये और षाकाहार अपनाईये क्योंकि षाकाहारी भोजन ही सर्वोत्कृश्ट भोजन है। यह बल, आयु और सुखों का वर्धक है। इससे परजन्म में उन्नति होने से इस जन्म से भी अच्छा मनुश्य जीवन मिलने की सम्भावना है। मनुश्य षाकाहारी प्राणी है, इसका एक प्राण भी दे देते हैं। सभी षाकाहारी पषु मांसाहारियों पषुओं की गन्ध व आहट से ही दूर भाग जाते हैं परन्तु वही पषु मनुश्य को देखकर उसके पास आते हैं। ईष्वर ने पषुओं को यह ज्ञान दिया हुआ है कि कौन मांसाहारी है और कौन षाकाहारी है। इसे पषु जानते व समझते हैं। पषुओं को इस ईष्वर प्रदत्त ज्ञान के अनुसार पषु ंमनुश्य को षाकाहारी वा अपना रक्षक जानकर उसके पास आते हैं। वह जानते व समझते हैं कि मनुश्य उनकी रक्षा करेंगे। इसके बाद भी यदि मनुश्य मांसाहार करता है तो वह विष्वासघाती सिद्ध होता है। इस पाप से सभी को बचना चाहिये। सत्यार्थप्रकाश और आर्यसमाज को अपनाइये। सत्यार्थप्रकाश को पढकर आप अपने सभी कर्तव्यों का सत्य ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इसी के साथ इस विशय को विराम देते हैं। ओ३म् षम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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