त्याग से स्वाध्याय और स्वाध्याय से ज्ञान की प्राप्ति ः आचार्यश्री विमदसागरजी

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Published on : 22 Oct, 16 08:10


उदयपुर, त्याग का अपना महत्व है। स्वाध्याय करने में भी त्याग का होना जरूरी है। त्याग करके स्वाध्याय किया जाएगा तो अधिक विशुद्धि प्राप्त होगी। स्वाध्याय वो है जिसमें स्व का अध्याय प्रारम्भ हो जाए। आज कई मनुष्यों में ज्ञान का जो अभाव नजर आता है वह स्वाध्याय नह करने के कारण है। स्वाध्याय त्याग, तपस्या और ज्ञान बढाने वाला होता है। उक्त विचार आचार्यश्री विमदसागरजी महाराज ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि स्वाध्याय हमेशा किसी एक ग्रन्थ का होता है। इसका मतलब यह नहीं कि जो भी ग्रन्थ मिला उसे पढ लिया। असल में स्वाध्याय वो ही कहलाता है जो ग्रन्थ आपने पढने के लिए हाथ में लिया है उसे विधिपूर्वक नियमपूर्वक पढकर पूरा किया जाए। कोई पत्रिका या अन्य कोई किताब पढना स्वयाय कीश्रेणी में नहीं आता है। क्योंकि हर पठनीय सामग्री में मंगलाचरण नहीं होता, न त्याग की भावना होती है और न ही ज्ञान का भण्डार होता है। जब तक स्वाध्याय चलता है यानि उस ग्रन्थ का पठन कार्य चलता है तब तक अमुक वस्तु का वस्तु का त्याग भी जरूरी होता है।

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