ज्ञान प्राप्ति के लिए अनुशासन जरूरीःआचार्य विमद सागरजी

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Published on : 29 Aug, 16 11:08

उदयपुर । आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में भक्तामर शिविर के दौरान आयोजित प्रातःकालीन धर्मसभा में आचार्यश्री विमद सागरजी महाराज ने कहा कि गुरूकुलों में ज्ञान प्राप्ति के लिए चाहे वह राजा- महाराजा का पुत्र हो या सामान्य जनों का, उसे समान रूप से अनुशासन एवं कर्तव्यनिष्ठ, एकाग्रता, समायानुबन्धन जैसे गुणों का पालन करना आवश्यक होता था। और इस तरह वे भविष्य के होनहार कर्णधार बन कर शिक्षा का यथार्थ फल प्राप्त करने में सफल होते थे।
आचार्यश्री ने कहा, लेकिन अभी वर्तमान की शिक्षा पद्धति में विद्यार्थी अनुशासनहीन, उद्दण्ड व व्यवसनी- फैशनी होते जा रहे हैं, जिसके परिणाम स्वरूप शैक्षणिक गुणवत्ता के अभाव में विद्यार्थी आत्महत्या करने जैसे कुकृत्य भी कर देते हैं। आचार्यश्री ने सभी को आव्हान किया कि हमें सभी को इस विषय पर गम्भीर आत्मचिन्तन करना चाहिये।
आचार्यश्री ने कहा कि पेट पोषण के लिए अधिक पाप नहीं होता अपितु इन्द्रिय मन व कषाय से अधिक पाप होता है। राजा, महाराजा या चक्रवर्ती सम्राट कोई भी हो किसी ने भी पेट के कारण संग्राम नहीं किया अपितु इन्द्रिय मन के वशीभूत होकर आक्रमण, युद्ध किया हैं। दूषित मन से बिना भोजन किये भी पाप होता है। इसलिए पापी पेट का बहाना बना कर पाप नहीं करना चाहिये। इन्द्रिय मन को सदैव संयम करना चाहिये। विद्यार्थियों की डोर गुरू के हाथ में हो तो विद्यार्थी को कोई हानि नहीं हो सकती है। पतंग अगर खुले रूप से खुले आसमान में उडेगी तो वह कहीं भी गिर जाएगी लेकिन उसकी डोर अपने हाथ में होगी तो वह कितनी भी ऊंची क्यों नहीं उड रही हो उसे हम वापस ला सकते हैं। इसी तरह से गुरू के हाथों में ही विद्यार्थी सुरक्षित रहता है।

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