नई दिल्ली में सिसिकोसिस रोग प्रभावित राज्यों का राष्ट्रीय सम्मेलन

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Published on : 23 Jul, 16 12:07

नई दिल्ली । राजस्थान मानवाधिकार आयोग के सदस्य डॉ. एम.के. देवराजन ने बताया कि राजस्थान में सिलिकोसिस रोग की रोकथाम के लिए राज्य सरकार द्वारा गंभीर प्रयास किए जा रहे है और देश में सर्वप्रथम राजस्थान एनवायरमेंट एण्ड हैल्थ एंड एडमिनिस्ट्रेशन बोर्ड (आर.ई.एच.ए.बी.) का गठन करने और सिलिकोसिस को नोटिफाईड रोग घोषित करने जैसी पहल करने वाले राजस्थान पहला प्रदेश है।
डॉ. देवराजन ने शुक्रवार को नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित सिलिकोसिस रोग प्रभावित राज्यों के राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुतीकरण के माध्यम से राज्य का पक्ष रखा। डॉ. देवराजन ने सिलिकोसिस रोग की जानकारी देते हुए बताया कि पत्थरों की कटाई/खनन आदि से उड़ने वाली बारीक मिट्टी के कण श्रमिकों की सांस के साथ फेफड़ों में जम जाने के कारण यह गंभीर रोग जानलेवा हो जाता है।
राज्य सरकार द्वारा सिलिकोसिस से पीड़ित रोगियों को एक लाख रूपये तथा मृतकों के आश्रितों को तीन लाख रूपये अनुग्रह राशि दी जाती है। अब तक द्वारा 500 लाख रूपये स्वीकृत किये जा चुके है और 386 लाख रूपये जिला कलेक्टर्स को भेजे जा चुके है। जिनमें से अब तक 316.5 लाख रूपये खर्च किये जा चुके है।
उन्होंने बताया कि सिलिकोसिस प्रभावित क्षेत्रों में निरोधात्मक उपायों के लिए राज्य सरकार द्वारा कई कानून एवं अन्य उपायों द्वारा प्रभावी कदम उठाये गये है। साथ ही राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग द्वारा सिलिकोसिस मामलों में स्वप्रसंज्ञान लिया जाता है। इसके अलावा खानों में काम के परम्परागत तरीके बदल कर वेट-ड्रिलिंग करने, श्रमिकों को सिलिकोसिस रोगग्रस्त होने से बचाने के उपाय सुनिश्चित करने आदि सुझाव दिये गये है।
डॉ. देवराजन ने बताया कि खदान मालिकों द्वारा खानों में काम करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के सम्बंध में निर्धारित कानूनी प्रावधान की स्पष्ट पालना, सिलिकोसिस के प्रति जन जागरूकता, पुर्नवास कार्यक्रम, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा मदद एवं अन्य उपकरणों की व्यवस्था आदि के लिए राज्य सरकार के स्तर पर यथोचित कार्यवाही करवाई जा रही है।
उन्होंने बताया कि एस.एम.एस. मेडिकल कॉलेज जयपुर और अन्य मेडिकल कॉलेज में न्यूमोकोनिसिम बोर्ड का गठन किया गया है। राज्य के सात मेडिकल कॉलेजों के अलावा प्रत्येक जिले में भी एक न्यूमोकोनिसिस बोर्ड के गठन को प्रावधान किया गया है। खनन क्षेत्रों के चिकित्सालयों में उपकरण एवं अन्य सुविधाओं के लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2264.63 लाख रूपये की राशि उपलब्ध करवाई गई है। जिनमें 19 मोबाईल मेडिकल यूनिट भी शामिल है। इसके अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को बोर्ड द्वारा 25 लाख रूपये एवं 5 लाख रूपये प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में उपकरण आदि के लिए मुहैया करवाये गये है।
डॉ. देवराजन ने बताया कि राज्य के 19 प्रमुख खनन जिलों के जिला कलेक्टर की हर तीन महीने में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, श्रम विभाग एवं निदेशक खनन सुरक्षा आदि के साथ बैठक करने का निर्णय भी लिया गया है।
उन्होंने बताया कि राज्य में डांग विकास संस्थान, करौली, एनआईएमएच, नागपुर एवं राजस्थान मानव अधिकार आयोग के सहयोग से सैकड़ों सिलिकोसिस पीड़ित श्रमिकों की पहचान की गई है। बिल्डिंग एण्ड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स बोर्ड (बी.ओ.सी.डब्ल्यू) द्वारा मजदूरों के लिए चिकित्सा कैम्प लगाये जा रहे है। डॉ. देवराजन ने बताया कि खान श्रमिकों को भामाशाह योजना के माध्यम से भुगतान की व्यवस्था भी शुरू की जा रही है।
राज्य मानव अधिकार आयोग के सचिव श्री जे.सी. देसाई ने बताया कि सिलिकोसिस को नोटिफाईड रोग घोषित किया गया है। ऐसा करने वाला संभवत राजस्थान देश का पहला राज्य है।
उन्होंने बताया कि सेंड स्टोन बहुलता वाले जिलों अजमेर, अलवर, भीलवाड़ा, बंूदी, जोधपुर, करौली एवं नागौर में खान विभाग और महानिदेशक, माईन्स सेफ्टी द्वारा जिला कलेक्टर्स में अधीन विभिन्न कार्यशालाओं एवं बैठकों का आयोजन कर खदान मालिकों के दायित्व, खदानों का पंजीकरण आदि की जानकारी दी जा रही है। खनन क्षेत्रों में महिला स्वंय सहायता समूह के गठन के प्रावधान के साथ ही राजस्थान कौशल विकास एवं आजीविका मिशन में प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा रही है।
कार्यक्रम में राजस्थान के श्रम, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, खान एवं खनिज विभागों के प्रतिनिधियों के साथ ही विभिन्न स्वंयसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि भी शामिल है।
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