भ्रम में न जियें

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Published on : 30 May, 16 09:05


क्या दिन में आठ गिलास पानी पीने से स्वास्य वास्तव में बेहतर होता है ? क्या कम रोशनी में पढ़ने से आखों को नुकसान होता है ? क्या हम असल में अपने दिमाग का केवल 10 फीसद इस्तेमाल करते हैं ? क्या लगातार काटते रहने से बाल लंबे और घने होकर निकलते हैं ? ये कुछ सवाल सोशल मीडिया विचरण करने वाले दावों से उपजे हैं। ये दावे वैज्ञानिक शोधों पर आधारित नहीं हैं। बस सुनी-सुनाई बातें इन दावों का आधार हैं।
मरीका में हुए एक शोध से ये संकेत मिले हैं कि ये स्वास्य के बारे में की जा रही कल्पनिक बातें है। ब्रिटिश मेडिकल जरनल मे छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें कुछ बातें तो पूरी तरह से झूठी हैं और कुछ अन्य के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। इंडियानापोलिस के इंडियाना विविद्यालय के ‘‘स्कूल ऑफ मेडिसिन’ के शोधकर्ताओं ने हर दावे के प्रमाण खोजने की कोशिश की है।पानी को लेकर कोरी कल्पना : असल में अध्ययन सुझाते हैं कि समुचित तरल पदार्थ की जरूरत जूस, दूध, या फिर चाय, कॉफी से भी पूरी की जा सकती है।
आश्र्चयजनक तो ये है कि आंकड़े ये भी बताते हैं कि ज्यादा पानी हानिकारक भी हो सकता है।मस्तिष्क का हर हिस्सा काम करता है : यह मान्यता कि हम अपने मस्तिष्क का केवल 10 फीसद ही इस्तेमाल में ला पाते हैं, पूरी तरह गलत है। मस्तिष्क की बीमारियों से पीड़ित लोगो के शोध बताते हैं कि मस्तिष्क का प्रत्येक हिस्सा मानिसकता और व्यवहार पर असर डालता है। इससे ये साफ हो जाता है कि कोई भी हिस्सा निष्क्रिय नहीं है।’बाल की खाल‘‘ न निकालें : बाल और उंगलियों के नाखून मरने के बाद भी बढ़ते रहने की मान्यता की वजह केवल भ्रम है।
शोध तो ये बताता है कि नाखूनों और बालों को बढ़ने के लिए खास तरह के हार्मोन की जरूरत होती है जो मृत्यु के बाद शरीर में मौजूद नहीं रहते हैं। रिपोर्ट के लेखक रेशल व्रीमन ने ब्रितानी पत्रिका में बताया है कि काटने से बाल जल्दी बढ़ते या फिर घने, मजबूत या काले होते हैं, सिर्फ कल्पना है। इसी तरह, जानकार कम रोशनी में पढ़ने से आंखों को नुकसान होने के दावे को गलत बताते हैं।
टर्की के मांस को लेकर भी भ्रांतियां : ये भी पता चला है कि टर्की का मांस खाने से इसमें होने वाले ट्रिप्टोफेन अमीनो एसिड लोगों को आलसी नहीं बनाता है। वास्तव में टर्की, मुर्गी और अन्य तरह का मांस में बहुत कम मात्रा में ट्रिप्टोफेन होता है। शोधकर्ताओं ने बताया, ‘‘ज्यादा मात्र में खाया गया किसी भी तरह का खाना नींद का कारण बन सकता है क्योंकि खाने के बाद दिमाग़ में ऑक्सीजन और रक्त का प्रवाह कम हो जाता है।’ क्लिनिकल इवीडेंस जरनल के संपादक डॉक्टर डेविड टोवी ने कहा, ‘‘यदि दूसरा पक्ष लें तो प्रमाण न होने का मतलब ये नहीं कि इन बातों को कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।’

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