नन्हें-नन्हें बच्चों ने की सामयिक

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Published on : 29 May, 16 08:05

नन्हें-नन्हें बच्चों ने की सामयिक उदयपुरजैनाचार्य देवेन्द्र महिला मण्डल की ओर से भुवाणा स्थित देवेन्द्र धाम में आयोजित किये जा रहे दस दिवसीय धार्मिक नैतिक निर्माण शिविर के तीसरे दिन आज प्रातः से ही नन्हें-नन्हें बालक बालिकाओं ने समायिक कर इससे होने वाले लाभों के बारें में जानकारी प्राप्त की।
मण्डल की महामंत्री ममता रांका ने बताया कि सामयिक करने जैन समाज के संस्कार शिविर में बच्चों को प्राकृत भाषा पढना सिखाया जा रहा है। 15॰ बच्चें जैन आगम ग्रन्थ पढने व बोलने के लिए नीतू निवेदिता, मधु खमेसरा, ललिता बापना एवं निर्मला बडाला द्वारा विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
मण्डल की अध्यक्ष डॉ. सुधा भण्डारी ने बताया कि 5 जून तक चलने वाले इस शिविर की मुख्य विशेषता यह है कि 15॰ बच्चों को अर्धमागधी भाषा से प्राकृत भाषा पढने का अभ्यास कराया जा रहा है। इस भाषा को सिखाने के लिए बच्चों को भक्तामर स्तोत्र, प्रतिऋमण, जैन आगम ग्रन्थ व लोक कथाएं, महापुरुषों की जीवन गाथाएं सुनाई जा रही हैं। इसके अलावा रोचक तरीके से जैन पहेलियां के द्वारा खेल-खेल में बच्चों में इस ज्ञान का बोध कराया जा रहा है। शिविर में जैन समाज के 7 से 18 वर्ष तक के 15॰ बच्चे शामिल है।
उन्हने बताया कि वर्तमान समय में जैन समाज की भावी पीढी भाषा के साथ संस्कृति को नही भुला जाए, उसके लिए विगत 14 वर्ष से संस्कार शिविर चल रहा है जिसके तहत् अब तक 2॰॰॰ बच्चें लाभान्वित हुए है।
बचपन से ही जोड रहे समाज की धारा से-मंत्री ममता रांका न कहा कि जब मण्डल ने वर्ष 2॰॰2 में शिविर लगाने की शुरूआत की तब मात्र 5॰ बच्चें थे। पिछले साल ये संख्या 13॰ पर पहुंच गई थी। इस बार लक्ष्य 15॰ बच्चों का था ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को बचपन में ही समाज की मुख्य धारा से जोडा जा सके।
मूल भाषा प्राकृत जरूर सीखें-कोषाध्यक्ष इन्द्रा चोरडिया ने कहा कि मण्डल का यह प्रयास रहता है कि समाज के बच्चे भले ही इंग्लिश अथवा हिंदी में पढे-लिखें, लेकिन मूल समाज की भाषा प्राकृत अवश्य सीखें।
शिविर में प्रार्थना से लेकर योग, संगीत भीं- शिविर का समय सुबह 6 से 1 बजे बजे तक है। शुरू के 1॰ मिनट प्रार्थना, उसके पश्चात् व्यायाम योग, प्राणायाम। इसके बाद महापुरुषों की जीवनी, कहानी बताई जाती। इस दौरान नाटक, नृत्य, इत्यादि प्रतियोगिता भी होती हैं। प्रातःकाल नाष्ता व दोपहर का भोजन भारतीय संस्कृति से नीचे बिठाकर व पतल व ढोणे में खाना खिलाया जाताहै।
गुरुवंदन व गोचरी बहराना सिखाया जा रहा -उदयपुर क्षेत्र जैन धर्मावलम्बियों का बहुल क्षेत्र है इस दौरान 12 महीने जैन साधु - साध्वियों का आगमन शहर में होता रहता है इस दौरान बच्चों को साधु - साध्वियों को गुरुवंदन ‘तिखुतों के पाठ’ से कैसे किया जाता है सविधि सिखाया जा रहा व साथ ही गौचरी कैसे बहरानी व बहराते समय किन किन बातों का ध्यान रखना यह शिक्षा दी जा रहा है।

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