पर्यावरण की पढ़ाई में मुश्किलें

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Published on : 13 May, 16 09:05

जर्मनी के अलग अलग राज्यों के स्कूलों में टिकाऊ विकास को सिलेबस में जगह दी जा रही है, हालांकि इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर साझा लक्ष्य तय करने में दिक्कत हो रही है। कोलोन के बाहरी हिस्से में मौजूद ए&न्स्ट माख हाई स्कूल को पर्यावरण के लिए अपने दोस्ताना रवैए पर गर्व है। स्कूल में बिजली की जरूरत का कुछ हिस्सा सोलर बैट्रियों से आता है, स्कूल अपने लिए सब्जियां खुद उगाता है और पर्यावरण के लिए जागरूक बनाने का विषय हर छात्र के लिए पढ़ना जरूरी है। पर्यावरण से जुड़ी स्कूल की ये गतिविधियां महज संयोग से नहीं हैं। यह स्कूल जर्मन प्रांत नॉर्थराइन वेस्टफेलिया के सरकारी कार्पाम 'स्कूल ऑफ फ्यूचर' में शामिल है। यह कार्पाम 2009 में शुरू हुआ और इससे करीब 690 स्कूल जुड़े हुए हैं।

कार्पाम के संयोजक और जीवविज्ञान के शिक्षक थॉमस क्नेष्टेन स्कूल के बाहर अपने थोड़े बड़े छात्रों के साथ एक पार्प में पेड़ों से पहचान कराने वाला रास्ता बनाने में जुटे हैं। इस रास्ते पर लगे पेड़ छोटे छात्रों के लिए पत्तियों, फलों या फूलों को पहचानने और उनके बारे में जानने का जरिया बनेंगे। कनेष्टेन कहते हैं, 'इस प्रोजेक्ट का मकसद टिकाऊ विकास से जुड़े विषयों को हमारे राज्य के स्कूलों में शामिल कराना है।'

डी तस्वीर

पर्यावरण के बारे में शिक्षा को स्कूलों में शामिल कराना दुनिया के एजेंडे में 1992 में ही आ गया। रियो दे जनेरो में पर्यावरण और विकास पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तब दुनिया भर के नेता जुटे थे। हालांकि उसके बाद के 10 सालों में ज्यादा कुछ नहीं बदला। 2005 में यूनेस्को ने अगले 10 सालों के लिए टिकाऊ विकास के लिए शिक्षा नाम से नया अभियान शुरू किया जो अगले साल खत्म होने वाला है।

जर्मनी के लिए यह अभियान कारगर साबित हुआ और स्कूलों में इसकी शुरुआत हो गई। जर्मनी में शिक्षा का रूप, रंग और ढांचा संघीय सरकार नहीं बल्कि यहां के 16 राज्यों की अलग अलग सरकारें तय करती हैं। हर राज्य ने पर्यावरण के लिए अपनी अलग तरह से पहल की है। स्कूल ऑफ द फ्यूचर अभियान 2015 में खत्म होना है। इसके बाद सभी स्कूलों को इस कार्पाम में प्रदर्शन के आधार पर प्रमाण पत्र मिलेगा।

सुधार की गुंजाइश

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जापान, दक्षिण कोरिया, स्वीडन और ब्रिटेन ने पर्यावरण से जुड़ी शिक्षा के मामले में बढ़त ले ली है। यूनेस्को के टिकाऊ विकास कार्पाम के लिए जर्मनी की राष्ट्रीय समिति के प्रमुख गेरहार्ड डे हान इसे स्वीकार करने के साथ ही कहते हैं, 'जर्मनी भी अच्छा कर रहा है, राज्य धीरे धीरे शिक्षा की योजना को बदल रहे हैं और विषय सिर्प प्रस्तावना का हिस्सा नहीं हैं।'

वेस्टराइन वेस्टफेलिया जैसे कार्पाम पूरी जर्मनी चल रहे हैं। हालांकि यह सब मुख्य रूप से स्वैच्छिक रूप से ही हो रहा है और शिक्षकों और स्कूलों पर निर्भर है। गेरहार्ड डे हान का कहना है कि ये विषय स्कूलों के आधिकारिक पाठ्पाम का हिस्सा होने चाहिए।

पर्यावरण से आगे

डे हान का मानना है कि इस तरह के प्रोजेक्ट उन छात्रों के लिए मददगार साबित हो सकते हैं जिन्हें नियमित विषयों में दिक्कत है। उन्होंने कहा, 'ये खासतौर से सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े इलाकों के स्कूलों में काफी असरदार हैं जहां पढ़ाई के अलग तरीकों की जरूरत होती है।

अगर आप पारंपरिक तरीकों से छात्रों तक नहीं पहुंच पा रहे तो यह वैकल्पिक तरीके काफी कारगर साबित हो सकते हैं।' हालांकि इसके लिए सबसे पहले शिक्षकों की इस विषय में ट्रेनिंग बहुत जरूरी है। डे हान के मुताबिक इनको पहले से मौजूद विषयों में ही शामिल करना बेहतर होगा।

क्नेष्टेन जब स्कूली छात्र थे तब इस तरह के विषय नहीं थे, हालांकि अब अगर उन्हें यह तय करने का अधिकार मिले तो जर्मन स्कूलों में पर्यावरण और टिकाऊ विकास से जुड़े विषयों को बड़े जोरशोर से रखा जाएगा। वे स्कूल के खेल मैदान में चमचमाते रंग के कंटेनर की तरफ इशारा कर दिखाते हैं।

यह कंटेनर स्कूल का स्टॉल है जो कुछ छात्र मिल कर 2 साल से चला रहे हैं। यहां ऑर्गेनिक खाने की चीजें उचित कारोबारी नियमों के तहत बेची जाती हैं और इन्हें लेकर प्रतिािढया मिली जुली है। स्टॉल चलाने वाले छात्रों में एक मथियास कहते हैं, 'पहले हमारे पास चिकेन बर्गर, पिज्जा और मिठाइयां थीं, लेकिन अब मेरे दोस्त नई चीजें खा रहे हैं हालांकि उन्हें चुनने का मौका मिले तो मुझे लगता है कि वो पिज्जा चुनेंगे।' टिकाऊ विकास की पढ़ाई अभी और आगे जानी है। प्रकृति के पाँच तत्व जल, अग्नि, वायु, आकाश एवं पृथ्वी पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं जिनका आपस में गहरा सम्बंध है । इन पाँचों तत्वों में किसी एक का भी असंतुलन पर्यावरण के लिये अपूर्णनीय क्षतिकारक और विनाशकारी है ।

पर्यावरण दो शब्दों परि और आवरण से बना है जिसका अर्थ है चारों ओर का घेरा हमारे चारों ओर जो भी वस्तुएं, परिस्थितियां या शक्तियां विद्यमान हैं, वे मानवीय ािढयाकलापों को प्रभावित करती हैं और उसके लिये दायरा सुनिश्चित करती हैं । इसी दायरे को पर्यावरण कहते हैं ।

पर्यावरण के अंग्रेजी शब्द इनवायरन्मेंट का उद्भव फांसीसी भाषा के इनविरोनिर शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है घेरना । इनवायरन्मेंट का समानार्थक शब्द हैबिटैट है जो लैटिन भाषा के हैबिटायर शब्द से निकला है । हबिटैट शब्द पर्यावरण के सभी घटकों को स्थानीय रूप से लागू करता है इसका प्रभाव आवास स्थल तक सीमित है । जबकि इनवायरन्मेंट शब्द हैबिटैट की तुलना में अधिक व्यापक है ।

देखा जाये तो पर्यावरण को दो प्रमुख घटकों में विभाजित किया जा सकता है । पहला जैविक अर्थात बायोटिक जिसमें समस्त प्रकार के जीवजन्तु व वनस्पतियां (एक कोशिकीय से लेकर जटिल कोशिकीय तक ) दूसरे प्रकार के घटक में भौतिक अर्थात अजैविक जिसमें थलमण्डल, जलमण्डल व वायुमण्डल सम्मिलित हैं । इन सभी घटकों में सृष्टि ने मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ जीव के रूप में उत्पत्ति की है । अतः मानव सम्पूर्ण जीव जगत का केन्द्र बिन्दु है । पर्यावरण के सभी महत्वपूर्ण घटक मानव को परावृत्त करते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी पर्यावरण के प्रभावों को परिलक्षित करती है।

वस्तुतः अनुवांशिकी एवं पर्यावरण ये दो महत्वपूर्ण कारक मानव जीवन को प्रभावित करते हैं । समस्त जीवों में सर्वश्रेष्ठ जीव होने के नाते मनुष्य ने प्रकृति की प्राकृतिक सम्पदाओं का सदियों से भरपूर दोहन किया है ।

लेकिन वर्तमान दौर में बढ़ती जनसंख्या, पश्चिमी उपभोक्तावाद एवं वैश्विक भूमण्डलीकरण के मकड़जाल में फँस कर मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सुख को खोता जा रहा है । वह नहीं जान पा रहा कि कंकरीट का शहर बसाने की चाहत के बदले में वह अपना भविष्य दाँव पर लगा बैठा है ।

प्रकृति के समस्त संसाधन प्रदूषण की चपेट में है । हवा, जल और मिट्टी जो हमारे जीवन के आधार हैं जिनके बिना जीवन की कल्पना ही बेमानी है , आज अपना मौलिक स्वरूप एवं गुण खोते जा रहा है । पर्यावरण की छतरी अर्थात ओजोन परत जो हमें सौर मण्डल से आने वाली घातक किरणों से बचाती है उसमें छेद होना, वातावरण में बढ़ती कार्बन डाई-आक्सॉइड की मात्रा से उत्पन्न समस्या ग्लोबल वार्मिंग, दिनो दिन घातक बीमारियों का प्रादुर्भाव व स्वास्थ्य संकट ये सब मानव के समक्ष एक विकराल दानव का रूप ले चुके हैं जो भस्मासुर की तरह समस्त मानव जाति को लीलने को आतुर हैं, जिससे सावधान होना बहुत जरूरी है ।
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