'लेखक से मिलिए' कार्यक्रम में स्वयं प्रकाश का कहानी पाठ

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Published on : 26 Apr, 16 08:04

'लेखक से मिलिए'  कार्यक्रम में स्वयं प्रकाश का कहानी पाठ नई दिल्ली। नायकत्व से आशय मनुष्येतर कार्यक्रम नहीं हो सकता। असमानता और अन्याय के विरुध लड़ाई हजारों साल से चल रही है। संघर्षरत आम आदमी का चित्रण कर पहली बार प्रेमचंद ने उन्हें नायक बनाया। अत्याचारी को कहानी में मारना आसान उपाय हो सकता है लेकिन यह वास्तविक जीवन में नहीं होता। सुप्रसिद्ध कथाकार-उपन्यासकार स्वयं प्रकाश ने 'लेखक से मिलिए' कार्यक्रम में कहा कि स्वतंत्रता के बाद नया समाज न बन पाने के कारण यदि कोई जाति - वर्ण की तरफ होता पीछे लौटता है तो यह उससे अधिक हमारी समाज व्यवस्था के पतन का द्योतक है। स्वयं प्रकाश ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में अपनी चर्चित कहानी 'कानदांव' का पाठ भी किया। कहानी पाठ के बाद श्रोताओं के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि उन्होंने रचना में प्रचलित भाषा या अलोक भाषा को लेने का आग्रह इसलिए रखा कि भाषा यही परिवेश की वास्तविक सृष्टि करती है। आलोचना की भाषा रचना की भाषा नहीं हो सकती। उन्होंने आगे कहा कि लेखक पात्र और उसकी भाषा के बीच तो रहेगा लेकिन उसे कोशिश करनी होती है कि पात्र उसी की भाषा न बोलने लगें। कहानी पाठ के सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि नयी कहानी के बाद के कथा आन्दोलनों ने कहानी को अमूर्त बनाने का काम किया था तब आगे के कथाकारों ने इसे मराठी की कथा-कथन परम्परा से जोड़कर हिन्दी में भी वाचिक गुणों से संपन्न किया। उन्होंने इस सन्दर्भ में शरद जोशी द्वारा कवि सम्मेलनों में व्यंग्य पाठ को भी याद किया। 'कानदांव' पर एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि गठजोड़ों को समझना आवश्यक है। आखिर वह कौनसा गठजोड़ है जो बड़े उद्योगपतियों को हजारों करोड़ रुपये लेकर भागने में मदद करता है और दस-बीस हजार के ऋण न चुका पाने पर किसान या गरीब को आत्महत्या करनी पड़ती है।
इससे पहले कार्यक्रम का संयोजन कर रहे रीडर डॉ विनोद तिवारी ने स्वयं प्रकाश के साहित्य के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि स्वयं प्रकाश की कहानियों में सम्प्रेषण का अद्भुत गुण है जिसमें समकालीन ध्वनियों को सुना जा सकता है और जिससे कई अर्थ छवियाँ जिससे उद्घाटित होती हैं। विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन शर्मा ने स्वयं प्रकाश का स्वागत करते हुए कहा कि वे अपने समय के सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध ऐसे कथाकार हैं जो आत्मप्रचार से दूर रहकर अपना काम निष्ठा से करते हैं। उन्होंने स्वयं प्रकाश द्वारा अस्सी के दशक में सम्पादित पत्रिका 'क्यों' को भी याद किया।
अंत में विभाग के आचार्य गोपेश्वर सिंह ने कहा कि स्वयं प्रकाश जैसे कथाकार का हमारे समय में होना आश्वस्ति देता है - खुशी देता है। उन्होंने कहानी के ढाँचे में स्वयं प्रकाश के प्रयोगों को रेखांकित करते हुए कहा कि कहानी के बीच में अचानक लेखक का आकर पाठक को सीधे सम्बोधित करना नारेबाजी जैसा है किन्तु स्वयं प्रकाश अपनी कहानियों में इसे भी कला बना देते हैं। उन्होंने स्वयं प्रकाश की एक कहानी 'अशोक और रेनू की असली कहानी' की चर्चा करते हुए कहा कि मेल शोवेनिज्म पर हिन्दी में ऐसी कहानी दूसरी नहीं है। आयोजन में विभाग के प्रो के एन तिवारी, प्रो अनिल राय, प्रो राजेन्द्र गौतम सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित थे।
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