मोबाइल-इंटरनेट युग में लगने लगे दिमाग पर ताले?

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Published on : 13 Jul, 15 12:07

इंटरनेट हमारे सोचने-समझने, पढ़ने और याद रखने की क्षमताओं को प्रभावित कर रहा है। शायद आप इसे एक किताबी निष्कर्ष मानकर अनदेखा कर दें। लेकिन अब जानी-मानी सुरक्षा कंपनी कैस्परस्की लैब ने इस बात की तस्दीक की है कि गूगल और इंटरनेट ने हमारे मस्तिष्कों को कुंद करना शुरू कर दिया है। उनका अत्यधिक इस्तेमाल हमें 'डिजिटल एम्नेजिया' की तरफ़ ले जा रहा है जिसकी वजह से दुनिया के ज्यादातर वयस्कों के लिए एक फोन नंबर तक को याद रखना मुश्किल हो रहा है। पहले जिस काम के लिए मस्तिष्क का प्रयोग किया जाता था उसी काम के लिए अब इंटरनेट सर्च और स्मार्टफोन की सुविधाओं का इस्तेमाल हो रहा है। कैस्परस्की ने सोलह साल से ज्यादा उम्र वाले 6000 लोगों पर एक अध्ययन किया था। अध्ययन में शामिल 57 फीसदी लोगों को अपने दफ़्तर का फोन नंबर भी याद नहीं था। तीन चौथाई लोग अपने परिवार के सदस्यों के फोन नंबर नहीं बता पाए। ऐसा लगता है कि हमारी जरूरत की सारी जानकारी मोबाइल फोन और इंटरनेट में कैद है जबकि मस्तिष्क हल्का दर हल्का होता चला जा रहा है।
थोड़ा सा बदला है फेसबुक का लोगो
फ़ेसबुक पर होने वाले इस बदलाव पर शायद आपकी नज़र न गई हो। फ़ेसबुक ने चुपके से अपना दस साल पुराना लोगो बदल लिया है। लेकिन बदलाव इतना कम है कि शायद इसका नोटिस सिर्फ पेशेवर डिजाइनरों ने ही लिया होगा। लोगो का रंग आज भी वही नीला-सफेद है। आज भी पहले की ही तरह स्मॉल लैटर्स में facebook शब्द लिखा है। फ़र्क अगर है तो फॉन्ट का और वह भी काफी हद तक मिलता-जुलता दिखाई दे रहा है। लेकिन हाँ, पहले का फॉन्ट थोड़े चौकोर अक्षरों पर आधारित था जबकि इस बार के अक्षर गोलाकार हैं। अगर आप लोगो के दूसरे अक्षर (ए) पर गौर करेंगे तो बदलाव साफ़ नजर आएगा। इंटरनेट दिग्गज याहू ने भी सन् 2013 में अपना लोगो बदला था। अगली बारी गूगल की?

लेजर से इंटरनेट

फ़ेसबुक दुनिया की किसी भी दूसरी कंपनी की तुलना में अपने यूज़र्स की संख्या लगातार बढ़ाते रहने के लिए बेताब दिखाई देता है। उसकी इंटरनेट.ऑर्ग योजना से आप परिचित हैं ही जिसके तहत कई दूरसंचार कंपनियों के सहयोग से लोगों को कुछ वेबसाइटों (फ़ेसबुक समाहित) को अपने मोबाइल फोन पर निःशुल्क देखने की सुविधा दी गई है। ड्रोन के जरिए इंटरनेट मुहैया कराने और गुब्बारों के जरिए ऐसा करने की योजनाओं पर भी कंपनी काम कर रही है। उपग्रह के जरिए इंटरनेट उपलब्ध कराना भी उसकी योजनाओं में शामिल है। अब खबर है कि वह एक नई तकनीक पर काम कर रही है जिसके तहत आसमान से प्रसारित की जाने वाली लेजर किरणों के जरिए इंटरनेट सुविधा दी जाएगी। खुद फ़ेसबुक सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने इसकी तस्दीक की है। उन्होंने कहा है कि ये लेजर किरणें हमें दिखाई नहीं देंगी।
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