मुसलमानों को टोपी नहीं रोटी की जरूरत : नजमा हेपतुल्ला

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Published on : 22 May, 15 09:05


नरेंद्र मोदी ने चुनाव के दौरान मुसलमानों के लिए ‘एक हाथ में कुरान, दूसरे हाथ में कंप्यूटर’ का नारा दिया था। सरकार एक साल में इस दिशा में कहां तक पहुंची है?
हम मानते हैं कि मुसलमानों को टोपी नहीं रोटी की जरूरत है। आजादी के बाद से आज तक इस वर्ग को सभी दलों ने सियासी टोपी पहना कर वोट बैंक की राजनीति की। यह पहली सरकार है जो अपने ‘सबका साथ सबका विकास’ के शासन मंत्र के तहत मुसलमानों के समग्र विकास की ओर ध्यान दे रही है। इस वर्ग के हुनर को बढ़ावा देने के लिए उस्ताद योजना शुरू की गई है। एक करोड़ विद्यार्थियों को सीधे बैंक खातों के जरिए छात्रवृत्ति दी जा रही है। कर्ज की व्यवस्था भी की गई है।
इनके लिए अलग से कुछ खास होता नहीं दिख रहा, ऐसा क्यों?
मैंने जितनी योजनाएं गिनाई हैं, वह अलग से ही हैं। फिर मैंने सबका साथ सबका विकास नीति की बात कही। आप ही बताएं, प्रधानमंत्री जनधन योजना, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्वास्थ्य और जीवन बीमा योजनाओं का लाभ क्या किसी खास वर्ग को ही हासिल होगा। देश में मुसलमान सबसे गरीब हैं। जाहिर है कि इन योजनाओं का सबसे ज्यादा फायदा इसी वर्ग को मिलेगा। खासतौर से मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया अभियान का।
एक साल के कार्यकाल में घर वापसी जैसे अभियान चले। मुसलमानों से वोट का अधिकार छीनने की बात हुई। चर्च पर हमले हुए। क्या इससे अल्पसंख्यक असुरक्षित नहीं महसूस कर रहे?
पहले और अब की स्थिति में अंतर है। पहले ऐसी बयानबाजी नहीं, बल्कि सीधे सांप्रदायिक दंगे होते थे। ऐसे बयानों से अल्पसंख्यक अब डरता है, पहले तो दंगों में मर जाता था। फिर मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि मीडिया ऐसे बयानों को तूल ही क्यों देता है, जबकि पीएम कई बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार संविधान के मुताबिक चलेगी। ऐसे बयानों पर भरोसा पैदा करने की कोशिश भी तो होनी चाहिए।
आप कहती हैं कि दंगे नहीं हुए। फिर मेरठ में क्या हुआ था?
यह आप उन टोपी वाले दलों से पूछिए, जो अल्पसंख्यकों के हितैषी होने का दंभ भरते हैं। फिर कानून व्यवस्था राज्यों का विषय है। भाजपा शासित राज्यों में तो दंगे नहीं हुए।
मुस्लिम संगठन सवाल उठा रहे हैं कि जब हिंदू धोबी और नाई को आरक्षण का अधिकार है तो मुस्लिम धोबी और नाई को क्यों नहीं? आपका आरक्षण पर क्या रुख है?
मेरा पूरा जोर अल्पसंख्यकों में अपनी प्रतिभा के दम पर रोजगार हासिल करने की ताकत पैदा करने पर है। इसलिए मैं इस वर्ग की शिक्षा, रोजगार और माली हालत सुधारने पर ध्यान दे रही हूं। रहमानी सुपर 30 का उदाहरण लीजिए, इसके तहत 14 बच्चों ने यूपीएससी परीक्षा पास की है। फिर मैं खुद को आरक्षण या किसी अन्य पचड़े में नहीं डालना चाहती। ऐसा होने पर मंत्रालय लक्ष्य से भटक जाएगा।
अल्पसंख्यक मंत्रालय की भविष्य की क्या योजना है?
हमने घोषित योजनाओं की निगरानी के लिए एक खाका तैयार किया है। हमारी योजना इस वर्ग को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाने की है।
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