इंटरनेट.ऑर्ग का अश्वमेधी घोड़ा भारत में रुक जाएगा?

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Published on : 26 Apr, 15 11:04

नेट तटस्थता के मुद्दे पर उद्वेलन थमा नहीं है। फेसबुक के इंटरनेट.ऑर्ग का अश्वमेधी घोड़ा भारत में रोक लिया गया है। इसके तहत फेसबुक उन इलाकों में मुफ्त इंटरनेट मुहैया कराने वाला था, जहाँ इसकी उपलब्धता नहीं है या जहाँ लोग इंटरनेट का खर्च उठा नहीं पाते। फ्लिपकार्ट ने अपने आपको एअरटेल की एअरटेल ज़ीरो योजना से अलग कर लिया है जिसके तहत उसकी ई-कॉमर्स सेवाएँ ऐसे स्मार्टफोनों पर भी उपलब्ध होने वाली थीं जिनमें इंटरनेट कनेक्टिविटी मौजूद न हो। टाइम्स समूह और क्लियरट्रिप.कॉम फेसबुक की इंटरनेट.ऑर्ग परियोजना से पीछे हट गए हैं। इधर पारंपरिक मीडिया और सोशल मीडिया में हंगामे का दौर जारी है। जागरूकता की हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि युवक कांग्रेस और एनएसयूआई ने नेट तटस्थता के मुद्दे पर बाकायदा जुलूस निकाल दिया है- यह इल्जाम लगाते हुए कि ट्राई और दूरसंचार कंपनियों के बीच सांठगांठ है।

सांठगांठ की बात छोड़िए, यह सीधे-सीधे कारोबारी हितों का मामला था। हर कोई अपना बाजार बढ़ाना चाहता है, लेकिन रेगुलेटर भी कोई चीज़ है और इन दिनों प्रतिद्वंद्विता की भी रक्षा की जाती है। पुराना जमाना नहीं रहा कि सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी जो चाहे, सुविधा दे दे या मनमर्जी की सीमाएँ लगा दे। एअरटेल ज़ीरो और इंटरनेट.ऑर्ग के तहत हुई पेशकश कम से कम अब तक यूज़र के खिलाफ नहीं थी। वह समान कारोबारी माहौल और प्रतिद्वंद्विता के सिद्धांत के खिलाफ थी। आगे जाकर इसका नकारात्मक रूप सामने आने वाला था, ऐसा अंदेशा सबको है। इसे कुछ यूँ समझिए कि जैसे आपसे कहा जाए कि अगर आप फिलिप्स के बल्ब जलाते हैं तो उतने बल्बों के लिए आपको बिजली का बिल नहीं देना पड़ेगा। अब होगा क्या? तमाम लोग फिलिप्स के बल्ब खरीदने के लिए दौड़ पड़ेंगे। दूसरी बल्ब कंपनियाँ पिछड़ जाएंगी। और जब बाजार पर फिलिप्स का एकाधिकार हो जाएगा तो वह नजरिया बदलने के लिए स्वतंत्र होगा। आप पूछेंगे कि इसमें हंगामा क्या है? यूज़र के लिए तो अच्छी सुविधा है, भले ही कुछ समय के लिए सही!

हंगामा इसलिए है कि अगर दूरसंचार कंपनी किसी को फ्री में इंटरनेट दे सकती है तो कल को वह इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए मनचाही दरें तय करने को स्वतंत्र होगी। मसलन कल को फ्लिपकार्ट एअरटेल को पैसा देकर कहे कि उसके नेट कनेक्शनों में प्रतिद्वंद्वी स्नैपडील की वेबसाइट खुलनी नहीं चाहिए या फिर यह कि जितनी देर के लिए स्नैपडील खोली जाए उसके लिए अधिक चार्ज लिया जाना चाहिए जबकि फ्लिपकार्ट के प्रयोग के दौरान इंटरनेट का कोई चार्ज नहीं होना चाहिए। मगर फिलहाल यह आशंका सिर्फ दिमाग में है। ऐसा हुआ नहीं है। यह अलग बात है कि सामा मामला पेश कुछ इस तरह किया जा रहा है कि अलग-अलग वेबसाइटों को एक्सेस करने के अलग-अलग रेट तय हो गए हैं। भैया, फिलहाल तो बहस इस बात पर है कि फ्री में सुविधा देने की इजाजत है या मनाही।
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