बहुभाषी कवि सम्मिलन सम्पन्न

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Published on : 18 Apr, 15 18:04

बहुभाषी कवि सम्मिलन सम्पन्न जैसलमेर , स्थानीय जवाहन निवास होटल में साहित्य अकादमी दिल्ली के तत्वाधान में आयोजित किये जा रहे कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रथम सत्र् में उर्दु के मशहूर शायर चन्द्रभान ख्याल की अध्यक्षता में बहुभाषी कवि सम्मेलन का आगाज हुआ। इस सत्र् में सत्यदेव संवितेन्द्र ने राजस्थानी भाषा सतीश गुलाटी ने पंजाबी भाषा में तथा सुरजीत होश ने डोगरी तथा माधव कौशक ने हिन्दी में अपनी-अपनी प्रतिनिधि रचनाएं प्रस्तुत की।


सुरजीत होश में डोगरी में अपनी कविताएं पेश करने के साथ-साथ गजल भी प्रस्तुत की जिसके आशार थे।
उदासी और सब अ६को के धारे एक जैसे है।
ये गम मेरे हो या तुम्हारे एक जैसे है।
पंजाबी कवि सतीश गुलाटी की पंजाबी कविता ‘‘ समै दी लोर है सब समै अनुसार बैठा है‘‘ यहां बिकण नै हर आदमी तैयार बैठा है, ने पंजाबी भाषा की कोशश को श्रोताओं तक पंहुचायां।
गुलाटी की पंक्तियों मै नही कैंदा मिटटी की खु६बु कैन्दी है। जिन्दा लोगो की भाषा ही जिन्दा रैन्दी है को भी खूब सराहा गया।
राजस्थानी कवि सत्यदेव संवितेन्द्र की राजस्थानी कविता ‘‘सुपना रीत रचै आंख्या री‘‘ ने जमकर दाद बटोरी वही हिन्दी कवि माधव कौशक की गजलों ने कवि सम्मिलन के आयोजन को सार्थक रूप दिया। उनके शेर कडी चटटान से सीने में से सागर निकल आये, अगर अहसास का सूरज मेरे भीतर निकल आये। उनकी गजल ‘‘ बस्ती के लोग‘ भी प्रभावी रही।
उर्दु के जानेमाने शायर व सत्र् के अध्यक्ष चन्द्रभान ख्याल की गजलों ने सबका ध्यान आकर्षित किया। उनके द्वारा प्रस्तुत ‘‘दलित गजल‘‘ करू तो क्या करू बेहद पसन्द की गई।
मशहूर शायर कुमार पासी को समर्पित उनकी कविता में संवदेना को उच्च स्वर सामने आये।
काव्य सम्मिलन के दूसरे और आखिरी सत्र् में सुनीता रैना पण्डित की क६मीरी कविता वर्ष प्रतिपदा ‘‘नया बरस‘‘ के द्वारा क६मीरी पण्डितो की घर से बेघर होने की पीडा को अभिव्यक्ति दी। उनकी बचपन वापिस आओ व खालीपन कविताएं भी पसन्द की गई।
राजस्थानी कवि घन६याम नाथ कच्छावा की राजस्थानी कविता ‘‘हिण्डो‘‘ व हिन्दी कविता कच्ची रोटी पर जमकर दाद मिली कच्छावा की कील व कांई भरासो कविताएं भी सराही गई।
इस आखिरी सत्र् की अध्यक्षता पंजाबी कवि रवेलसिंह द्वारा की गई। उनके द्वारा प्रस्तुत कविता ‘‘एन्टीक‘‘ ने वर्तमान पीढी के पुराने चीजे के मोह का व्यंग्यात्मक चित्र्ण किया कि आज पुरानी चीजें तो घर में सजाते है लेकिन घर के बुजुर्ग सार-संभाल को तरसते रहते है।
रवेल सिंह की भूख कविता भी नायाब प्रस्तुति में सुमार योग्य रही।
कार्यक्रम के अन्त में अकादमी उपसचिव गीताजंलि चटर्जी द्वारा आगन्तुक कवियों व श्रोताओं का आभार किया गया व मीडिया का भी धन्यवाद किया।
आज के कार्यक्रम में जैसलमेर के स्थानीय कवि रंगकर्मी विजय बल्लाणी, हरिवल्लभ बोहरा, दीनदयाल ओझा, किशनसिंह भाटी, बालकिशन जोशी, वल्लभ पणिया, मनोहर महेचा, आनन्द जगाणी, ओम भाटिया, बिठलदास व्यास, रामचन्द्र लखारा, नरेन्द्र वासु, दीनदयाल तंवर, बालकिशन जगाणी, श्रीवल्लभ पुरोहित आदि उपस्थित रह।

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