कवियों ने बहायी भाषायी संगम की रसधारा

( 4128 बार पढ़ी गयी)
Published on : 15 Apr, 15 08:04

देवीसिंह बडगूजर जोधपुर। सूर्यनगरी की सबसे पुरानी साहित्यिक संस्था साहित्य संगम की ओर से मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन यहां सेठ श्री रघुनाथ दास परिहार धर्मशाला के प्रेक्षागृह में किया गया। गोष्ठी में हिन्दी, उर्दू और राजस्थानी के रचनाकारों ने काव्य प्रस्तुति देकर भाषायी संगम की रसधारा बहायी।
तीन भाषों के सिद्धहस्त रचनाकार श्यामसुन्दर भारती ने अपनी नवीनतम काव्य कृति अेक दीवौ अंधारा रै खिलाफ से जिन वगत आपां जठै होवां, वठै नीं होवां आपां कठे होवां सुनाकर मनुष्य की मन स्थिति का चित्रण किया। गोष्ठी में हिन्दी व राजस्थानी भाषा के रचनाधर्मी मीठेश निर्मोही ने अपनी जैसलमेर यात्रा के शब्द चित्र ऐसे ही मुस्कुराना जैसे सेवण की जडों में मुस्कराने लगती है मरूधरा बूंद भर नमी पाकर प्रस्तुत कर थार मरूस्थल के यथार्थ को जीवंत किया। वरिष्ठ साहित्याकार मदन मोहन परिहार ने मुक्तक जिसके ह्रदय में ईमान होता है, खुदा उस पे मेहरबान होता है, याद करती हैं सदियां जिसे, वो न हिन्दू होता है न मुसलमान होता है, प्रतिष्ठित रचनाकार मुरलीधर वैष्णव ने कविता कौन समझाए ुन्हें कि तुमने अंतस की ज्योति से भाषित किया था अपने भीतर के छन्द को सैयद मुनव्वर अली ने कितनी गहरी जडे हैं मां की , रामसिंह राठौड ने भोर की पहली किरण और एमएम अरमान ने लम्हा - लम्हा सांसों का हिसाब है, जिंदगी भी क्या अजब किताब है सुनाकर सामाजिक विसंगतियों, मानवीय फितरत, मां की महत्वता और जिन्दगी की सच्चाईयों का काव्यात्मक विश्लेषण किया। गोष्ठी के अंत में चिंतक विजेन्द्रसिंह परिहार ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया।

© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.