घोड़ा लोग का है बड़ा महत्व

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Published on : 30 Mar, 15 09:03

आजकल राजनीति में घोड़ लोगें का महत्व भोत बढ़ गएला है। जानकार लोग बोलता है कि जनहित पार्टी का स्वामी ने अपना साथी लोग को बोला है− राजनीति में अपना पार्टी का पकड़ बनाये रखने का वास्ते दूसरा पार्टी से कुछ घो़ड़ा फोड़ कर लाओ। जी हां, राजनीति अब घुड़साल में होने लगा है। नेताश्री ने साथी लोग को बोला− देखो, वो पार्टी बिखर रहा है, उसका छह घोड़े फूटने का वास्ते लिए तैयार है− वो लोग को जा कर फुसलाओ। मांगता होवे तो अपना सरकार में मंत्री पद देने का वादा बी कर देना। कुछ मंत्री वो लोग का बन जाएंगा, बाकी खुर्ची तो अपना पास रहेंगा। वो घोड़ा लोग को फुसलाना आसान होएंगा, कारण, वो खुद फूटने का वास्ते तैयार बैठा है। जी हां, अबी राजनीति घुड़साल में होने लगा है।

उनका पार्टी तो खैर पहले से ईच तबेला था। जिधर देखो, उधर घोड़ा लोग अलग−अलग सुर में हिनहिनाता है। सबी को अपना हिनहिनाना जास्ती अच्छा लगता है। वो साथी लोग का हिनहिनाने का तारीफ़ तो करता है, लेकिन अपना हिनहिनाने का जास्ती। आज ये समझना मुश्किल हो गया है कि घोड़ा लोग में से कौन बेहतर नियम−कानून बघारता है और कौन आदर्श का बात जास्ती करता है। पॉलिटिकल साइंस एक ऐसी अनोखा चीज है जो घोड़ा लोग को बी दार्शिनक बना देता है हैं।

जब से राजनीति में हॉर्स−ट्रेंडिग नाम का गतिविधि चालू हुएला है, राजनीति को घुड़साल बनाने पर कम्मर कस तुला नेता लोग आदर्श, जनहित और देशहित जोर−जोर से हिनहिनाने लगा है। ये घुड़साली नेता दूसरे नेता लोग को गधा समझता है। ये लोग भूल जाता है नेता लोग में बुनियादी फरक जास्ती नहीं होता। इसी कारण बहुत−सा नेता लोग को घुड़साल बनाने में जुट गया है। नामचीन हास्य सम्राट स्वर्गीय पंडित गोपाल प्रसाद व्यास ने एक बार नेता लोग का तुलना गधे से कर दिया था। राजनीति ने तुरंत उनको पकड़ कर सज़ा देने के लिए पेश करने का मांग कर दिया था। लेकिन, स्वर्ग का वापसी का टिकट नहीं मिलता। वरना, पैरिस, लंदन, स्विट्ज़रलैंड का माफिक नेता लोग स्वर्ग का सैर बी कर आता।

घोड़ लोग जनहित में हिनहिना रहा है, देशहित हिनहिना रहा है, अपना− अपना घुड़साल चला रहा है। और बाकी जो कुछ वो लोग आम तौर पर करता है, सो तो कर ईच रहा है। राजनीति ने ऐसा अेद्य दीवार अपना चारों बाजू खड़ा कर लिया है कि जनता सिरफ़ घुड़साल का नाटक देखने को मजबूर है। सी दल में घुड़साल ह। सी दल, दूसरा दल का घोड़ा खोल कर ले जाने का वास्ते लालायित है। लगता है अब किसी घोड़े को कोई आदर्श याद नहीं आता। वो लोग ने समझ लिया है, जब हिनहिनाना ईच है तो इधर हिनहिनावे या उधर, क्या फरक पड़ता है!

घोड़ा लोग का खासियत ये होता है कि उनका रंग अलग−अलग हो सकता है, चेहरा अलग−अलग हो सकता है, वो अलग−अलग तरह का टोपी पहनता है, लेकिन रहता घोड़ा ईच है। सब एक दूसरे का हिनहिनाना समझता है। जब कोई गैर घोड़ा ऐतराज करता है तो वो लोग बोलता है− ''तुम हमारे कहने का मतलब नहीं समझा। ''अगर, सामने वाला बोले कि कैसे नहीं समझा?'' तो जवाब मिलेंगा, ''कारण तुम घोड़ा नहीं है। तुमको पता नहीं है घोड़ा लोग का भाषा में व्यंजना बहुत होता है −देश को लेकर, देशहित को लेकर, जनहित को लेकर!''

राजनीति का किसी घोड़ा को फूटने में कोई ऐतराज नहीं है। हर घोड़ा बस इतना जानना चाहता है कि जिधर बी वो जाएंगा, उधर उसको रातब कैसा मिलेंगा? अपना मरजी से हिनहिनाने का आज़ादी होएंगा या नहीं? उसकी पीठ खुजाया जाएंगा या नहीं? घोड़ा लोग को आरामदेह घुड़साल मांगता। आप मुस्कुरा रहा है ! देखिए, कहीं घोड़ा लोग बुरा न मान जावे ! कल को घोड़ा लोग राजनीति का ाग्य विधाता बन सकत है।

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