गांव- गांव ढाणी-ढाणी विधिक चेतना की अलख जगी।

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Published on : 27 Mar, 15 17:03

प्रतापगढ / राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्धारित एक्शन प्लान के समुचित क्रियान्वयन के तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष जिला एवं सेशन न्यायाधीश पवन एन. चन्द्र के निर्देशन में गांव गांव ढाणी-ढाणी तक विधिक चेतना की ज्योति जगाने की कडी में विभिन्न गांवों में विधिक साक्षरता शविरों का आयोजन सम्पन्न हुआ।
आज के सफल आयोजन की कडी में प्रथम विधिक साक्षरता शविर का आयोजन अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-प्रशान्त शर्मा की अध्यक्षता में धरियावद ताल्लुका मुख्यालय के गांव पांचागुडा में हुआ
गांव के लोगों को सरल भाषा में बच्चों की शिक्षा तथा उनके अधिकार, बाल मजदूर/बाल बन्धुवा मजदूरों का पुनर्वास, अनुसूचित जाति, जनजाति एवं आदिवासियों के कल्याण हेतु बने कानूनों एवं योजनाओं के संबंध में विस्तृत रूप से जानकारी देते हुये उनसे संबंधित विविध प्रावधान बताये।
अपने सरल एवं सहज शब्दों के उद्बोधन में ग्रामीण जनो को बताया कि बच्चे देश के भावी नागरिक हैं तथा बाल अधिकारों के संरक्षण के बिना उनका सर्वांगीण विकास संभव नहीं है। उनके सर्वांगीण विकास पर ही देश का उज्जवल भविष्य निर्भर करता है। लगभग हर होटल व रेस्टोरेंट में बाल मजदूर दिन रात काम में जुटे हुये हैं। एवं बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 के अन्तर्गत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग व राज्य स्तर पर राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग बने हुये हैं जिनका कार्य बालकों के विभिन्न अधिकारों को सुनिश्चित करने संबंधी इत्यादि कई कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी भी प्रदान की।
आज के सफल आयोजन की कडी में द्वितीय विधिक साक्षरता शविर का आयोजन सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट-श्रीमती सोनाली प्रशान्त शर्मा की अध्यक्षता में गांव कटारों की भैं थाना पिपलखूंट में हुआ।
आज के शविर में ग्रामीण बन्धूओं से रूबरू होते हुए श्रीमती सोनाली प्रशान्त शर्मा ने भारतीय समाज में व्याप्त बाल विवाह जैसे अभिशाप को समूल रूप से समाप्त करने का आव्हान करते हुये शिविर में उपस्थित ग्रामीणों को जानकारी दी कि समाज में बालिकाओं के प्रति समानता एवं सहानुभूति का दृष्टिकोण अपनाया जाना अति आवश्यक हो गया है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बालिकाएं किसी भी क्षेत्र् में पुरूषों से भिन्न नहीं है, परन्तु वर्तमान समय में भी बालिकाओं के अस्तित्व को माता की कोख में आने के समय से ही खतरा उत्पन्न हो जाता है।
अपने उद्बोधन में सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट-श्रीमती सोनाली प्रशान्त शर्मा ने बताया कि अल्पव्य बालक बालिकाओं की शादी न केवल उनकी मानसिक हत्या के समान है, अपितु बालविवाह अल्पव्य बालिकाओं में अनेक प्रकार की शारीरिक जटिलताएं भी उत्पन्न करता है। प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह बालिकाओं को समुचित शिक्षा मुहैया करवाये ताकि उन्हें भरपूर जीवन जीने का अवसर प्रदान करे। शिविर में कई ग्रामीणजन लाभान्वित हुए।

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