अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना का उद्घाटन सम्पन्न

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Published on : 01 Mar, 15 09:03

उदयपुर । महाराणा प्रताप कृशि एवं प्रौद्योगिकी विष्वविद्यालय के संघटक राजस्थान कृशि महाविद्यालय में अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना पर भारतीय कृशि अनुसंधान परिशद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित चार दिवसीय, द्वितीय समूह परिचर्चा का उद्घाटन सत्र आज सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आईसीएआर के उपमहानिदेषक (उद्यान विभाग) डॉ. एन के कृश्णाकुमार ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज हमारे देष में उद्यानिकी फसलों का उत्पादन २८० मिलियन टन तक पहुंच चुका है। इसमें २८ से २९ प्रतिषत फलों की भागीदारी है। उन्होने बताया कि विकसित समाज में फलों का उपभोग अधिक होता है क्योंकि इससे प्रति किलोग्राम अधिक पोशण मिला है। अतः भारत जैसे विकासषील देष में बढते हुए सामाजिक स्तर को देखते हुए फलों के उत्पादन को अधिक से अधिक बढाना होगा। उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हाल ही में जारी मृदा स्वास्थ्य कार्ड परियोजना का जिक्र करते हुए कहा कि हमें सीमित जल संसाधनों को देखते हुए प्रति बूंद अधिक उत्पादन देना होगा। अतः हमें वैज्ञानिक रूप से खेती करनी होगी। साथ ही उन्होने फलों की गुणवत्ता, उद्यानों में प्रयुक्त खाद बायोफर्टिलाइजर्स, बायोपेस्टीसाईज्ड एवं जनन द्रव्य के विकास की बात भी कही।
कार्यक्रम के विषिश्ट अतिथि आईसीएआर के उपमहानिदेषक (उद्यान विज्ञान) डॉ. टी. जानकीराम ने उद्यानिकी व फल उत्पादन में किसानों के समक्ष उपस्थित विभिन्न चुनौतियों का जिक्र करते हुए बताया कि आईसीएआर, जनन द्रव्य विकास के साथ ही बेहतर फल उत्पादन तकनीकों, लागत संसाधनों के उचित उपयोग, पौध स्वास्थ्य, प्रसंस्करण एवं विपणन के दृश्टिगत विभिन्न आयामों पर कार्य कर रही है। उन्होने फसल विविधता के उपाय स्वरूप उद्यानिकी के विकास के लिए इस समय को स्वर्ण युग की संज्ञा दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एमपीयूएटी के माननीय कुलपति प्रो. ओ. पी. गिल ने बताया कि हमारे देश का स्थान उद्यानिकी फसल उत्पादन में विष्व में चीन के बाद दूसरा है। उन्होने जानकारी देते हुए बताया कि विष्व स्वास्थ्य संगठन की अनुषंसा के अनुसार प्रति व्यक्ति ४०० ग्राम फल और सब्जी का प्रतिदिन उपयोग करना चाहिए परन्तु हमारे देष में यह औसत १५० ग्राम और राजस्थान में तो और भी कम १० ग्राम फल तथा ५० ग्राम सब्जी प्रतिदिन तक ही सीमित है, जो कि राजस्थान के लोगों के स्वास्थ्य की दृश्टि से एक विचारणीय बिन्दु है। उन्होनें बताया कि हमारे प्रदेष के झालावाड में नागपुरी संतरा, श्री गंगानगर में माल्टा एवं किन्नु तथा चित्तौडगढ और राजसमन्द में सीताफल तथा षुश्क क्षेत्रों में अनार, बेर, आंवला इत्यादि फलों का बेहतर उत्पादन हो रहा है। उन्होने बताया कि सीताफल के क्षेत्र में विभिन्न अनुसंधान कार्यो व तकनीकी विकास के फलस्वरूप विष्वविद्यालय की राश्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी है, उन्होने कहा कि वैज्ञानिकों को फलोत्पादन की चुनौतियों से निपटने के लिए इस समूह चर्चा में हल खोजने होंगे।

उद्घाटन सत्र में डॉ. प्रकाष पाटिल व नजीब द्वारा संकलित फल फसल कैलेण्डर, डॉ. दीपक कुमार सरोलिया एवं डॉ. विरेन्द्र सिंह द्वारा लिखित आम व अमरूद उत्पादन प्रौद्योगिकी तथा डॉ. कपिल देव आमेटा, डॉ. आर. ए. कौषिक एवं डॉ. सुनील पारीक द्वारा लिखित पुस्तकों का भी विमोचन किया गया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में अनुसंधान निदेषक डॉ. पी. एल. मालीवाल,, ने स्वागत उद्बोधन दिया। परियोजना निदेषक, आईसीएआर, डॉ. प्रकाष पाटिल ने समन्वित फल अनुसंधान परियोजना की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. दीपक षर्मा ने तथा धन्यवाद की रस्म कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आर. ए. कौषिक ने अदा की।

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