GMCH STORIES

आचार्य तुलसी एक नाम नही संस्कृति है ः मुनि सुखलाल

( Read 17949 Times)

23 Oct 17
Share |
Print This Page
आचार्य तुलसी एक नाम नही संस्कृति है ः मुनि सुखलाल उदयपुर, शासन श्री मुनि सुखलाल ने कहा कि आचार्य तुलसी गुणों की खान थे। तुलसी एक नाम नही संस्कृति है। ६० वर्षों से मैंने निरंतर आचार्य, जनता के सामने और एकांत में भी उन का नाम लेते लेते इस अवस्था में पहुंच गया हूँ। देश नही विदेशों में भी आचार्य तुलसी की ख्याति है। विदेशों में उस समय जैन धर्म का पर्याय बन गए थे आचार्य तुलसी। धर्म में आस्था और दर्शन में जिज्ञासा होती है।
वे रविवार को आचार्य तुलसी के १०४ वें जन्म दिवस को अणुव्रत दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्र को आचार्य तुलसी का अवदान विषयक आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आचार्य ने महावीर के भाव का अणुव्रत के रूप में दर्शन दिया, जो आज भी घर घर चर्चा का विषय है। अणुव्रत समिति के कल हुए कार्यक्रम में अहसास हुआ कि युवाओं की कमी है। अणुव्रत की गतिविधियों में युवाओं को जोडने की जरूरत है। आचार्य की जलाई गई ज्योति को आगे ले जाएं।
मुनि मोहजीत कुमार ने है तुलसी तेरे चरणों में वंदन है बारंबार गीत प्रस्तुत करते हुए कहा कि कुछ लोग राष्ट्र को बहुत कुछ देकर जाते हैं लेकिन उनके प्रति सहज श्रद्धा का भाव जाग जाता है। उन्होंने आचार्य तुलसी की दूज के चांद के साथ परिकल्पना करते हुए कहा कि अपनी शीतलता के साथ राष्ट्र को अपनी ओर आकर्षित किया। उनके जीवन मूल्यों को हम जी सकें, यही प्रयास करना है। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी के जीवन को मिनटों, घंटों में कह पाना असंभव है। सैंकडों पृष्ठ लिखें, तो भी नामुमकिन है। उनके भीतर मानव कल्याण की चेतना हमेशा लगी रहती थी। पंजाब से कन्याकुमारी तक उन्होंने ७ हजार किमी से अधिक की पदयात्रा की। जन जन तक पहुंचने का प्रयास किया। उन्होंने इतने पद्य लिखे जिन्हें गिनना भी असंभव है। अपने संकल्प से वे आगे बढे। हिंदी से उनकी भाषा को विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया। महिला वर्ग के लिए उन्होंने बहुत काम किया। चारदीवारी में रहने वाली महिलाएं आज विश्व स्तर पर पहुंच गई हैं। मुनि जयेश कुमार ने गीतिका प्रस्तुत की।
सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने कहा कि वे जैनाचार्य ही नही बल्कि जनाचार्य थे। गरीब की झोंपडी से राष्ट्रपति भवन तक तेरापंथ धर्मसंघ को पहुंचाया। अणुव्रत जैसे अवदान दिए। अपना आचार्य पद त्याग कर जीवन काल में ही युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य पद पर आरूढ किया। अणुव्रत की परिकल्पना आज संसार को नई दिशा दे रही है। अहिंसा यात्रा भी नई परिकल्पना है।
महिला मंडल अध्यक्ष लक्ष्मी कोठारी ने कहा कि बचपन से अध्ययन में रुचि के कारण मेधावी रहे। ४ दिन ही युवाचार्य रहे। २२ वर्ष की उम्र में तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य पद को सुशोभित किया। गंभीर विषयों को सरल भाषा में जनता के समक्ष रखते थे।
तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष निर्मल धाकड ने कहा कि आज कार्यक्रम ऐसे आचार्य का है जिनमें आरपार देखने की क्षमता थी। विश्वास नही होता कि वे हमारे बीच नही हैं। कम उम्र में आचार्य पद को सुशोभित किया। श्रमण श्रेणी का प्रतिपादन किया। हम गौरवान्वित हैं कि हम तेरापंथी हैं। ये कहने का गर्व आचार्य तुलसी ने दिया।
मंगलाचरण मुनि मोहजीत कुमार एवम मुनि जयेश कुमार के संसार पक्षीय परिजनों ने श्रद्धा से रट लो तुलसी का नाम... संगान कर आचार्य तुलसी का स्मरण किया। गुरु परिषद के प्रतिनिधि पंकज भंडारी ने दो पद्यों के साथ गीत प्रस्तुत किया।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like