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अपनी पौध को बचाएं मानवता के हत्यारों से

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19 Sep 17
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पिछले तीन चार वर्षों से समाज का एक वीभत्स और भयावह चेहरा सामने आ रहा है जिस पर सब की चुप्पी ने इसे और शह दी है।
बच्चे भगवान का रुप होते हैं पता नहीं कब इनमें लोगों को वह रूप नजर आने लगा है जिस पर बोलते है लिखते हुए ही रूह कांप जाती है
क्या अब हम सिर्फ हाड़ मांस और गोश्त रह गए हैं जिसका उद्देश्य शरीर की भूख शांत करना मात्र है। समाज का ऐसा विकृत रूप मैंने पहले कभी नहीं देखा था। एक के बाद एक शिकार होते नन्हें मासूम बच्चों की चीख हमेशा कानों में गूंजती सी महसूस होती है। अपराधी घर के अंदर छिपे भेड़िए, स्कूल में मौजूद दरिंदे या फिर पड़ोस में बैठे राक्षस कोई भी हो सकते हैं।
कौन बचाएगा इन मासूमों को जब रक्षक ही भक्षक बन गए हों। मैंने क्रिमिनल सायकॉलोजी तो नहीं पढ़ी है पर एक स्त्री होने के नाते इतना जरूर समझती हूं कि ऐसे लोग आज हर जगह मौजूद हैं और शायद इनकी तादाद बढ़ती ही जा रही है। मुझे कभी यह समझ नहीं आएगा कि एक माह की बच्ची से दुष्कर्म करते हुए एक हैवान को क्या खुशी मिली होगी? किस रूप में उसने इस बच्ची को देखा होगा? मुझे नहीं लगता कि इस तरह के केस में से हैवान पर सिर्फ मुकदमा चलाया जाना चाहिए। बच्ची की मां को इस शैतान के टुकड़े कर देने की इजाज़त दे देनी चाहिए। किसी वकील को ऐसे शैतान का मुकदमा नहीं लड़ना चाहिए जो बच्चों के दुष्कर्म का आरोपी हो। उसकी सजा इतनी भयानक होनी चाहिए कि सुनकर भी रूह कांप उठे।
मैं भी एक मैं हूं। मुझे उस खुशी का अहसास है जो 9 महीने कोख में रखकर जन्म देने के बाद होती है। लेकिन किसने यह हक दिया है उन शैतानों को जो मां से बच्चे को छीन लेते हैं। दो मिनट के सुख ने शायद इंसान को पागलपन की हद तक ला दिया है।
हमारे देश में ऐसी सोच ने कब जन्म लिया यह निश्चित तौर पर सबसे बड़ा प्रश्न है। जब सभी जगह दरिन्दे मौजूद हों तो इन मासूमों को कौन बचाएगा? मानसिक विकृति के शिकार इन हैवानों के परिवार वाले इन्हें क्यों बचाते हैं? क्या उन्हें बिल्कुल पता नहीं होता कि यह हैवान क्या कर सकते हैं?
कौन सा ऐसा डर है जो मां बाप को चुप रहने पर मजबूर करता है और इन हैवानों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं। कई केसेज़ में सगे रिश्तेदार दुष्कर्म के आरोपी हैं। क्यों मां बाप ध्यान नहीं रखते और अपने कलेजे के टुकड़ों को किसी के भी साथ अकेला छोड़ते हैं? क्यों एक बच्चा मां बाप से कभी खुलकर कह नहीं पाता कि उसके साथ क्या हो रहा है ? क्या आपकी इज्जत आपके कलेजे के टुकड़े से भी बड़ी है जो आप ऐसे रिश्तेदारों से संबंध भी रखते हैं?
मैं एक ऐसी लड़की को जानती हूं जिसके चार रिश्तेदारों ने अलग-अलग उसे छूने या गलत करने की कोशिश की पर उस लड़की के मां बाप ने आज तक उन सभी रिश्तेदारों से संबंध नहीं तोड़े। जबकि उस लड़की ने चारों के विषय में अपनी मां को बता दिया था। स्कूल कॉलेज और अन्य कहीं भी बच्चा बाद में जाता है पहले सुरक्षा घर पर मिलनी चाहिए। स्कूल कॉलेज में सुरक्षा व्यवस्था क्यों ठीक नहीं है? शिक्षक हो या ड्राइवर, कंडक्टर, हेल्पर इन सभी की मानसिक स्थिति की जांच पहले ही क्यों नहीं होती? मुझे बचपन के दो किस्से आज तक याद हैं। बायलोजी पढ़ाने वाले शिक्षक सभी लड़कियों की पीठ पर हाथ फेरा करते थे। हेडमिस्ट्रेस मेरी पहचान की थी इसलिए शायद मैं तो बच गई पर बहुत सी लड़कियां नहीं बच पायीं।
मेरे घर के बगल में रहने वाली रीना अपने जीजा के शारीरिक शोषण का शिकार होकर गर्भवती हो गई थी। घर वाले शादी में गए हुए थे उसके जीजा ने मौके का फायदा उठाया और उसके साथ दुष्कर्म किया। दो महीने बाद रीना को उल्टियां होने लगी और मां-बाप को पता चला कि वह गर्भ से है। उसके पिता एक बहुत बड़े स्कूल के हेडमास्टर थे। उन्होंने रीना को ज़हर पिला दिया। दो दिन अस्पताल में मौत से लड़ने के बाद रीना हार गई। मुझे लगभग 15 वर्ष बाद यह सच्चाई पता चली कि रीना की मौत कॉलरा से नहीं हुई थी।
आज समाज शायद थोड़ा बहुत बदला है पर छोटे शहरों और गांवों की स्थिति आज भी वैसी ही है। कब हमारी सोच बदलेगी? क्या कभी दुष्कर्म पीड़ित को हम सजा देना बंद करेंगे? क्या ऐसा हो सकता है कि मां बाप अपने ही बच्चे का दर्द सुनकर भी अनजान रहें? पेरेंट्स बच्चों में ही गलतियाँ तलाश करते रहते हैं। कपड़ों और लेट नाईट पार्टियों को दोष देना बंद करके अपराधियों की मानसिकता को दोष देना शुरू करें। समाज परिवार से बड़ा कभी नहीं हो सकता। "लोग क्या कहेंगे" की भावना छोड़कर कभी अपने परिवार के साथ खड़े होना सीखें। बच्चे की क्या गलती है जो एक कुत्सित मानसिकता वाले व्यक्ति ने उसके साथ दुष्कर्म किया। दोषी को सजा़ देने की बजाये पीड़ित को दोष देना कहां का न्याय है?
मेकअप , किटी पार्टी और घूमने जाना छोड़ कर अपने बच्चों से यह पूछिए कि वह कैसे हैं? दुष्कर्म करने वाले हैं हैवान समाज में ही पैदा होते हैं। वे किसी भी दूसरे ग्रह के प्राणी नहीं हैं। आपकी सोच व दुष्कर्म पीड़ितों के प्रति दुर्व्यवहार ने ही उनके हौसले बुलंद किए हैं।
इंसानों की गिरती सोच के पीछे बहुत से कारण है जिनकी चर्चा में आज नहीं कर रही हूं। आज मुझे हर उस इंसान से जवाब चाहिए जो छेड़छाड़, भद्दे मजाक सहन करने की शिक्षा देते हैं क्योंकि शिकायत करने वालों को समाज सजा देता है।
इसके पीछे शायद यह सोच है कि सभी इसी तरह के हैं तो आखिर हम किस किस से लड़ेंगे?
परंतु कभी न कभी किसी न किसी को इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठानी होगी। यदि आप अपने आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित देखना चाहते हैं तो आपको उनके खिलाफ दुष्कर्म करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दिलानी ही होगी। समाज का स्वरूप पहले से बहुत बदल गया है और नैतिकता कहीं पीछे छूट गई है। पहले औरतें व लड़कियां शिकार होती थी और आज छोटे बच्चे। अभी भी अगर हम नहीं समझे तो हमारी संस्कृति का नामो निशान मिट जाएगा ।
आखिर कैसे रुकेगा यह सिलसिला?
सुरक्षा के प्रति लापरवाह स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना बंद कर दीजिए। पैसे बचाने की खातिर प्राइवेट गाड़ियों में बच्चों को मत भेजिए। बच्चे पैदा कर देने मात्र से आपका काम खत्म नहीं हो जाता है। उन्हें अच्छा भविष्य देने के लिए कुछ त्याग भी करने पड़ते हैं। बच्चों पर सिर्फ नज़र मत रखिए उनसे बात कीजिए, उनके दुख दर्द को समझिए। सबसे महत्वपूर्ण सलाह, बच्चों के साथ गलत करने वाले हैवानों को माफ मत कीजिए । ऐसे रिश्तेदारों, मित्रों, सहकर्मियों से सभी संबंध तोड़ दीजिए। यदि वे किसी के साथ ऐसा कर सकते हैं तो आपके परिवार के साथ भी मौका मिलने पर कुछ भी कर सकते हैं। गलत के खिलाफ चुप मत रहिए। आवाज उठाइए आखिर आपके लाडलों की सुरक्षा का प्रश्न है।
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