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भगवा रंग को रक्ताभ बताने की अभद्र कोशिश

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13 Sep 17
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भारतीय संस्कृति उच्च मानवीय मूल्यों की सूत्रधार है। भगवा रंग उसका प्रतीक है। हमने तलवार से रक्त बहा कर युद्ध नहीं जीते, वरन दिलों को जोड़ कर युद्ध जीते हैं। युद्ध को हमारी संस्कृति निषेध नहीं मानती, किन्तु हमारे योद्धा पीठ पर वार नहीं करते, छुप कर किसी की हत्या नहीं करते। युद्ध भूमि में जब शत्रु विश्राम कर रहा है, तब भी उस पर प्रहार नहीं करते। जो संस्कृति हर प्राणी में आत्मा के दर्शन करती है, उस संस्कृति के अनुयायी क्या निर्दोष इंसानों को बम विस्फोटों से उड़ा सकते हैं ? जो चिंटियों को मारने को पाप समझते हैं, वे क्या मानव अंगो के चिंथड़ो से बह रहे रक्त को देख कर क्रूर हंसी से अट्हास लगा सकते हैं ? हम वासुदेव कुटुम्बकम अवधारणा को मानते हैं, इसलिए मजहब का चश्मा चढ़ा कर इंसानों में भेद नहीं करते। फिर प्रश्न उठता है कि हमारे पवित्र भगवा रंग पर रक्त के छींटे डाल, उसे रक्ताभ बताने की अभद्र कोशिश किस ने की ? क्यों की ?

हम जिस कुल में जन्म लेते हैं, उस कुल पर गर्व करते हैं, कभी उसे झूठ और प्रपंच से बदनाम करने की कोशिश नहीं करते, फिर उन लोगों ने क्यों एक गैरहिन्दू महिला का श्रेष्ठतम अनुचर बनने के लिए अपने ही भगवा रंग को रक्त में भींगा हुआ बताया ? जबकि यह झूठ था। एक कहानी लिखी गर्इ थी, पात्र ढूंढे गये थे, निर्दोष नागरिकों को जेलों में ठूंस कर उन्हें यातानाएं दे, लिखे हुए झूठे संवाद बुलवाने की कोशिश की गर्इ थी। प्रश्न उठता है कि जब जांच एजेंसियां आठ नो वर्षों में कोर्इ प्रमाण नहीं जुटा पार्इ, फिर उन्हें जेल में क्यों रखा गया ? बम विस्फोट करने वाले असली गुनहगारों को रिहा कर इन्हें क्यों फंसाया गया ? कातिल को छोड़ दो और बेगुनाह को बंदी बना जुल्म ढाओ-क्या यह देशद्रोह नहीं है ? आखिर कब तक हमारा मन ऐसी पार्टी, ऐसी विचारधारा और एक विदेशी शख्सियत को सम्मान देते रहेंगे, जो हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को तहश-नहश करने में लगी हुर्इ है ?

इतिहास साक्षी है कि हम आक्रान्ताओं से इसलिए नहीं हारे, क्योंकि हम कमज़ोर थे, वरन इसलिए हारे,क्योंकि हमारे अपने ही दग़ाबाज थे । एक विदेशी महिला, जो भारतीय संस्कृति और भारतीयों से नफरत करती है, भारतीयों को ही आगे कर चुनाव जीतना चाहती थी, ताकि एक समुदाय के थोक वोट पा, भगवा रंग को सम्मान देने वाली पार्टी को चुनावों में हराया जा सके। इस महिला के राजनीतिक सचिव के खुरापती दीमाग की उपज है- यह झूठी तथ्यहीन कहानी, जिसे विदेशी महिला के विशिष्ट अनुचरों ने प्रचारित कर इसका नाम दिया-भगवा आतंकवाद। इसे प्रमाणित करने के लिए प्रशासनिक अधिकारों का दुरुपयोग कर निर्दोष नागरिकों पर झूठे मुकदमे दायर कर देश को यह समझाने का प्रयत्न किया कि मुस्लिम आतंकवादी है तो हिन्दू भी आतंकवादी है। यदि मोदी सरकार नहीं बनती तो ये बेबस भारतीय नागरिक आठ-नौ साल तो क्या पूरी जिंदगी जेल में सड़ते रहते और एक घिनौना सच कभी उजागर नहीं होता। विडम्बना यह है कि तुष्टीकरण के लिए देश की सम्प्रभुता के साथ खिलवाड़ करने वाले लोग कब तक हमारे सार्वजनिक जीवन में धमाचौकड़ी मचाते रहेंगे और हम इन्हें बर्दाश्त करते रहेंगे ? क्या अब हम यह निर्णय नहीं ले सकते हैं कि हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को जो जानबूझ कर क्षत-विक्षत करेगा, उन्हें हम एक हो कर सार्वजनिक जीवन से बहिष्कृत करेंगे।
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