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भयंकर आर्थिक तंगी से दुखी वरिष्ठ पत्रकार की बेटी ने आत्महत्या की

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25 Jul 16
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भोपाल के पत्रकार शिवराज सिंह की प्रतिभावान बेटी ने पिता की आर्थिक तंगी से परेशान होकर खुदकुशी कर ली। वह आठवीं की छात्रा थी। पत्रकार शिवराज सिंह भोपाल के कई अखबारों में काम कर चुके हैं। कुछ दिन पहले प्रबंधन की मनमानी के चलते उन्हे भोपाल के एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र से नौकरी से निकाल दिया गया था। इसके बाद से वे भयंकर आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे। स्कूल की टॉपर उनकी बेटी पिता की इस तंग हालत से परेशान थी। वो पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए उसने जान दे दी।

इंडियन प्रेस फोरम के अध्यक्ष महेश दीक्षित ने इस झकझोर देने वाली दुखद घटना पर शोक जताया तथा कहा कि इसके लिए पूर्णत: शोषक मीडिया समूह और सरकार की लापरवाही दोषी है। उन्होंने पत्रकार शिवराज को समुचित आर्थिक सहायता देने की राज्य सरकार से मांग की तथा पत्रकार साथियों से दुख की इस घड़ी में शिवराज के साथ खड़े होने का आग्रह किया। श्री दीक्षित ने कहा कि सैकड़ों काबिल पत्रकार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं और उनके बच्चे इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। वजह मीडिया मालिक उन्हें काम का पूरा वेतन न देकर उनका शोषण कर रहे हैं। आज प्रदेश के कई मीडिया समूह पत्रकारों को कई-कई महीने से वेतन नहीं दे रहे हैं।

यदि पत्रकार कर्मी वेतन मांगने जाता है तो उसे मैनेजमेंट द्वारा अपमानित किया जाता है या फिर उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। जबकि मीडिया समूह खुद सरकार से समस्त सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। दबाव बनाकर हर महीने लाखों के विज्ञापन ऐंठ रहे हैं। मीडियाकर्मियों के लिए बनाए गए मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार लागू नहीं करा पा रही है। अखबारों के दफ्तरों में मजीठिया वेजेज को लागू कराने और पत्रकारों को वेजेज के अनुसार वेतन मिल रहा है या नहीं इसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी सरकार के श्रम विभाग की है। लेकिन लगता है श्रम विभाग ने इन निरंकुश हो चुके मीडिया समूहों के सामने घुटने टेक दिए हैं। पत्रकार शिवराज की प्रतिभावान बेटी की आर्थिक तंगी में खुदकुशी, सरकार की लापरवाही और मीडिया समूहों की शोषण नीति का नतीजा है।

श्री दीक्षित ने कहा कि फिर कोई पत्रकार की बेटी खुदकुशी न करे, इसके लिए सरकार को चाहिए कि, वह ऐसे मीडिया समूहों पर कार्रवाई करे, जो मजीठिया वेजेज का लाभ अपने यहां काम करने वाले पत्रकार कर्मियों को नहीं दे रहे हैं। जब तक मीडिया समूह अपने यहां कार्यरत पत्रकार कर्मियों को मजीठिया वेतनमान नहीं दे देते हैं, तब तक इन मीडिया समूहों को दी जाने वाली समुचित सरकारी सुविधाएं तथा सरकारी विज्ञापन बंद कर देना चाहिए।



मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार अरशद अली खान ने कहा है कि शिवराज सिंह ठाकुर भी एक चापलूस और चरण वंदना करने वाले पत्रकार होते तो उन्हें आर्थिक तंगी से नहीं गुजरना पड़ता। बेटी है तो कल है, जैसा बहुत खूबसूरत नारा देने वाले यह नहीं देख पा रहे कि घरों में बेटियां किस आर्थिक अभाव में जी रही हैं। श्री खान ने बताया कि उन्होंने भोपाल से सांध्य दैनिक 'जनता बाज़ार' के नाम से एक अखबार निकाला था। चार बत्ती चौराहा, बुधवार भोपाल की एक बिल्डिंग में उस अखबार का दफ्तर था। कभी-कभी काम निपटाने के बाद गैलरी में खड़ा हो जाता था। एक दिन मैंने देखा एक लड़की अपने बुज़ुर्ग पिता का हाथ पकड़कर सड़क पार करा रही है। बात आयी गई हो गयी।

कुछ दिन बाद दफ्तर की बिल्डिंग के नीचे स्थित सईद भाई की होटल में चाय पीने गया तभी वो बुज़ुर्ग होटल में आये और चाय पिलाने का कहने लगे। मैंने उन्हें चाय तो पिला दी लेकिन साथ ही उनका परिचय भी जानना चाहा। उन्होंने बताया कि उनके सात बेटे और एक बेटी है। सातों बेटे अच्छे पदों पर आसीन है और वो खुद सेवा निवृत्त हकीम हैं। उनको जो पेंशन मिलती है उसे घर की बहुएं छीन लेती हैं, बेटी उनका ध्यान रखती है लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उस बुज़ुर्ग की बात ने मुझे झंझोड़ कर रख दिया, उसी समय मैंने खुदा से दुआ की ए खुदा मुझे अगर औलाद देना तो बेटी देना।

कुछ महीनों बाद मेरी श्रीमती अस्पताल में भर्ती हुईं और एक खूबसूरत बेटी को जन्म दिया। बेटी का नाम मैंने उसके जन्म से बहुत पहले ही रख दिया था, हलीमा जी हां उसका नाम हलीमा है। अस्पताल की नर्स ने श्रीमती जी को बच्ची को सौंपते हुए कहा तेरी सास बहुत बुरी है, लड़की का नाम सुनते ही उसका मुंह फूल गया है। श्रीमती ने नर्स को बताया वो मेरी सास नहीं माँ है। जब श्रीमती ने मुझे यह किस्सा सुनाया तो मुझे हंसी भी आयी और सास की नाराज़गी का अफ़सोस भी हुआ। मैं सास की नाराज़गी दूर करने उनके पास गया। मैरी सास मुझे बेटे जैसा समझती थी और बेटे जैसा ही प्यार देती थी। मुझे देखकर उन्होंने अपने चेहरे के भाव बदले और बाप बन्ने की बधाई दी। उनकी एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी, उन्होंने कहा ' मेरे बच्चे मुझे बेटी के पैदा होने से नहीं उसकी बदकिस्मती से डर लगता है।

कल पत्रकार शिवराज सिंह ठाकुर की बेटी की आत्महत्या की खबर लगने पर मुझे यह पूरा किस्सा बरबस ही याद आगया। यह सुनकर तो और भी अधिक दुःख हुआ कि पिता की आर्थिक तंगी के चलते उसने यह क़दम उठाया। मध्यप्रदेश का जनसम्पर्क विभाग लाखों-करोड़ों रुपये मीडिया पर खर्च करता है। अगर ऐसा है तो किन लोगों पर.... क्या पत्रकारों पर? यदि हां तो शिवराज सिंह ठाकुर जैसे ईमानदार और सीधे-साधे पत्रकार की बेटी को आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या जैसा क़दम क्यों उठाना पड़ा। क्या यह कहना गलत होगा कि जनसम्पर्क का बजट केवल चापलूसों और चरण वंदना करने वाले लोगों के लिए ही है। काश! शिवराज सिंह ठाकुर भी एक चापलूस और चरण वंदना करने वाले पत्रकार होते। काम से काम उनकी बेटी को आर्थिक तंगी के चलते आत्महत्या जैसा क़दम तो नहीं उठाना पड़ता।
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