तेरापंथ धर्मसंघ के वरिष्ठ संत शासनश्री मुनि सुखलाल ने कहा कि अक्षय तृतीया यानी जिसका क्षय नहीं होता हो। यह दिन तप की महिमा उजागर करने का दिन है। जैन समाज में इसका विशेष महत्व है। भगवान महावीर को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है लेकिन अक्षय तृतीया भगवान ऋषभदेव के जमाने से चली आ रही है।
वे शनिवार को अक्षय तृतीया पर महाप्रज्ञ विहार में तेरापंथी सभा की ओर से आयोजित वर्षीतप पारणा आयोजन पर विशेष कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर कार्यक्रम में उपस्थित दो तपस्वियों हनुमान धूपिया एवं कमलाबाई चौधरी का सम्मान किया गया। उन्होंने कहा कि भगवान ऋषभदेव की वर्ष भर तप की आराधना चली। इसके बाद से इस तिथि की महत्ता और बढ गई।
मुनि मोहजीत कुमार ने कहा कि जन्मों-जन्मों के कर्मों की निर्जरा का माध्यम वर्षीतप है। शताब्दियां बीत जाने के बावजूद आज भी उस वर्षीतप के तथ्य को जीवित रखते हैं। तप-कर्मों की निर्जरा करते हैं। आज का दिन अनेक व्यवस्थाओं से जुडा है। वैदिक परंपरा का पालन हुआ, इसके बाद से इसका महत्व अबूझ के रूप् में और बढ गया। संस्कृति परंपरा का ऐसा युग था तब जो पहचान बनी, उसने भगवान ऋशभदेव का महत्व सभी तीर्थंकरों में बढा दिया। आचार्य तुलसी ने दूरदृष्टि से कार्य किया। उस पहले वर्ष में मात्र ५ पारणे हुए लेकिन गत वर्ष ही बालोतरा में ५०० से अधिक पारणे हुए। उन्होंने सभी तपस्वियों के तप की अनुमोदना करते हुए कहा कि इसका तात्पर्य यह कि ऐसे तप के भाव हम में भी जाग्रत हों। मुनि जयेश कुमार ने जय बोलो ऋषभ जिनेश्वर की... गीतिका प्रस्तुत की।
सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने बताया कि इससे पूर्व तपस्वियों हनुमान धूपिया, कमलाबाई चौधरी, विमलाबाई करणपुरिया, बसंत कंठालिया, केसरदेवी परमार, कन्हैयालाल सरणोत, दिलखुश कावडया का परिचय दिया गया। तपस्वियों का उपरणा ओढा साहित्य भेंटकर सम्मान किया गया।
कार्यक्रम के आरंभ में सीमा बाबेल एवं समूह ने मंगलाचरण किया। संचालन उपाध्यक्ष सुबोध दुग्गड ने किया। आभार मंत्री राजेन्द्र बाबेल ने व्यक्त किया। समारोह में महिला मण्डल अध्यक्ष चन्द्रा बोहरा ने भी विचार व्यक्त किए। कमल नाहटा ने गीत प्रस्तुत किया।
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