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"सौ कोस मूमल" उपन्यास के जरिए मूमल महेन्द्र की प्रेमकथा जीवंत

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21 Feb 17
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"सौ कोस मूमल" उपन्यास के जरिए मूमल महेन्द्र की प्रेमकथा जीवंत जानी मानी उपन्यासकार डॉ. मीनाक्षी स्वामी ने "सौ कोस मूमल" उपन्यास के जरिए राजकुमारी मूमल महेन्द्र की ऐतिहासिक प्रेमकथा को “ढाणी-ढाणी और गाँव-गाँव में पहुँचा कर राष्ट्रीय स्तर पर जीवंत कर दिया
मुंबई के मणिबेन नानावटी महिला कालेज में आज भव्य गरिमामय आयोजन में जानी मानी उपन्यासकार डॉ. मीनाक्षी स्वामी के बहुचर्चित उपन्यास "सौ कोस मूमल" का लोकार्पण प्रख्यात कार्टूनिस्ट आबिद सूरती, ख्यात कथाकार सुधा अरोरा, सूरज प्रकाश व स्टोरी मीरर प्रकाशन के संस्थापक एवं सी.ई.ओ. बिभुदत्त राउत के द्वारा सम्पन्न हुआ।


डॉ. मीनाक्षी स्वामी ने बहुत ही शांत और निरुद्वेग ढंग से खुद को सृजन में एकाग्र किया है और लिखते रहने का विकल्प सिर्फ लिखते रहना ही माना। बावजूद इसके उनके रचना कर्म को राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकार के अट्ठाईस पुरस्कारों के रूप में व्यापक सम्मान जनक स्वीकृती मिली । इन्होंने हर विधा में हर वर्ग के लिए रचनाकर्म का चुनौती भरा काम सफलतापूर्वक किया है। देश भर के विश्वविद्यालयों में कई छात्र डॉ. मीनाक्षी स्वामी के रचना कर्म पर शोध कर रहे हैं। डॉ. मीनाक्षी स्वामी की कृतियां विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का हिस्सा होने का गौरव पा रही हैं। समाजशास्त्र जैसे विषय का प्राध्यापक होना मीनाक्षी स्वामी की दृष्टी को बहुआयामी बनाता है।
डॉ. मीनाक्षी स्वामी ने जीवन की विसंगतियों को समाजशास्त्रीय आंख से देखकर, संवेदनाओं में कुशलता से ढाला है। यही कुशलता उनके ताजातरीन उपन्यास सौ कोस मूमल में भी दिखाई देती है। राजकुमारी मूमल और राजकुमार महेन्द्र की इस ऐतिहासिक प्रेम कथा को थार प्रदेश से निकाल कर देश दुनिया के सामने लाकर डॉ. मीनाक्षी स्वामी ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। डॉ. मीनाक्षी स्वामी ने इस उपन्यास में प्रेम के हर आयाम को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है।
यह विचार डॉ. मीनाक्षी स्वामी की किताब का मराठी में अनुवाद करने वाली अनिला फड़नवीस ने उपन्यास की समीक्षा करते हुए कहीं ।

प्रेम, सौहार्द बढ़ाने के प्रयत्न की एक कड़ी है "सौ कोस मूमल"
स्टोरीमीरर प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित इस उपन्यास पर चर्चा करते हुए सूरजप्रकाश ने कहा भारत पाकिस्तान आज विभाजित हैं। विभाजन के समय बहुत कड़वाहट रही। आज प्रेम, सौहार्द बढ़ाने के लिए सभी प्रयासरत हैं। इसी प्रयत्न की एक कड़ी है "सौ कोस मूमल"। डॉ. मीनाक्षी स्वामी का यह उपन्यास अखंड भारत के दो प्रदेशों और सोढ़ा तथा भाटी जैसे दो राजघरानों की संस्कृति का भी सफर है। इस अमर प्रेमकथा में थार का संगीत है जिस पर रेत का कण-कण झूमता है। इस उपन्यास में प्रेम को ताकत को बहुत कौशल से उकेरा गया है। आज जहां साहित्य, प्रेम कथाओं के नाम पर देहवाद, भोगवाद के इर्दगिर्द ही घूम रहा है। यह गाथा प्रेम के विराट स्वरूप को सामने लाती है। प्रेम के गहन स्वरूप से साक्षात्कार कराती है। यह अद्भुत उपन्यास स्मरण कराता है कि विभाजन के बावजूद हमारा आपसी प्रेम अविभाजित है।
डॉ. मीनाक्षी स्वामी ने इस उपन्यास को लिखने के कारण बताते हुए कहा कि मूमल थार प्रदेश के लोद्रवा की थी और महेन्द्र सिंध प्रदेश के अमरकोट के। अविभाजित भारत का वह भाग बाद में विभाजन की नज़र हो गया। आज लोद्रवा भारत में पाक सीमा पर है और अमरकोट पाकिस्तान में है। मगर उस इलाके में जाकर महसूस हुआ कि इस भौगोलिक विभाजन के बावज़ूद जनमानस में रची बसी यह प्रेम कथा आज भी लोगों के दिलों को जोड़े हुए है। इस जुड़ाव को देश दुनिया के सामने लाने की कोशिश में यह उपन्यास लिखा है।

प्रेम की ताकत अपार है और प्रेम भौगोलिक सीमाएं नहीं जानता। इस सत्य को फिर याद दिलाने और रेत के शुष्क समन्दर में पड़ती प्रेम की फुहारों से पाठकों को भिगोने एवं पुरुष की चाहत में छुपे अहंकार को सामने लाने के लिए लिखा है। जब राजकुमार महेन्द्र कहते हैं "वीरों को कठिनाई अच्छी लगती है। बेर काचरी तो सबके लिए सुलभ होते हैं पर हम जैसे वीर राजकुमारों के लिए आसमान के तारे होते हैं। और सबसे बड़ी बात कि पहुंच में कठिन या पहुंच से परे स्त्री, मर्द को ज्यादा आकर्षक लगती है।" मगर सच्चा प्रेम होने पर इस अहंकार के लिए कोई जगह नहीं रह जाती है। इस सत्य का अनुभव पाठकों को कराने के लिए लिखा है।
लिखा है पुरुष की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति पर प्रहार करने के उद्देश्य से। जहां पुरुष सात रानियां रख सकता है मगर स्त्री की बेवफाई का भ्रम भी उसे बर्दाश्त नहीं और लिखा है स्त्री की उस ताकत को, अपराजेय शक्ति को सामने लाने के लिए जहां अपना झूठा कलंक मिटाने को वह आकाश पाताल एक कर देती है।


यह उपन्यास कमरे में बंद होकर कल्पना के सहारे नहीं लिखा बल्कि तीन चार बार उस क्षेत्र में जाकर, कई दिन रहकर, लोक में बसी मूमल महेन्द्र की गाथा को जानकर, चाहे वो सुनाई जा रही हो या लोक कलाकारों द्वारा गीतों और नृत्य में व्यक्त हो रही हो। जैसलमेर से करीब सोलह किलोमीटर दूर लोद्रवा में शिव मंदिर के अवशेषों के पास राजकुमारी मूमल के महल के अवशेष, सूखी हुई काक नदी में बिखरी रेत का कण कण जैसे आज भी यह गाथा दोहराता है। इसे सुनने की कोशिश में यह उपन्यास लिखा गया है।
मुंबई के मणिबेन नानावटी महिला कालेज में भव्य गरिमामय आयोजन में जानी मानी उपन्यासकार डॉ. मीनाक्षी स्वामी के बहुचर्चित उपन्यास "सौ कोस मूमल" के लोकार्पण समारोह में मधु अरोरा, नेहा शरद, अनंत श्रीमाली, रवीन्द्र कात्यायन, संवेदना, आभा बोधिसत्व, भुवेन्द्र त्यागी, जयश्री सिंह, अतुल तिवारी, विनोद दुबे, अलका अग्रवाल, रवीन्द्र शुक्ल, चित्रा देसाई, करुणा अग्रवाल, शिप्रा वर्मा एवं मुंबई के रचनाकार व साहित्य प्रेमी इस आयोजन के साक्षी रहे।.
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