प्रताप कुशल प्रबंधक एवं प्रशासक थे। प्रताप ने सेना का सेनापति बन कर अपने कुशल प्रबंधक प्रशासक के तौर पर अपना लौहा मनवाया था। उन्हेाने कहा कि व्यक्ति अपने वंश के साथ अपनी त्याग की भावना को जगाता है तभी वह गौरवशाली बनता हैं और प्रताप के व्यक्तित्व में ये विशेषताए नजर आती है। उक्त विचार गुरूवार को प्रतापनगर स्थिति विश्वविद्यालय के केन्द्रीय सभागार में विद्यापीठ के इतिहास विभाग की ओर से प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप के निर्वाण दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कही। मुख्य अतिथि वरिष्ठ इतिहासविद् डॉ. के.एस. गुप्ता ने कहा कि प्रताप ने जिन विपरित पस्थितियों में कार्य करते हुए सफलता प्राप्त की थी। प्रताप के आदर्श एवं प्रेरणा की आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत आवश्यक है। उन्होने कहा जनसमुदाय के लिए प्रताप ने बहुत अधिक कार्य किया है शायद ही किसी मध्यकालीन प्रशासन ने किया होगा। उन्होने कहा कि जब प्रताप का शासन था उस समय देश में गुलामी एवं हिनता की भावना थी एवं मेवाड की स्थिति दयनीय एवं निराशावादी थी। खानवा युद्ध, चितोड युद्ध, तालीकोट युद्ध में मिली मुगम विजयी ने हिनता की भावना को ओर बढा दिया, ऐसी परिस्थिति में प्रताप ने देश की कमान को संभाला था। विशिष्ठ अतिथि सवाई चन्द्रवीर सिंह बिजोलिया राव ने कहा कि उस समय जो इतिहास लिखा गया वह तत्कालीन वातावरण से प्रभावित था। उन्होने जोर देते हुए कहा कि १२०० वर्षो का इतिहास को पुनरलेखन होना चाहिए। संगोष्ठी में डॉ. देव कोठारी, प्रो. मीना गोड, प्रो. दिग्विजय भटनागर, डॉ. गिरिशनाथ माथुर, डॉ. राजेन्द्र पुरोहित, डॉ. प्रतिभा, डॉ. मोहब्बत सिंह, डॉ. एस.वी. सिंह सहित शहर के गणमान्य नागरिक एवं इतिहासविद् उपस्थित थे। संगोष्ठी का संचालन डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने किया जबकि धन्यवाद विभागाध्यक्ष प्रो. नीलम कोशिक ने दिया।
Source :