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राजस्थानी फिल्म उद्योग गिन रहा है आखिरी सांसें

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24 Jun 15
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राजस्थानी फिल्म उद्योग गिन रहा है आखिरी सांसें
हनुमानगढ़। राजस्थानी मोट्यार परिषद के तत्वावधान में जिला मुख्यालय पर जिले के राजस्थानी फिल्म उद्योग से जुड़े वरिष्ठ नागरिकों की बैठक परिषद के प्रदेश संयोजक अनिल जांदू की अध्यक्षता में आयोजित हुई। जिसमें सरकार द्वारा राजस्थानी फिल्मों को प्रोत्साहन नही मिलने पर चिंता व्यक्त की गई। राजस्थानी फिल्म अभिनेता, निर्माता, निर्देशक के. एस. तेजी ने कहा कि सरकार द्वारा राजस्थानी भाषा में बनाई जा रही फिल्मों के लिए कोई मदद नही दी जा रही, जिस कारण राजस्थान में ही राजस्थानी संस्कृति उपेक्षित होती जा रही है। उन्होनें कहा कि उनके द्वारा बनाई जा रही राजस्थानी परिवेश की फिल्मों का मुख्य उद्देश्य राजस्थानी भाषा और सभ्याचार को जन-जन पहुंचाना एवं स्थानीय प्रतिभाओं को मौका देना है। राजस्थानी परिवेश की फिल्में व विडियों एलबम बनाकर वे राजस्थानी संस्कृति का व्याप्त प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। तेजी ने कहा कि वे भविष्य में भी राजस्थानी भाषा व संस्कृति के प्रचार-प्रसार की दिशा में जारी अपने अभियान को भाषा मान्यता आंदोलन से जुड़कर निरंतर जारी रखेंगे। क्षेत्र के प्रसिद्ध गायक गोपाल जिंदल ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलने से राजस्थानी फिल्म उद्योग आखिरी सांसें गिन रहा है। राजस्थानी भाषा को प्रोत्साहन मिलेगा तो ही राजस्थान में रोजगार के अवसर राजस्थानियों के लिए सुरक्षित होंगे। अभिनेता और निर्माता आर. सी. धींगड़ा ने कहा कि राजस्थान में ही राजस्थानी फिल्मों के साथ नांइसाफी होने के कारण सफलता नहीं मिलती। इस कारण निर्माता दूसरी बार राजस्थानी फिल्म बनाने से कतराते हैं। राजस्थानी फिल्म लगाने की बात आती है तो सिनेमा मालिक निर्माता से फिल्म लगाने से पहले ही किराया मांग लेते हैं। सिनेमा नहीं मिलने के कारण राजस्थानी फिल्में सफल नहीं हो पाती। गायक अवतार सिंह नेहरा ने कहा कि राजस्थानी भाषा का बिखराव हो रहा है। इस कारण यहां राजस्थानी फिल्मों की पकड़ नहीं है। जबकि, देश के अन्य हिस्सों मे पंजाबी, तमिल, कन्नड़ जैसी फिल्में सम्बंधित राज्यों में बहुत सफल होती है। राजस्थानियों को भी राजस्थानी फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए सिनेमा हॉल तक पहुंचना होगा। प्रदेश संयोजक अनिल जांदू ने कहा कि राजस्थान को छोड़कर लगभग हर प्रांत में बालक को अपनी मातृभाषा के माध्यम से पढऩे का अधिकार है। राजस्थान के बालक को यह हक नहीं देना मानवाधिकार का हनन है। उन्होंने कहा कि शब्दकोश, व्याकरण, साहित्य, संस्कृति, इतिहास और लिपि हर दृष्टि से राजस्थानी संपन्न है। बैठक में पप्पू चौहान, श्रीमती बिमला मोदी, मिस दीपिका मोदी, बहादुर सिंह चौहान, प्रेम गोयल, राजेश सिंह राठोड़, गुरजंट सिंह, गुरदीप सिंह बराड़, संगम सैनी, पवन सहारण, रोहित सोनी, लवली कुमार, ममता मन्नू, विकाश बिश्नोई, बी. एस. तेजी आदि उपस्थित थे।

ये रखी गई मांगे
फिल्म क्षेत्र से जुड़े लोगों ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर राज्य के सिनेमा हॉलों में राजस्थानी फिल्में माह में एक-दो बार अवश्य चलाने की मांग की गई। इसके अलावा राजस्थान रोडवेज के दरवाजों पर पधारों सा एवं बसों पर म्हारै देस लिखा जाये, राजस्थानी फिल्मों को मनोरजन कर से मुक्त किया जाये, राजस्थानी फिल्मों हेतु अनुदान दिया जाये, राजस्थानी अकादमी को सिरमौर अकादमी घोषित की जाये, राजस्थानी फिल्म डवलपमेंट कार्पोरेशन का गठन किया जाये, विश्वविद्यालयों में राजस्थानी विभाग खोले, राजस्थान दिवस एवं प्रमुख उत्सवों पर प्रदेश के फिल्म कलाकारों, साहित्यकारों एवं कवियों को आमंत्रित कियाा जावे।
तेजी बने अभियान संयोजक
प्रदेश संयोजक अनिल जांदू ने बताया कि निर्माता, निर्देशक के. एस. तेजी राजस्थानी फिल्म उद्योग के विकास की दिशा में पिछले सात वर्षों से सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। इस दौरान वे कई फिल्में व सीरियल बना चुके हैं। इसलिए उन्हें पोस्टकार्ड अभियान म्हारी जुबान रो खोलो ताळो के तहत फिल्म परिषद का जिला संयोजक बनाया जाता है। तेजी ने बताया कि वे जिले के राजस्थानी फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों को एकजुट कर शीघ्र ही आंदोलन को मजबूत करेंगे। उन्होंने कहा कि भाषा मान्यता कि मांग को लेकर फिल्म परिषद प्रधानमंत्री के नाम पांच हजार पोस्टकार्ड लिखेगी।
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