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बॉडी बिल्डिंग में पीछे नहीं भारतीय युवतियां

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25 Mar 15
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वह कोमल है पर साथ ही एक फाइटर भी है। एक पत्नी, एक मां, एक बेटी न जाने कितने नाम से नारी जानी जाती है। पर मैरीकॉम को देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि एक महिला बॉक्सिंग का कॅरियर इतनी आसानी से अपना सकती है। रेसलिंग और कुश्ती या फिर डब्लू-डब्लूएफ की बात करें तो इसमें अब तक पूरे विश्व में पुरुष हिस्सा लेते दिखते थे। महिलाएं अगर दिखती भी हैं तो वह पश्चिमी देशों की होती हैं। मगर अब धारणा बदल रही है। भारतीय महिलाओं में खेल के प्रति जागरूकता बढ़ी है और वह बॉडी-बिल्डिंग को लेकर भी साहस दिखा रही हैं। हालांकि ऐसी युवतियां अपवाद स्वरूप ही हैं, क्योंकि आमतौर पर भारतीय पुरुष छरहरी और कोमल काया वाली महिलाओं को ही पसंद करते हैं। मगर वे अब मजबूत डीलडौल की लड़की को देखकर चौंकते नहीं।

भारतीय बॉडी बिल्डिंग फेडरेशन की मानें तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिलाएं बॉडी-बिल्डिंग का हिस्सा बन रही हैं। उनका मानना हैं कि अगर महिलाएं इस खेल के प्रति ज्यादा रूचि दिखाएं तो उनकी तरक्की के विकल्प खुल सकते हैं। हालांकि कई देशों की महिलाएं अपनी शारीरिक क्षमता और शक्ति दिखाने के लिए अब आगे आ रही हैं। रेसलिंग हो या बॉक्सिग अब उन्हें डर नहीं लगता। 35 साल की ममोता देवी पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीता है। उन्होंने लिंगभेद को दरकिनार कर अपनी ऐसी बॉडी बनाई जिसे देखकर लोगों के पसीने छूट जाते हैं।

हालांकि महिलाओं के लिए सिक्स पैक, मसल्स बनाना और पुरुषों जैसा मसकुलर बनना आसान नहीं होता। मगर ममोता ने हिम्मत नहीं हारी और 2012 में उन्होंने वर्ल्ड वूमन बाडी-बिल्डिंग प्रतियोगिता विएतनाम में भी जीती। उसके बाद 2014 में पुणे में वूमंस बॉडी-बिल्डिंग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया।

ममोता जैसी और भी कई महिलाएं हैं जिन्होंने अपना बॉडी इमेज बदला है। वह फिटनेस ट्रेनर भी हैं, बॉडी-बिल्डर भी हैं, कबड्डी, कुश्ती, रेसलिंग हर खेल में हिस्सा लेती हैं। 31 साल की नताशा प्रधान की बात करें या लीना की, हर कोई अपने आप को साबित करना चाहती हैं। लीना का परिवार बेहद संकीर्ण सोच रखता है पर इसके बावजूद लीना बॉडी-बिल्डिंग के लिए पागल हैं। 2015 में होने वाली बाडी-बिल्डिंग प्रतियोगिता के लिए उसकी तैयारी पूरी है। गीता फोगाट ने भी संकीर्ण विचारों को पार करते हुए कुश्ती में पहचान बनाई और पदक हासिल किए।

दरअसल, हमारे समाज में लोग यह स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उनके घर की महिलाएं ऐसा कॅरियर भी चुन सकती हैं। ऐसे में महिलाओं के सामने कड़ी चुनौती होती है। बॉडी-बिल्डर के रूप में जब वे बाहर निकलती हैं तो लोग उन्हें घूर-घूर के देख रहे होते हैं। पश्चिमी देशों में तो यह आम है पर भारत में इसे स्वीकार करने में अभी समय लगेगा।

महिलाओं की बॉडी इमेज को लेकर पुरुषों का नजरिया बिल्कुल साफ है। ऐसे में महिलाएं जब बॉडी-बिल्डिंग जैसा क्षेत्र चुनती हैं तो उन्हें नागवार गुजरता है। यहां तक कि इस कॅरियर में परिवार भी उनका साथ नहीं देता। मगर बदलते समय के साथ पुरुषों का नजरिया अपनी पत्नी के प्रति बदला है। मैरीकाम और ममोता जैसी महिलाओं की सफलता का श्रेय उनके पति और परिवार को ही जाता है।

बेहतर शारीरिक बनावट, पतली छरहरी काया या बॉडी-बिल्डिंग महिलाओं के लिए किसी चुनौती से कम नहीं। इसके लिए उन्हें पुरुषों से कई गुणा ज्यादा मेहनत करनी होती है। पुरुष सामान्यतः जल्द ही मस्कुलर बॉडी बना लेते हैं क्योंकि उनमें टेस्टोस्टेरोन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है पर जहां तक महिलाओं की बात करें तो इनमें इस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरान हार्मोन होते हैं जो फैट एकत्रित करते हैं। पर ऐसा भी नहीं हे कि महिलाओं के लिए बॉडी-बिल्ड करना मुश्किल है। कहते हैं न, जहां चाह वहां राह। अगर महिलाएं चाहें तो अच्छी वर्कआउट, बैलेंस और प्रोटीन युक्त डायट से मस्कुलर बॉडी बना सकती हैं।
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