कोटा | श्री करणी नगर विकास समिति के आश्रय भवन में आयोजित गोष्ठी में प्रोफेसर ज्योतिषाचार्य नागेंद्र प्रतिहस्त ने बताया कि आधुनिक युग में यह कठिन हो रहा है कि अध्यात्म का पालन कैसे हो। अब वर्णाश्रम व्यवस्था तो प्रायः नष्ट हो गई है। आपने कहा कि योगी वही है जो गीता को जीत सका है। गीता को ना जीतने वाला योगी नहीं है।
उन्होंने कहा गीता तो ज्ञान का भंडार है यह गागर में सागर है। गीता को समझने के लिए सुधी होना आवश्यक है। गीता का आरंभ अर्जुन के विवाद से होता है अर्जुन के प्रश्नों का ही उत्तर गीता है। विवाद से बाहर निकलना ही कृष्ण का महत् कार्य है। जिसे उनने ज्ञान योग, कर्मयोग और भक्ति मार्ग के माध्यम से प्राप्त करने को कहा है। किसी भी कार्य को करने से पहले ज्ञान, कर्म और भक्ति का संयोग अपेक्षित होता है। आत्मा का परमात्मा से एकाकार करना ही ज्ञान योग है। अष्टांग योग से योग करना चाहिए अंत में समाधि दया ब्रह्म की प्राप्ति ही योग है।
उन्होंने कहा ब्रह्म तो मिश्री के समान बताया गया है। उस मिश्री में ही अपनी आत्मा को मिलाना ही योग है। ज्ञानी लोग ज्ञान योग का आधार लेते हैं ज्ञान योग की अपेक्षा भक्ति योग सरल और सहज होता हैं। विरक्त ज्ञान की ओर बढ़ता है लेकिन भक्ति भगवान को सब कुछ समझाता है उसी में समर्पण करता है। अंत में प्रोफेसर हरिमोहन शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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