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भारत में अभी ब्लड सेफ्टी पर काम करने की जरूत

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09 Dec 17
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भारत में अभी ब्लड सेफ्टी पर काम करने की जरूत कोटा(डॉ. प्रभात कुमार सिंघल)इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो हेमेटोलॉजी यानी आईएसबीटीआई, मेडिकल काॅलेज कोटा तथा ब्लड बैंक सोसायटी की ओर से आयोजित तीन दिवसीय 42वीं कांफ्रेंस ‘ट्रांसकोन 2017’ शुक्रवार से मेडिकल काॅलेज आॅडिटोरियम आरकेपुरम् पर प्रारंभ हुई। जिसमें देश विदेश के रक्त विशेषज्ञों रक्त को लेकर अब हुए शोेध तथा भविष्य की आवश्यकताओं के साथ ही ब्लड सेफ्टी के बारे में व्याख्यान दिए। पहले दिन डाॅ. जरीन भरूचा, यूएसए के डाॅ. जांथन पिकर, डाॅ. सी शिवराम समेत विश्व के जाने माने रक्त विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक अन्वेषण और शोध पत्र प्रस्तुत किए। इसके बाद शाम को कांफ्रेंस का औपचारिक उद्घाटन किया गया।
यूएसए से आए डाॅ. जानाथन पिकर ने ‘स्वास्थ्य की देखभाल के लिए भविष्य का माॅडल’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि कहा कि हर व्यक्ति का डीएनए अलग होता है। ऐसे में, प्रत्येक को एक जैसा इलाज देना संभव नहीं है। अलग अलग क्षैत्रों में रहने वाले लोगों को एक ही बीमारी के लिए उनके डीएनए के अनुसार अलग इलाज दिया जाना जरूरी है। यूरोप में किए गए किसी अन्वेषण को बिना क्षैत्रीय बदलाव के बिना सीधे ही लागू नहीं कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि भारत में विभिन्न क्षैत्रों से ब्लड सेम्पल लेकर उन पर अन्वेषण किया जा रहा है। ब्लड पर अधिक शोध होने पर कईं लाइलाज बीमारियों पर विजय प्राप्त करना आसान होगा।
डाॅ. जरीन भरूचा ने ‘रक्त चिकित्सा का वर्तमान और भविष्य’ विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। उनहोंने कहा कि भविष्य में विशेषज्ञों के लिए अच्छी संभावनाओं को देखा जा सकता है। हालांकि, पारंपरिक रक्त बैंकिंग धीरे-धीरे फीका होगा और रक्तस्राव चिकित्सा विशेषज्ञ बड़े रक्त केंद्रों का नेतृत्व करेंगे। रोगियों में वे अधिक नैदानिक रूप से उन्मुख होंगे और सक्रिय रूप से आधान प्रणाली से जुड़े होंगे। आने वाले दिनों में स्टेमसेल ट्रोसप्लांट भी लोकप्रिय होगा और इसके द्वारा चिकित्सा खर्च में भी कमी की संभावना देखी जा सकती है। रक्त चिकित्सा पर अधिक प्रयोग से कईं रोगों का निदान संभव होगा।
कांफ्रेंस में आईएसबीटीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. युद्धवीर सिंह ने रक्तदान के क्षैत्र में इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो हेमेटोलॉजी के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। डाॅ0 वेदप्रकाश गुप्ता ने डाॅक्यूमेंटरी फिल्म ‘नई चेतना’ के माध्यम से गांवों में रक्तदान के प्रति जागृति लाने के प्रयासों के बारे में बताया। वहीं डाॅ. अपूर्व घोष के द्वारा रक्तदान में स्वयंसेवी संगठनों के योगदान के बारे में चर्चा की गई। इस दौरान डाॅ. सी शिवराम, डाॅ. स्वाति कुलकर्णी, डाॅ. रोली माथुर, डाॅ. आशीष जैन, डाॅ. पी श्रीनिवासन, डाॅ. युद्धबीर सिंह, डाॅ. अपूर्व घोष, डाॅ. टीआर रैना, डाॅ. वाई इटालिया, डाॅ. वीपी गुप्ता, डाॅ. बीके राना, डाॅ. पूर्णिमा राव, डाॅ. रवनीत कौर, डाॅ. राजेश बी सावंत, डाॅ. विमर्श रैना, डाॅ. रवि दारा, डाॅ. प्रतुल सिन्हा, डाॅ. आनन्द देशपाण्डेय, डाॅ. राजेन्द्र चैधरी, डाॅ. अर्चना सोलंकी, डाॅ. आरएम जायसवाल, डाॅ. राजश्री बेहरा, डाॅ. इरफाना निखत, डाॅ. गुरप्रीत कौर, डाॅ. शीतल मल्होत्रा, डाॅ. सीमा मालव, डाॅ. दीपिका मल्होत्रा, डाॅ. एनके भाटिया, डाॅ. जयश्री शर्मा, डाॅ. मंजू बोहरा, डाॅ. सुनील राज्याध्यक्ष, डाॅ. संगीता पाठक, डाॅ. कुलबीर कौर, डाॅ. राहुल कटारिया, बिन्दुमाधव येनीगला, डाॅ. पुष्पेन्द्र सिंह, डाॅ. गिरीराज राठौर, डाॅ. नरेन्द्र नायडू, डाॅ. पूजा जैन व्याख्यान प्रस्तुत किए।
कांफे्रंस में राजसीको के डायरेक्टर डाॅ. एसएस चैहान, आयोजन के चैयरपर्सन डाॅ. वेदप्रकाश गुप्ता, आयोजन सचिव डॉ. एचएल मीणा, मेडिकल काॅलेज के एडिशनल प्रिंसीपल डाॅ. नरेश राॅय, डाॅ. आरएन मकरू, डाॅ. सुनील राज्याध्यक्ष, डाॅ. राजेश सावंत, डाॅ. नरेश राय, डाॅ. निधि मेहता, डाॅ. सुनीता बूंदास, डाॅ. जरीन भरूचा, डाॅ. डीआर आर्य, डाॅ. जयश्री शुक्ला, डाॅ. केके पारीक, डाॅ. केके मिश्रा, डाॅ. जसमीत शर्मा, डाॅ. पूर्णिमा राव, डाॅ. एसके गोयल, डाॅ. स्मिता जोशी, डाॅ. शोभिनी राजन, डाॅ. राजकुमार उपस्थित रहे।
आज इनके होंगे व्यख्यान
डाॅ. आरएन मकरू, डाॅ. तूलिका चन्द्रा, डाॅ. हरप्रीत सिंह, डाॅ. अतुल कुलकर्णी, डाॅ. कंचन मिश्रा, डाॅ. राबर्ट फ्लावर, डाॅ. सौम्य जमुआर, डाॅ. मोहित चैधरी, डाॅ. सुनील राजाध्यक्ष, डाॅ. मनीषा श्रीवास्तव, डाॅ. मीनू वाजपेई, डाॅ. वीना डोडा, डाॅ. निधि मेहता, डाॅ. हिमांशु शर्मा, डाॅ. दिनेश अरोड़ा, लोकेश श्रीधरन, सरिता शर्मा, कृमा पटेल, अभिनव वर्मा, सुप्रिया सिंह, डाॅ. अजय गुप्ता, शंकर मुगाबे, डाॅ. निधि मेहता, एमएल पाटोदी, डाॅ. शोभिनी राजन, डाॅ. एनके भाटिया, डाॅ. एचएल मीना, डाॅ. पीएस झा व्याख्यान देंगे।
देश में 13 मिलियन यूनिट ब्लड की जरूरत
इण्डियन सोसायटी आॅफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के अध्यक्ष डाॅ. आरएन मकरू ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि देश में इस समय 13 मिलियन यूनिट ब्लड की आवश्यकता है। जिसके मुकाबले में केवल 11 मिलियन यूनिट ब्लड ही उपलब्ध हो पा रहा है। देश की जनसंख्या 1.3 मिलियन है जिसका 10 प्रतिशत हिस्सा ही रक्त देता है। उन्होंने कहा कि देश में बहुत बडत्री संख्या ऐसे लोगों की है, जो जीवन में एक ही बार रक्त देते हैं। जबकि विदेशों में बार बार रक्त देने से ब्लड टेस्ट भी बार बार होत ेहैं। जिसके कारण से एचआईवी समेत विभिन्न बीमारियों को पकड़ने में आसानी होती है। उन्होंने कहा कि देश को अधिक ब्लड के स्थान पर सुरक्षित रक्त की आवश्यकता है। हमारे देश की जीडीपी का केवल 1 प्रतिशत हिस्सा हेल्थ पर खर्च होता है। राजस्थान में रक्त की न्यूक्लियर ‘नेट’ टेस्टिंग नहीं होती है। हालांकि कर्नाटक ने इसे जरूरी कर दिया है।
नई तकनीक का उपयोग भारत की जनसंख्या के अनुसार हो
ब्रिस्बेन के डाॅ. राबर्ट फ्लावर ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि विश्व भर में आने वाली नई तकनीक का उपयोग भारतीय लोगों के लिए किया जा सकता है। वहीं भारत की विशाल जनसंख्या नई तकनीक के अन्वेषण में अपनी भूमिका अदा कर सकती है। उन्होंने कहा कि विश्व के स्तर पर हर व्यक्ति का एन्टीजन अलग प्रकार का होता है। इनकी टेस्टिंग के द्वारा ही इनके बीच होंने वाले अंतर को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि ब्लड गु्रप की टेस्टिंग के लिए अभी रीएजेंट बाहर से मंगाना होता है। जबकि इसे भारत को स्वयं निर्मित करने की ओर बढना चाहिए।
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