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भारत व चीन में दुनिया के एक तिहाई मानसिक रोगी

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30 May 16
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मास्को। विज्ञान पत्रिका दि लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक चीन और भारत दुनिया भर के एक तिहाई मानसिक मरीजों का घर हैं, लेकिन इनमें से महज कुछ ही लोगों को चिकित्सीय मदद मिल पाती है। रिसर्च के मुताबिक सबसे अधिक आबादी वाले इन दो देशों में मानसिक रोगियों की संख्या अच्छी आमदनी वाले सारे देशों के कुल मानसिक मरीजों से ज्यादा है।
अध्ययन का कहना है कि खासकर भारत में यह बोझ आने वाले दशकों में काफी बढ़ता जाएगा। अनुमान के मुताबिक यहां मनोरोगियों की तादाद 2025 तक एक चौथाई और बढ़ जाएगी। चीन में जन्मदर को रोकने के लिए महज एक बच्चे की सख्त नीति है। इसका स्वाभाविक असर चीन में तेजी से बढ़ती मानसिक बीमारी की रोकथाम पर भी पड़ने की उम्मीद जताई गई है।अध्ययन के अनुसार दोनों ही देश इस चुनौती से निपटने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। चीन में महज 6 प्रतिशत मानसिक मरीजों की उपचार तक पहुंच है। इस शोध के लेखकों में शामिल एमोरी यूनिर्वसटिी के प्रोफेसर माइकल फिलिप्स कहते हैं, ‘‘चीन के ग्रामीण इलाकों में मानसिक स्वास्यकर्मिंयों का भारी अभाव है।
ठीक इसी तरह भारत में भी मानसिक मरीजों को स्वास्य सुविधाएं मिल पाना मुश्किल है।दोनों ही देशों में मानसिक स्वास्य सेवाओं के लिए राष्ट्रीय स्वास्य सेवाओं के बजट का 1 प्रतिशत से भी कम खर्च किया जाता है। जबकि अमेरिका में यह 6 प्रतिशत है और जर्मनी और फ्रांस में यह 10 प्रतिशत या उससे भी ज्यादा है।भारत और चीन दोनों ही देशों ने हाल में मानसिक मरीजों की जरूरतों का ख्याल रखने के लिए कुछ नीतियां लागू की हैं, लेकिन हकीकत में उन पर कुछ भी अमल नहीं किया गया है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर विक्रम पटेल कहते हैं, ‘‘ग्रामीण इलाकों में इस तरह के इलाज बिल्कुल नहीं होते। शोध में कहा गया है कि दोनों ही देशों में नीतियों और हकीकत के बीच के अंतर को खत्म करने में अभी दशकों लग सकते हैं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि दोनों ही देशों में योग या चीनी चिकित्सकीय पद्धति सरीखे पारंपरिक तरीकों को बढ़ावा देकर मानिसक स्वास्य की चुनौतियों से निपटा जा सकता है।
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