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सबमर्जों की एक दवा- ध्यान

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24 Jan 18
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उदयपुर, विज्ञानसमितिसभागारमेंब्रह्मऋषिसुभाष पत्री जी ने अपनेप्रवचन के दौरानबतायाकि ध्यानसभीविधाओंमेंसबसेअच्छाहै। एवंउसेहीअपनानाचाहिए।इसकेलिए मनुष्य ने सबसेपहलेइच्छा, तत्पश्चात् उसकेकरनेकातरीकातथाउसकेपश्चात् अभ्याससेइसेकियाजाताहै।हाथ की अंगुलियोंसेउन्होंनेबतायाकिकनिष्का ’’तन‘‘ हैजोहमेंमाता-पितासेमिलताहै।दूसरीअंगुलीअनामिका ’’मन‘‘ हैजोसमाजसेप्रभावितहोताहै।तीसरीअंगुली ’’मध्यमा‘‘ हैजोबुद्धि है व मनुष्य के पूर्वजन्म के कमर्सेबनतीहै।चौथीअंगुली ’’तर्जनी‘‘ हैजोआत्माकोदर्शातीहैतथाअंगुठापरमात्माकाप्रतिकहै।तनऔरमनइसजन्म के हैंतथाबुद्धि व आत्मापूर्वजन्मसेआतेहैं।मनुष्य की यात्रा तनसेपरमात्मातक की है एवंसभीआत्माका ध्येय परमात्माबननेकाहै। ध्यानसेइसकोप्राप्तकियाजासकताहै। ध्यानकाकोई समय नहींहै एवंकिसीभी समय किसीभीस्थानपरकियाजासकताहै।संगीततथापिरामिडके अंदर ध्यानकरनेसेउसकेऔरअच्छेपरिणाममिलतेहैं।उन्होंनेस्वयंबाँसुरीबजाकरउपस्थितलोगोंको ध्यानकाअभ्यासकरवाया। ध्यानप्रारम्भहोने के पूर्वश्रीमहेशअग्रवाल, श्रीमतीविजयलक्ष्मी चौहान, जस्सीकौर, श्रीमतीकल्पनाजैन, डॉ एल एल धाकड आदि ने अपनेविचार एवंअनुभवसाझा किए।डॉ के एल कोठारी ने स्वयं केअनुभवबतलाए तथा पत्री जीकोविज्ञानसमिति पधारनेपर धन्यवाददिया।कार्यक्रमकासंचालनप्रबुद्ध चिंतनप्रकोष्ठ की ओरसेश्रीमुनीशगोयल नेकिया।


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